बाबू जी .....

आज कोई दोहा याद नहीं आ रहा 
एक मतला और एक शेर देखें 
कि

  बातें झूठी, मन भी झूठा, दुनिया झूठी बाबू जी 
फिर भी जाने क्या है ससुरी लगे अनूठी बाबू जी

राजनीत का खेल खेलने वाले हैं दुष्यंत यहाँ 
किस्मत देखो शकुंतला कि गिरी अंगूठी बाबू जी 
--योगेन्द्र मौदगिल 

12 comments:

अरुणेश मिश्र said...

दुष्यंत < शकुन्तला का योगेन्द्र जी उत्कृष्ट प्रयोग ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह.
अनूठी हैं चारों लाइनें.

अमिताभ मीत said...

क्या बात है ... क्या बात है कविवर !!

ग़ज़ब है ..... बस एक मतला और एक शेर .... काफ़ी हैं ...

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut baDhiyaa!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर रचना धन्यवाद

सम्वेदना के स्वर said...

कविवर! पूरी तरह फॉर्म में आ जाइए… ये जो आप मोती बिखेर रहे हैं, वो कब तक चलेगा..हमें तो पूरी माला चाहिए... इतने लाचार हैं कि ये भी नहीं कह सकते कि
दिल भी एक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए, या कुछ भी नहीं.
आपकी गुमशुदगी दर्ज़ करवा दी थी हमने… फुर्सत हो तो देख लेंगे..लिंक दे रहा हूँ
http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/07/blog-post_23.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Bau jee,
Bahut acchhe!

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...बाबू जी.

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Parul kanani said...

babu ji..khoob sma baandha hai aapne in paniktiyon se :)

दिगम्बर नासवा said...

शेर भी तो आपके कमाल हैं गुरुदेव ...