आज कोई दोहा याद नहीं आ रहा
एक मतला और एक शेर देखें
कि
बातें झूठी, मन भी झूठा, दुनिया झूठी बाबू जी
फिर भी जाने क्या है ससुरी लगे अनूठी बाबू जी
राजनीत का खेल खेलने वाले हैं दुष्यंत यहाँ
किस्मत देखो शकुंतला कि गिरी अंगूठी बाबू जी
--योगेन्द्र मौदगिल
12 comments:
दुष्यंत < शकुन्तला का योगेन्द्र जी उत्कृष्ट प्रयोग ।
वाह.
अनूठी हैं चारों लाइनें.
क्या बात है ... क्या बात है कविवर !!
ग़ज़ब है ..... बस एक मतला और एक शेर .... काफ़ी हैं ...
bahut baDhiyaa!!
बहुत ही सुंदर रचना धन्यवाद
कविवर! पूरी तरह फॉर्म में आ जाइए… ये जो आप मोती बिखेर रहे हैं, वो कब तक चलेगा..हमें तो पूरी माला चाहिए... इतने लाचार हैं कि ये भी नहीं कह सकते कि
दिल भी एक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए, या कुछ भी नहीं.
आपकी गुमशुदगी दर्ज़ करवा दी थी हमने… फुर्सत हो तो देख लेंगे..लिंक दे रहा हूँ
http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/07/blog-post_23.html
बहुत बढ़िया
Bau jee,
Bahut acchhe!
बहुत बढ़िया...बाबू जी.
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
babu ji..khoob sma baandha hai aapne in paniktiyon se :)
शेर भी तो आपके कमाल हैं गुरुदेव ...
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