बढ़िया मंच जमा था
रायपुर और आसपास के सभी मीडियाकर्मी व रंगकर्मी होली के रंग में रंगे मस्ती में सराबोर थे
संचालक महोदय ने तुरंत मेरा नाम पुकार दिया
अनिल भाई ने मुझे तिलक लगा टोपी पहनाई फिर मैंने कविता पढ़ी श्रोता दूसरे ही मूड में थे फिर भी कविता चल गई
दूसरे दौर तक भंग का एक गिलास लेकर मैं भी मूड में आ लिया था सो वैसा ही सुना दिया
लोग भयंकर खुश थे
खूब मज़ा आ रहा था
कार्यक्रम निबटा और अनिल भाई और ग्वालनी जी मुझे लेकर एक अधिकारी मित्र के बंगले पर पहुंचे और फिर वही १०० पाइपर कर दौर प्रारंभ
५-७ पैग जमने के बाद अनिल जी आर ग्वालनी जी ने मुझे स्टेशन छोड़ दिया गाड़ी एक घंटा लेट जो बाद में ३ घंटे हो गई और इस अंतराल को पाटने के लिये स्टेशन से बाहर आकर एक बीयर का संहार करना पड़ा
कम्बख्त समय कम है वरना दारू के अलावा कुछ रोचक बातें और भी हैं जो अगली पोस्ट में करूंगा फिलहाल कुछ फोटो और एक ग़ज़ल
दरअसल इन दिनों कविसम्मेलनीय सीज़न है
इसलिये ये लेखमाला निरन्तर अपडेट नहीं कर पाया
अभी २ अप्रैल तक व्यस्त हूं फिर भी जो स्मृति में है वो सब प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं
हज़ल पेश करता हूँ क़ि
दिल के अरमां आंसुऒं को कह गये.
सालों तुम बुजदिल थे जो कि बह गये.
लात, घूंसे, जूत, चप्पल, झिड़कियां,
इश्क में जो भी मिला वह सह गये.
ये शराफत है, तुम्हारा डर नहीं...
तेरे लुच्चेपन को हंस कर सह गये.
आदमी का जब ज़हर आंका गया,
सांप-बिच्छू सारे पीछे रह गये.
दिल है कि सरकारी वेटिंगरूम है...
चार आए, आठ बैठे, छह गये.
तुमने तो रो-रो के नदियां पाट दी,
गिर गये मस्तूल तम्बे बह गये.
चांदनी इस और आती ही नहीं,
चांद को ना जाने तुम क्या कह गये.
हमने चूसा खून, हड्डियां बांट लो,
नेता जी, चमचों से अपने कह गये.
थे इलैक्शन तक यहीं पसरे हुए,
जीतते ही वह गये जी वह गये.
--योगेन्द्र मौदगिल
24 comments:
आदमी का जब ज़हर आंका गया
सांप बिच्छू सारे पीछे रह गए ......
क्या बात है मौदगिल साहब .... क्या हज़ल है .... बहुत खूब ...
छतीसगढ़ के किस्से भी बढ़िया ...
बहुत सुंदर यात्रा वर्णन लिखा,
रामराम.
हमने चुसा खुन,हड्डियाँ बांट लो।
नेताजी,चमचों से अपने कह गए।
राम-राम योगेन्द्र जी।
भोत बढिया हजल सुणाई,
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जितनी सुंदर रचना है उतने ही सुंदर चित्र व टोपी पहनाने की ख़बर :)
चांदनी इस और आती ही नहीं,
चांद को ना जाने तुम क्या कह गये
अब और क्या कहें!
योगेन्द्र भाई शानदार गज़ल हमेशा की तरह करारी चोट की है आपने।आपको बीयर का संहार अकेला करना पड़ा,हम लोग आपका साथ नही दे पाये इसका हमे खेद है।खैर फ़िर कभी मौका मिला तो हम लोग संहार कर लेंगे आप आराम कर लेना।हा हा हा हा,मज़ा आ गया,मस्त पोस्ट,फ़िर होली के मूड़ मे ला दिया आपने।
बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुति ..आभार.
वदिया, बोद वदिया...
मजा आ गया.
आदमी का जब जहर परखा गया
सांप बिच्छू सारे पीछे रह गये
वाह वाह वाह
क्या बात है
आपकी कलम को प्रणाम
बहुत सुंदर विवरण, ओर चित्र भी बहुत सुंदर... पेग ओर बीयर मजेदार जी, आप की कविता भी बहुत अच्छी लगी
भाई जी फोटो देख के तो आनंदित हो गये और हज़ल पढ़ के बाई गोड आपके पाँव में लोटने को जी कर रहा है...ग़ज़ब कर दिया भाई जी ग़ज़ब..."दिल के अरमां...,दिल है की सरकारी...,हमने चूसा खून..." तो कसम से वो शेर हैं जिन्हें ताम्र पात्र पर लिख के ज़मीन में गाढ देना चाहिए ताकि सदियों बाद लोग हैरान हों जान कर की ऐसा भी कोई शायर कभी हुआ था...वाह.
नीरज
लोग भयंकर खुश थे.....
एक नये शब्द से आज परिचित हुआ,धन्यवाद.
हमने चुसा खुन,हड्डियाँ बांट लो।
नेताजी,चमचों से अपने कह गए।
--वाह वाह!!
फोटो और विवरण पढ़कर आनन्द आ गया...
wah , hamesha ki tarah behatareen. badhaai.
आदमी का जब ज़हर आंका गया
सांप बिच्छू सारे पीछे रह गए ....aap to hazal me bhi achhi bat kah gaye moudgilji.kahiye bhiwani ki news sachitra kab laga rahe hain blog per?
आदमी का जब ज़हर आंका गया
सांप बिच्छू सारे पीछे रह गए ....aap to hazal me bhi achhi bat kah gaye moudgilji.kahiye bhiwani ki news sachitra kab laga rahe hain blog per?
वाह...वाह...वाह...
लाजवाब...लाजवाब....लाजवाब...
वाह...वाह...वाह...शोभनम् ! बहुत सुनदर हर चरण निराला है.......
-डॉ० डंडा लखनवी
खूब स्वागत चली इस होली के त्योहार पर...बढ़िया सचित्र वर्णन...
और ग़ज़ल तो मत पूछिए लाज़वाब हर लाइन कुछ कहती है...
धन्यवाद ताऊ जी..
जबर्दस्त व्यंग्य।
बाढ़ में ... के तम्बू बह गए...
बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुति ..आभार.
आदमी का जब ज़हर आंका गया
सांप बिच्छू सारे पीछे रह गए ......
वाह...वाह..
लाजवाब..
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