इन दिनों ब्लागिंग के लिये अधिक समय नहीं दे पा रहा हूं. समस्त
ब्लागर जगत उदारता से क्षमा करे.
इस बीच भाई सुबीर जी के आदेश पर कुछ शेर निकल आये थे.
जिस दिन टाइप कर के उन्हें भेजने बैठा तो कम्बख्त लाइट चली
गई. तो जितने शेर वहां चले गये सो चले गये शेष यहीं रह गये.
आज वो पूरी ग़ज़ल आपके समक्ष रखता हूं. इसमें जो लाल स्याही
में हैं वो सुबीर जी के ब्लाग पर प्रकाशित हो चुके हैं शेष आप सब
के लिये नये हैं.
मुसल्सल हंसाये, मुसल्सल रुलाये.
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये.
ना नदियों ने समझा, ना सागर ने जाना,
ये कैसा मिलन जो समझ में न आये.
ये कैसा नज़ारा है महफ़िल में तेरी,
कोई रो रहा है कोई खिलखिलाये.
मुकद्दर या रेखाएं सब कुछ है झूठा,
बशर झूम लेता है बैठे-बिठाये.
उन्हीं को अंधेरों ने उलझाया होगा,
हमें तो अंधेरे बहुत रास आये.
जो मिलना है धोका तो मिल के रहेगा,
गो आती मुसीबत है बैठे-बिठाये.
के हम भी तो तेरे बुलाये हुए हैं,
के दो घूंट साक़ी हमें भी पिलाये.
जवानी-दिवानी, जवानी-दिवानी,
जवानी वो कैसी जो गुल ना खिलाये.
है फितरत, फलसफ़ा, अदावत, गनीमत,
वही जो बनाये, वही क्यों मिटाये..?
है तक़दीर मेरी, तुम्हें क्या बताऊं,
के पल-पल में मज़बूरी दरपन दिखाये.
ये दो जून रोटी, यकीं लूटती है,
जो मन-मन को तोड़े तो तन-तन को खाये.
मुझे मेरे बेटे ने बाहों में भर कर,
सितारों में बैठे हैं,बाबा दिखाये.
तेरा चुप ये रहना मुझे ख़ल रहा है,
मैं तेरा हूं मुझको कोई तो बताये.
बहुत सी हैं बातें, बहुत हैं फ़साने,
के बुढि़या अकेली है किसको सुनाये.
जो नज़रें मिलीं तो शिकारी यों बोला,
कुआंरा कबूतर बहुत फड़फड़ाये.
ये अख़ब़ारी सारे हरफ़ सोचते हैं,
हो किस्मत तभी तो कोई गुनगुनाये.
चलो आऒ हम भी करें चांदमारी,
हवा, बादलों से लिपट फुसफुसाये.
--योगेन्द्र मौदगिल
31 comments:
वाह,आखिरी वाला खासकर!
sabhi anupam.
क्या खूब लिखी है,भई वाह.
सभी शेर एक से बढ कर एक जी बहुत सुंदर
धन्यवाद
योगेन्द्र जी बहुत सुंदर शेर के यो तो बब्बर शेर है।
घणे ही दिन बाद मुलाकात हुई, आपने तो याद ही नही किया, और हम भुल गए हों ऐसा भी नही।
राम-राम
महफिल जम ही जाती है सच में ..आपके आने से।
कुछ तो है आप में
वरना क्यों खाली खाली लगे महफिल आपके जाने से
आमद भली लगी.आपके आशिकों को.
बहुत खूब !
भाई जी लाल वाले सुबीर जी के यहाँ पढ़ कर धन्य हो गए थे और अब काले वालों ने यहाँ बवाल मचा दिया...क्या लिखते हो भाई...लाजवाब...
नीरज
लाल स्याही से लिखी तो पहले सुबीर सर के ब्लॉग पर पढ़ चूका हूँ. बाकी के शे'र भी अनेक रंगों में डूबे हुए हैं.
आखरी पंक्तियाँ विशेष पसंद आये.
lajawaab .
गुरुदेव आपकी ग़ज़ल पहले भी पड़ी थी ......... आज नये शेरो के साथ तो और भी कमाल के रंग जुड़ गये हैं ....... हक़ीकत से जुड़े शेर आपकी ख़ासियत है जो हर शेर में नज़र आती है ...........
नमस्कार यौगेन्द्र जी,
गुरु जी के ब्लॉग पे आधे तो पहले ही पढ़ चुके हैं और नए शेर वाह क्या कहने
ये शेर बहुत खूबसूरत है "बहुत si हैं baaten बहुत se fasane......."
बहुत दिनों बाद आये लेकिन आप बहुत शानदार शाहकार के साथ.
Waah !! Waah !! Waah !!
Sabhi sher ek se badhkar ek....Lajawaab rachna...aanand aa gaya padhkar...Waah !!!
शानदार और अनुपम शेर सभी ।
साथ ही मनोरंजक भी ।
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हैं...मैंने तो दोनों गज़लें अभी ही पढ़ीं...एक से एक बढ़कर हैं शेर...लाज़बाब
मुकद्दर या रेखाएं सब कुछ है झूठा,
बशर झूम लेता है बैठे-बिठाए.
सभी शेर, सवा सेर हैं योगेन्द्र जी. तरही में पढ चुकी हूं ये गज़ल तब आधी ही थी. लाजवाब है.
kaale waalon ne aur had kardi .. laal walon ne pahale hi tarahi loot rakhi thi... insab ne ab kuchh naa chhoda bahut hi khubsurat ashaar hain bahut bahut badhaayee saab..
arsh
योगेन्द्र जी,
सभी शेर बहुत अच्छे लगे. लगता है बिजली रानी चोरी के शेर इकट्ठे करके शायरा बनने की जुगाड़ में हैं ;)
बहुत बढिया।
देर आये दुरुस्त आये
... एक से बढकर एक....बेहतरीन,लाजबाव!!!
बहुत ही सुंदर ।
बहुत सी है बातें बहुत से फसाने........
तो एक दम हमारे लायक है ।
लाल वालों ने तो पहले ही दिल में छाप लगा दी थी, इन काले वालों ने तो मज़ा बांध दिया. आनंद आगया.
महावीर शर्मा
सुन्दर ग़ज़ल ,अच्छी लगी ,ख़ास कर के
”ये दो जून.......”
ग़रीब की व्यथा का सटीक वर्णन
आज तो कुछ अलग सा मिला आपसे ! होली और मिलाद उन नबी की शुभकामनायें
होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
अच्छी गज़ल.
जो नज़रें मिलीं तो शिकारी यों बोला,
कुआंरा कबूतर बहुत तड़फड़ाए
..मस्त शेर.
kya khub likha saab
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