शब्दों से सहवास मियां ........

उन सब ने खंडित कर डाला जिन पर था विश्वास मियां
क्या अपनों को धर के चाटे क्या अपनों की आस मियां


इस बस्ती से आते-जाते नाक पे कपड़ा रख लेना
बड़ी घिनौनी लगती है अब आदम की बू-बास मियां


रोज-रोज का खून-खराबा रोज-रोज की दहशत से
दिन पर दिन घटता जाता है जीवन का उल्लास मियां


कैकेयी की माया से दशरथ अगर कहीं बच जाता तो
मुमकिन था के टल ही जाता राम को तब बनवास मियां


किसी काम में कोई अड़चन भूले से भी नहीं हुई
जब से अफसर को डाली है हरे नोट की घास मियां


लाज़िम नहीं है तेरे-मेरे कहने से ही काम बने
अंधों की दुनिया में काने ही होते हैं खास मियां


कहने हैं तो कहो 'मौदगिल' नये-नये अशआर सदा
वरना छोड़ो क्यों करते हो शब्दों से सहवास मियां


- योगेन्द्र मौदगिल




27 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

बदल रहे है रिश्तें-नाते,कर इसका आभाष मियाँ,
सज्जनता का होता है,इस दुनिया में परिहास मियाँ,
लोग लगे है निज विकास में,कौन करें दूजों की खैर,
गैर नही अब तो अपने भी तोड़ रहे हैं आस मियाँ,

ये तो चार लाइनें बन गयी पर आपने तो एक शानदार रेखाचित्र खींच डाला इस दुनिया का..बहुत बढ़िया रचना..अच्छा लगा धन्यवाद

श्यामल सुमन said...

शब्दों से सहवास - वाह योगेन्द्र भाई वाह। मुग्ध हूँ आपको पढ़कर - बस यही कह सकता हूँ। अपनी आदत से मजबूर लीजिए पेश है एक तात्कालिक तुकबंदी आपके तर्ज पर-

लोग यहाँ पर खुशी रहेंगे गर दिल्ली अनुशासित हो
लेकिन ऐसा हो पायेगा, क्या दिखता आभास मियां?

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

M VERMA said...

शब्दों से सहवास' क्या खूब लक्ष्यभेद किया है.
बहुत सुन्दर

Yogesh Verma Swapn said...

wah maudgil ji wah.

Reetesh Gupta said...

बहुत सुंदर..क्या बात है !!...बधाई

Udan Tashtari said...

जबरदस्त बात कह जाते हैं सरलत से आप!!

Kusum Thakur said...

बहुत सुन्दर रचना , आपने बहुत कुछ कह डाला इन पंक्तियों में .

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर अल्फाज़, योगेन्द्र जी।
शब्दों के साथ आपका हनी मून यूँ ही चलता रहे, अनंत तक।

Khushdeep Sehgal said...

योगेंद्र भाई,

शब्दों को भी जापानी तेल का फंडा क्यों नहीं सिखा देते...

जय हिंद...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उत्तम विचार. सुन्दर कविता. यथार्थ परक.

राकेश 'सोहम' said...

बहुत मजे से और शानदार सी
लिखते हो ग़ज़ल ख़ास मिंयाँ !

vandana gupta said...

bahut hi sundar prastuti.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत गजब की बात कही जी.

रामराम.

राज भाटिय़ा said...

योगेंदर जी जबाब नही आप का, आप की गजल आज की सब की दुखती रंग है, बहुत अच्छी लगी,

दिगम्बर नासवा said...

जबाब नही योगेन्द्र जी ..... ग़ज़ल गजब की hai

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Bahut badhiya.


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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?

गौतम राजऋषि said...

मौद्गिल जी की जय हो। क्या चुन-चुन के काफ़िये लाये हैं गुरुदेव।

मक्ता तो कसम से जान निकाल रहा है।

नीरज गोस्वामी said...

भाई जी दीवाने तो आपके पहले से ही थे अब कसम से लट्टू हो गए...मकते ने जान लेली...इब के खा के कमेन्ट करूँ? ग़ज़ब कर नाखा रे मुदगिल गज़ब...
नीरज

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर लफ़्ज़ों के साथ.... बहुत सुंदर ग़ज़ल.....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई कमाल है! कितनी आसानी से आप इतना कुछ कह जाते है......लाजवाब गजल्!
तुस्सी ग्रेट हो जी :)

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

वाह वाह क्या खूब मियां

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह!! बहुत खूब!!
बहुत बढ़िया रचना।बधाई।

मुकेश कुमार तिवारी said...

आदरणीय योगेन्द्र जी,

चिट्ठा-चर्चा में श्रि शिवकुमार जी की रपट से यहाँ तक पहुँचा।

क्या कमाल किया है, इस बेहद खूबसूरत गज़ल "शब्दों से सहवास मियाँ" में।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

रंजना said...

Ekdam sach...

Bahut bahut sundar...

सुनीता शानू said...

योगेन्द्र भाई बहुत सुन्दर ग़ज़ल कहते है आप। शुक्रिया।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अंधों की दुनिया में काने ही होते हैं. सटीक.

Asha Joglekar said...

शब्दों से सहवास का अद्भुत प्रयोग बहुत ही भाया ।
सुंदर गज़ल ।