सपनों का अहसास, जरूरी आंखों में.
लम्हा-लम्हा प्यास, जरूरी आंखों में.
कस्में-वादे, हया-वफ़ा, रिश्ते-नाते,
कदम-कदम विश्वास, जरूरी आंखों में.
आएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
टिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा,
हरपल ये आभास, जरूरी आंखों में.
आंख खोल कर भी जो देख नहीं पाते,
उनके लिये उजास, जरूरी आंखों में.
मिशन हो के एंबीशन, लाइफ में बंधु,
सपने भी हों खास, जरूरी आंखों में.
पहली नज़र में पेंच अगर लड़ ही जाएं,
फिर तो बाईपास जरूरी आंखों में.
एक नज़्र का खेल 'मौदगिल' खेलो तो,
दृष्टिभेद विन्यास ,जरूरी आंखों में.
-योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
पहली नजर में ---
फिर तो बाईपास जरूरी आंखों में
किसका बाईपास जिससे पेंच लडा है या जिसने पेंच लडाया है!!
वाह! बेहतरीन
behatareen/lajawaab.pratyek sher.
"निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा
हर पल ये आभास जरूरी आँखों में ।"
बेहतरीन । सलोना-सा शेर । मन को भा गया ।
आभार ।
अच्छी रचना पर टिप्पणी लिखने की हिम्मत भी हो, जरूर हाथों में। बहुत कुछ कह गए जनाब आप तो बातों ही बातों में।
बेहतरीन लफ़्ज़ों के साथ सुंदर ग़ज़ल.....
निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा,
हर पल ये आभास, जरूरी आँखों में।
वाह मौदगिल भाई। बहुत खूब। हर शेर मजेदार। देखिये एक तुकबंदी मेरी भी -
मत घबराना ख्वाब अगर न पूरे हों
खुला हुआ आकाश, जरूरी आँखों में
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
हाय इस उम्र में तौबा,
ऐसी आशिक नजर ,कोई हसीना ,
बैठ ना जाए, घुस न जाए,इसलिए ,
मोतियाबिंद का वास , है जरूरी आखों में
योगेंद्र भाई,
बहुत बोलती हैं ये आंखें, ज़रा इन पे पर्दे गिरा दो
जय हिंद...
Bahut khoob !
जी लो जी भर जिन्दगी, जब तक जी सको !
फिर तो लेना ही है संन्यास जरूरी आँखों में !
चाहे कितने तूफां आयें जीवन में
फिर भी है उल्लास जरूरी आँखों में
बहुत ही बढ़िया रचना है।बधाई।
बहुत बेहतरिन , शुभकामनाएं.
रामराम.
bahot sundar gazal, nu ye rahya to mhaare bhi motiya bind ho jaga. ha ha ha ha, ram-ram
निंदक और आलोचक, मिशन या एम्बिशन।
क्या बात है योगेन्द्र जी, सोचने पर मजबूर कर दिया।
बढ़िया रचना।
आप छोटे छोटे वाक्यों में बड़ी बात कह देते हैं.
waah.........bahut hi sundar gazal.
ाइसी ही सुन्दर रचना रहे हर बार हमारी आँखों मे । लाजवाब धन्यवाद
... बेहद प्रसंशनीय गजल !!!
निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा,
हर पल ये आभास, जरूरी आँखों में।
बहुत सुंदर रचना
"निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा
हर पल ये आभास जरूरी आँखों में ।"
बहुत ही बढ़िया गजल ---सुन्दर भावों के साथ।
पूनम
बहुत ही बढ़िया गजल ---सुन्दर भावों के साथ।
Saral shabdon me gahri baat kahne me aapka koi sani nahin.
एक धाराप्रवाह उच्छश्रृंखल रचना.सुंदर.
आँखो ही आँखों में बहुत कुछ कह गई आपकी ये रचना...
bejod rachna
saargarbhit ,har bhaav ko samete hue
yakinan khoobsurat saral shabd or nirjhar bahav
daad hazir hai kubool karen
अल्टीमेट ग़ज़ल.....इससे ज़्यादा क्या कहूँ..ताऊ जी क्या कमाल कमाल की रचनाएँ करते है आप...आपकी लेखनी ऐसे ही दिन दूनी रात चौगुनी लोकप्रियता की मिशल बनाती रहे...बस भगवान से यही दुआ है..बढ़िया रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई..
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