गेरुआ चार व्यंग्यचित्र



गेरुआ : चार व्यंग्यचित्र------घनाक्षरी में

आज पहला...




घर में तो एक बीवी, काटती हरेक बात,
यहां तो निहाल हूं जी, चेलियों की फौज से.

हो गया था तंग, बदरंग हो गया था मैं,
घर में गृहस्थी के, क्लेश रोज-रोज से.

गेरुआ बदनधार, मन्दिर पै कब्जा कर,
तुम भी उठा लो लाभ, मेरी इस खोज से.

काहे मन मारते हो, खीजते हो, जलते हो,
देख मेरा खान-पान, रंग-ढंग, मौज से
--योगेन्द्र मौदगिल

16 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

चार चार लाइनों में कमाल कर रहें हैं,
आज कल घनाक्षरी में धमाल कर रहे हैं..

बढ़िया रचना..धन्यवाद जी

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मोडे तो रोज खाते खीर चुरमे मौज से
बण गये कई मोडे भागे हुए फ़ौज से
गेरुवा मै मुंह छुपा के कमंड्ल ले हाथ
चकमा देते रहते है पुलिस को खोज से

राम-राम योगेन्द्र जी जोरदार घनाक्षरी
नुए चार लाईन मै बी दे मारी मौज मै

डॉ टी एस दराल said...

पोंगा पंडितों की सही पोल खोली है, मौदगिल जी।

राज भाटिय़ा said...

यहां तो निहाल हूं जी, चेलियों की फौज
बहुत सुंदर लगी आज की आप की यह कविता

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर मलाईदार व्यंग्य!

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर !!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चारो चित्र चारु हैं जी!

Yogesh Verma Swapn said...

bahut chatak vyangya hain maudgil ji, apka ishtyle bhi nirala hai ji, bahut khoob,

Khushdeep Sehgal said...

योगेंद्र भाई,
कभी हमें भी उस दिव्यलोक( चेलियों की फौज) का नज़ारा कराइए...

जय हिंद...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हमारी हार्दिक शुभकामनाये आपके साथ है भरपूर लुफ्त उठाइये जीवन का !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लाजवाब लगी ये घनाक्षरी.....

महाराज्! बाबाओं तक तो ठीक है, लेकिन पंडितों पर थोडा रहम करना :)

दिगम्बर नासवा said...

जय हो गुरु देव की ...... बहुत जोरदार .....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

घनाक्षरी के भीतर व्यंग्य चित्रमाला है
ग़ज़ल के शक्ल में देखो गड़बड़झाला है

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen, maudgil ji ati sunder kataksh.

राजीव तनेजा said...

बहुत बढिया...पोल खोल रहे हैँ ...लगे रहें...जमे रहें...डटे रहें

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.