गेरुआ : चार व्यंग्यचित्र------घनाक्षरी में
आज पहला...
घर में तो एक बीवी, काटती हरेक बात,
यहां तो निहाल हूं जी, चेलियों की फौज से.
हो गया था तंग, बदरंग हो गया था मैं,
घर में गृहस्थी के, क्लेश रोज-रोज से.
गेरुआ बदनधार, मन्दिर पै कब्जा कर,
तुम भी उठा लो लाभ, मेरी इस खोज से.
काहे मन मारते हो, खीजते हो, जलते हो,
देख मेरा खान-पान, रंग-ढंग, मौज से
--योगेन्द्र मौदगिल
16 comments:
चार चार लाइनों में कमाल कर रहें हैं,
आज कल घनाक्षरी में धमाल कर रहे हैं..
बढ़िया रचना..धन्यवाद जी
मोडे तो रोज खाते खीर चुरमे मौज से
बण गये कई मोडे भागे हुए फ़ौज से
गेरुवा मै मुंह छुपा के कमंड्ल ले हाथ
चकमा देते रहते है पुलिस को खोज से
राम-राम योगेन्द्र जी जोरदार घनाक्षरी
नुए चार लाईन मै बी दे मारी मौज मै
पोंगा पंडितों की सही पोल खोली है, मौदगिल जी।
यहां तो निहाल हूं जी, चेलियों की फौज
बहुत सुंदर लगी आज की आप की यह कविता
सुंदर मलाईदार व्यंग्य!
बहुत सुन्दर !!!!
चारो चित्र चारु हैं जी!
bahut chatak vyangya hain maudgil ji, apka ishtyle bhi nirala hai ji, bahut khoob,
योगेंद्र भाई,
कभी हमें भी उस दिव्यलोक( चेलियों की फौज) का नज़ारा कराइए...
जय हिंद...
हमारी हार्दिक शुभकामनाये आपके साथ है भरपूर लुफ्त उठाइये जीवन का !
लाजवाब लगी ये घनाक्षरी.....
महाराज्! बाबाओं तक तो ठीक है, लेकिन पंडितों पर थोडा रहम करना :)
जय हो गुरु देव की ...... बहुत जोरदार .....
घनाक्षरी के भीतर व्यंग्य चित्रमाला है
ग़ज़ल के शक्ल में देखो गड़बड़झाला है
behatareen, maudgil ji ati sunder kataksh.
बहुत बढिया...पोल खोल रहे हैँ ...लगे रहें...जमे रहें...डटे रहें
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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