इस बार एक घनाक्षरी संभालिये साहेब
नीचे लिये मोटरसैकल, ऊपर चढ़ाये पैग,
छेड़ते हैं लड़कियां पीते-पीते सिगरेट.
रोटियों की थाली को तो 'शिट' कह दूर किया,
पूत जी ने गुटखे के साथ खाई चाकलेट.
साथियों के साथ लिये आड़ किसी दड़बे की,
गुप्तरोग माहिरों की बांच रहे बुकलेट.
घर बैठे टीवी से ही गुर सारे सीख लिये,
सनराइज़ कोठे पै तो बार में है सनसैट.
--योगेन्द्र मौदगिल
20 comments:
इसे तो साथ में पॉडकास्ट भी करना चाहिये था तो मजा दुगना हो जाता.
मैं सिर्फ इतना कहूँगी वाह !!
योगेन्दर जी थमने कर दिया कमाल
सुबेरे-सुबेरे मचा तो दिया धमाल
सारे लुंगाड़ो की युं खोल की पोल
जणु काली राम का पाट ग्या ढोल
राम-राम
बहुत खूब, पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते है !
वाह! बहुत अच्छी लगी यह रचना.....
वाह बहुत खूब बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढी शुभकामनायें
घनाक्षरी में घना मज़ा आया भाई जी...और भी सुनाओ तो और मज़ा आवे...
नीरज
मोदगिलजी, घनाक्षरी तो खूब कहे लेकिन शुभ-शुभ सिखाओ जी।
सही है..
वाह, मोदगिल जी, वर्ल्ड एड्स डे पर क्या बढ़िया संदेश दिया है। कोई समझ सके तो समझ ले।
Vah gurudev .... bhai ke kya kamaal likh diya ... bahut jordar ...
वाह्! यो घनाक्षरी तो जम्मीं कमाल की रही....अर इब की बार तो कईं मैंह दिख्याई दिए ।
कटाक्षों से भरपूर बढिया रचना
सटायर के चाहने वाले दिन याद आ गए.
सच में मौदगिल जी वे कविता से सच्ची मुहब्बत के दिन थे लोग कवि सम्मेलनों में उत्साह से जाते और बहुत आनंद उठाते थे.
आज फिर वही सब याद आया.
योगेंद्र जी आप ने आजकल के होनहार कपूतो के बारे बहुत अच्छी तरह लिख दिया. बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
रोटी की थाली को शिट कह कर दूर किया....ओफ.. यह पीढी
गजब भाई गजब.
रामराम.
खोल दिए भेद सारे आपने उनके,
जो रात के अंधेरे में, अंधेरों को छल रहें है,
चार लाइनें लिखी आपने, चारो बेहतरीन है,
आधुनिक पीढ़ी कुछ ऐसे ही ढल रहे है,
कौन समझाए इन्हे, बुद्धि भरभ्रष्ट है,
फेफड़े दारू और सिगरेट से गल रहे है,
सब खामोश बस तमाशा देख रहे है, कौन बोले
आज कल इन्हीं के दम से तो सरकार चल रहे है,
Teenon hee rachnayen ekdam naye rang aur tewar liye...Waah ! Waah ! Waah ! lajawaab !!!
वाह, मज़ा आ गया. समीर जी की पॉडकास्ट की सलाह पर भी ध्यान दें कृपया!
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