एक ग़ज़ल और.....
फक़त आपके लिये.....
जब भी देखूं आईना तो धड़ से गायब सर लगे.
सरकटा धड़ देख अपना सच बहुत ही डर लगे.
मुझको तेरी बेवफ़ाई पर यकीं बिल्कुल न था,
अन्ततः करना पड़ा जब पीठ पर खंज़र लगे.
अल्लसुबह परमात्मा का नाम लेकर चीखना,
तुम यकीं कर लो तो कर लो मुझ को आडम्बर लगे.
डाइनिंग-टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां,
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे.
दोस्तों की देख कर चश्में-इनायत 'मौदगिल',
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे.
-योगेन्द्र मौदगिल
25 comments:
एक से एक बढ़कर ,सचमुच वाह !
सभी शेर लाजवाब. बहुत ही सुन्दर
आज तो बिलकुल ही मंत्रमुग्ध कर दिया मौदगिल सर... एक एक शेर दिल में उतर गया.. कैसे इतना सोच लिया???
जय हिंद...
गाँव अब भी विकास के लिए जूझ रहा
खुद अपने में उलझा उलझा शहर लगे,
आदमी के रूप में जानवर घूम रहे है,
हर तरफ खौफनाक मंज़र लगे,
सड़क भी मौत का समान लिए पसरे पड़े है,
सबसे सुरक्षित बस बंद घर लगे,
बदलते दौर पर एक बढ़िया पेशकश..बधाई
ये रोबोटों के शहर हैं,
दूर से हैलो-हाय कहना ही बेहतर...
हाथ मिलाया तो जल जाओगे...
जय हिंद...
एक-एक शब्द कटाक्ष करता प्रतीत हुआ ...बहुत बढिया
बहुत सो लिए एसी डबल बेडरूमों में,
आज तो खुली छत पे ही बिस्तर लगे ॥
वाह मौदगिल जी ..कमाल सभी एक से बढ के एक ..मैंने भी एक अपना चेप दिया
अजय कुमार झा
आज के हालात का पूरा जायजा
अल्लसुबह परमात्मा का नाम लेकर चीखना,
तुम यकीं कर लो तो कर लो मुझ को आडम्बर लगे.
डाइनिंग-टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां,
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे.
waah bahut khub,saare ke saare sher lajawab,aaj ki satyata darshate huye.
Yah gazal bhi kataaksh karti hui hai..
sabhi sher ek se badh kar ek hain!
dusra sher gazab ka laga!
मुझ को तेरी बेवफ़ाई....... अरे वाह सभी शेर एक से बढ कर एक बहुत खुब जनाब
धन्यवाद
किस की तारीफ़ करें, सारे शेर मंत्रमुग्ध करने वाले हैं।
बहुत बढ़िया, योगेन्द्र जी।
अलसुबह परमात्मा का नाम लेकर चीखना
तुम यकीं कर लो तो कर लो मुझको आडम्बर लगे
डाइनिंग टेबल के नीचे से पकड़ना रोटियाँ
शख्श ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
--वाह, कविजी! इन दो शेरों में आपने गज़ब ढाया है!
नये अंदाज़ में बेखौफ लिखा है मजा आ गया।
डाइनिंग टेबल के नीचे से पकड़ना रोटियाँ
शख्श ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
bahut khoob kya tulna ki gayi ,man khush ho gaya is andaaz pe likhi hui rachna se .
योगेन्द्र भाई मतला और शुरू के दोनों शेर कमाल के लिखे हैं । विशेष कर मतले के बाद का पहला ही शेर बहुत उम्दा बन पड़ा है । दोनों मिसरों में ग़ज़ब की तारतम्यता है । दोनों एक दूसरे के इस कदर पूरक बने हैं कि सुनते ही एक आनंद का माहौल बन रहा है । आपकी लेखनी पानीपत के मैदानों की लेखनी है तो इतनी आग तो उसमें होना स्वभाविक है । बेवफाई वाला शेर लम्बी दूरी का शेर है ।
अल सुबह परमात्मा का नाम लेकर चीखना....
भाई जी आपके इस शेर को पढ़ कर 'कबीर' के दोहे याद आ गए...इस से अधिक क्या प्रशंशा करूँ...बेहतरीन
नीरज
क्या कहूँ.. सर जी. इस बार आपने लाजवाब कर दिया..
ऐसा लाहा जैसे इस ग़ज़ल में आपने मेरे जैसे नवोदित के भी साम्य भाव को बड़ी सुन्दरता से उठाया है.
पानीपत के इस योद्धा की जय हो.
- सुलभ
गहरा कटाक्ष है ...... अप जब भी लिखते हैं ..... भूचाल आ जाता है ....... कमाल का लिहा है .... प्रणाम ........
नमस्कार यौगेन्द्र जी,
एक और खूबसूरत मोती आपकी गज़लों के हार से, मतला लाजवाब बन पड़ा है.
ये शेर "मुझको तेरी बेवफाई......." और "डाइनिंग टेबल....." के बारे में क्या कहूं, वाह वाह वाह वाह.
अल्लसुबह परमात्मा का नाम लेकर चीखना,
तुम यकीं कर लो तो कर लो मुझ को आडम्बर लगे.
वाह वाह बहुत खुब
सभी शेर एक से बढ कर
बधाई
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
प्रत्येक बुधवार रात्रि 7.00 बजे बनिए
चैम्पियन C.M. Quiz में
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
क्रियेटिव मंच
सच को बहुत ही शानदान ढंग से बयां किया है आपने।
------------------
क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
वाकई ! हकीकत बयान की है आपने, आनंद आगया मुदगिल साहब !
डाइनिंग-टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां,
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे.
Bahut khub likha hai.Shubkamnyen.
योगेन्द्र जी मेरे गरीबखाने में पधारने का शुक्रिया ,मैं पुनः मुन्तजिर हूँ
कविताएँ और कविसम्मेलन दोनों से मेरा गहरा नाता है ,सुनना - सुनाना ही तो ज़िंदा रखे हुए है
आपकी गजल की तारीफ़ तो ऊपर सभी ने कर ली ,मैं भला क्या कहूँ ,मैं चकल्लस और हरियाणा..... दोनों ही घूम आयी ,शायद आउटर पे सदियों से रुकी हैं ये गाड़ियां ,मगर पसंद आयीं
bahut khoob, aaj ke naujawanon ka sunder shabd charitrik chitra. behatareen.
Post a Comment