लीजिये साहेब एक ग़ज़ल के साथ एक बार फिर उपस्थित हूं
गलियों ने तो दुलराया.
चौराहों ने भटकाया.
जब भी बास ने धमकाया.
बीवी पर वो गुस्साया.
तन को जब भी समझाया.
पापी मन आड़े आया.
उजले-उजले लोगों ने,
शहर डराया-धमकाया.
पहले दरपन खूब तका,
फिर वो आंसू भर लाया.
चिंदी-चिंदी रिश्तों में,
कैसा मोह, कैसी माया ?
शहर तो सुंदर सपना है,
गांव लौट कर बतलाया.
मां ने जी भर कर देखा,
ब्याहा बेटा घर आया.
आंगन की दीवारों ने,
अनहोनी को उकसाया.
उसने सपने ही देखे,
उसने धोखा ही खाया.
मौसम ने आवाज़ें दी,
हवा ने मुझको सहलाया.
चलो 'मौदगिल' भाग चलें,
यहां किसी का है साया.
-योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
Bahut hi umdaa... padh kar man tar ho gaya ji...
Jai Hind...
सुन्दर रचना बस वही तन मन के द्वंद्व से बचना !
पहले दरपन खूब तका
फिर वो आंसू भर लाया
बहुत खूब मौदगिल भाई।
बहुरंगी हैं भाव गजल के
सुमन देखकर मुस्काया
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
waah jabardast khas kar boss aur darpan wale sher,behad pasand aaye.
पहले दरपन खूब तका
फिर वो आंसू भर लाया
बहुत बढिया
कहाँ जायेगे भाग कर साये से ....डट कर मुकाबला करें ...!!
bahut hi sunder ghazal....
सुन्दर योगेन्द्र भाई,हमेशा की तरह वर्तमान के बारे मे बहुत कुछ कह गये आप।
हकीकत बयान कर दी , मौदगिल साहब, बहुत सुन्दर !
जाएंगे पर किधर,
किसे है ये ख़बर ...
है ये कैसी डगर,
कोई समझा नहीं,
कोई जाना नहीं...
जय हिंद...
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
सामयिक और सार्थक गजल।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
बॉस का गुस्सा तो पत्नी पर ही निकलता है। यानि खिसियाई बिल्ली खंबा नोचे।
बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है, योगेन्द्र जी।
मां ने जी भर देखा, ब्याहा बेटा घर आया.
आंगन की दीवारो ने, अनहोनी को उकसाया.
हमेशा की तरह से बहुत सुंदर योगेंद्र जी आप की यह रचना भी
धन्यवाद
behatareen/lajawaab hamesha ki tarah.
हमेशा की तरह आपकी ये रचना भी बहुत ही बढिया लगी....
आभार्!
चलो भाग चले...
आप इसी आदत के कारण हर बार क्षमा प्रार्थी बने रहते हैं, खूबसूरत कम ही शब्दों का निराला खेला है आपका, आपको ही आता है.
बहुत खूब।
CHINDI CHINDI RISHTON MEIN ...
BAHUT GAHRI BAAT LIKH DI HAI MODGIL SAHAB ... HAMESHA KI TARAH LAJAWAAN ...
गलियों ने तो दुलराया
चौराहों ने भटकाया
--वाह लाजवाब पंक्तियाँ हैं
ये दुनिया के रंग रूप है,
आपने जो समझाया,
बढ़िया रचना प्रस्तुत करके,
दिल में जगह बनाया..
धन्यवाद
बीबी बेचारी शरीफ है जो बास की जगह ले लेती है, गुस्सा उतारने को :)
chinddi chinddi rishton men
kaisa moh kaisi maya....
bahut khoobsurati se man ke darpanko dikhaya hai.....sundar kriti...badhai
हमेशा की तरह लाजवाब गजल।
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सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।
MAA NE JEE BHAR KAR DEKHA
BYAAHAA BETA GHAR AAYAA
BAHUT KHOOB MAUDGIL JEE.
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
wah maudgil ji,
allsubah ................adambar lage.
behatareen sabhi sher lajawaab.
गज़ब का लिखते हो भाई !
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