कुछ दोहे और हाज़िर करता हूं...........
अब किसका विश्वास हो, किसका करें यक़ीन.
ना कौड़ी के तीन हैं, ना तेरह में तीन..
लक्कड़बग्घे, तेंदुए, गीदड़, कव्वे, सांप.
खड़े इलैक्शन में हुए, तन पर खादी ढांप.
समय-समय की बात है, समय-समय का फेर.
चश्में चोकन्ने फिरैं, अन्धे हाथ बटेर.
पंत, निराला, जायसी, याद नहीं टैगौर.
नवपीढ़ी की सोच में, बस केबल का दौर.
बच्चा-बच्चा जानता, यहां देह का अर्थ.
देश में कालिदास के, केबल हुआ समर्थ.
अग्निपरीक्षा-चीरहरण, जब-तब भरी जमात.
सीता हो या द्रौपदी, हैं औरत की जात.
घर में भी चलने लगा, जंगल का कानून.
जितने पैने दांत हों, उतना मिलता खून.
--योगेन्द्र मौदगिल
20 comments:
har doha apne aap mein sampoorn hai....
aadarniya moudgil ji....
bahut achchi lagi aapki yeh rachna...
हर एक दोहा सच्चाई बयान करता हुआ , बहुत खूब !
ghar men bhi..............khoon.
behataree/lajawaab. badhaai sweekaren.
ghar men bhi..............khoon.
behataree/lajawaab. badhaai sweekaren.
GURUDEV ...... BAHOOT DHO DHO KAR MAARTE HO ... IN NETAAON KO TO KHAAS KAR ... PAR MAJAA AATA HAI BAHOOT .. LAJAWAAB DOHE ... KAMAAL KE
बहुत सुंदर जी आप के दोहे
बहुत सुन्दर सामयिक दोहे लगे. आभार
भाई जी आपसे बड़ा तो हूँ उम्र में लेकिन फिर भी आपको प्रणाम करता हूँ...आपकी विलक्षण प्रतिभा को नमन करता हूँ...एक एक दोहा अनमोल है...इतने सादे शब्दों में इतनी गहरी बात...उफ्फ्फ...चमत्कार है भाई जी चमत्कार....बेजोड़ दोहे हैं...क्या आनंद आया है पढ़ कर बयां नहीं कर सकता...इश्वर आपको सदा खुश रखे...
नीरज
Har doha apne aap mein duniya ko dikhata hua
....... aur kaalidaas wala sher kamaal
घर में भी चलने लगा, जंगल का कानून
जितने पीने दांत हों, उतना मिलता खून
वह योगेन्द्र जी, बहुत गहरी बात कह गए.
सभी दोहे लाज़वाब.
@ नीरज जी,
आप सरीखे अग्रज़ जिस के सर पर आशीष का हाथ रखें हों वो ऐसे दोहे नहीं कहेगा तो और कौन...? मुझे प्रसन्नता इस बात की है ब्लाग-जगत के दिग्गजों का भरपूर स्नेह सदैव ही मेरे साथ रहा है. मैं आप सहित सभी को प्रणाम-वंदन निवेदित करता हूं......
क्या बात है गुरूवर...क्या बात है!!!
सारे दोहे लाजवाब...एक दो उठाये ले जा रहा हूं यदा-कदा कोट करने के लिये यत्र-तत्र-सर्वत्र...विशेष कर पहला,तीसरा और पांचवा
अच्छा लिखा है आपने । सहज विचार, संवेदनशीलता और रचना शिल्प की कलात्मकता प्रभावित करती है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
कविता का ब्लाग है-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
योगेंद्र भाई ये अत्याचार है आप इतना अच्छा लिखोगे तो बाकी लोगों का क्या होगा । दूसरा दोहा तो ऐसा है कि उसे चुरा लेने की इच्छा हो रही है ।
कुछ दोहो में भाव भर,प्रस्तुत किया समाज,
घर-परिवार सभी हैं दूषित, आधुनिकता में आज,
ज्ञान सीखने में अव्वल है, टी. वी का प्रोग्राम,
डूब रही युवा पीढ़ी,उन्हे बचाए राम..
दोहों में क्या ठूंस ठूंस कर आज की सचाई भरी है लकडबग्घे..........
पंत निराला......
और घरमें भी चलने लगा ..............
बहुत ही बढिया लगे ।
गुरूदेव, ये दोहे तो कमाल के हैं। एक ही बार में याद हो गये। इसे कहते हैं-गागर में सागर। बहुत-बहुत बधाई।
सार्थक दोहे। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Vilakshan !!!!
jinamste, bahut achha laga aapki rachanaye padkar....
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