बारी-बारी लोग मरते ही रहे,
कोई मस्ज़िद कोई मंदर के लिये.
उम्र भर घर में रहा लेकिन मुझे,
स्वप्न आते ही रहे घर के लिये.
आबरू से बेशकीमत लाल को,
बेच डाला तूने कंकर के लिये.
ये है कलियुग काम पत्थर से चला,
ताकना मत बाट गौहर के लिये.
धीरे-धीरे फूंक डाला ज़िस्म को,
वासनाऒं के बवंडर के लिये.
आजमाये कौन मन की योजना,
लोग चिंतित तन के पिंजर के लिये.
आदमी के पाप ले बहती रही,
हर नदी सीधे समंदर के लिये.
भू को बंजर कर दिया पर 'मौदगिल'
वक्त है कुछ सोच अंबर के लिये.
--योगेन्द्र मौदगिल
35 comments:
यूं कहां बयां कर पाता है हर कोई,
मुमकिन है तोम किसी धुरंधर के लिये॥
मौदगिल जी ...बहुत ही सुंदर गज़ले हैं जी...और क्यों हैं ये हमने भी बता दिया है..
अजय कुमार झा
बहुत जबर्दस्त रचना मौदगिल जी -ह्रदय को बेध गयी
हर शेर अपने आपमें एक नया युग बोध लिए हुए !
घर में रहते घर के सपने देखना ...भू को बंजर करने के बाद अम्बर की सोचना ...
अच्छी ग़ज़ल ..!!
एक खूबसूरत रचना..एक से बढ़ कर एक पंक्तियाँ...सुंदर भाव ..धन्यवाद योगेंद्र जी..
बहुत बढिया रचना !!
आजमाए कौन मन की...
वाह वाह बहुत गहरी बात ! ग़ज़ल के सब शेर बहुत उम्दा है बधाई !
भू को तो बंजर कर ही दिया मौदगिल,
अब कुछ सोच अम्बर के लिए
बहुत खूब मौदगिल साहब !
बेहतरीन ग़ज़ल कही.योगेन्द्र जी..........
बधाई !
गाम्भीर्य को अपने में समेटे सुन्दर गज़ल
बहुत गहरी बात कही.
रामराम.
हीरा तो यहाँ है जी. बहुत सुन्दर. आभार.इतनी अच्छी रचना के लिए.
मह्त्वाकांक्षाओं की उड़ान इतनी ऊंची है के,
लगता नही कि बच पायेगा अंबर,इंसान से।
बहुत खूब योगेन्द्र भाई।
सुन्दर भावों से सुसज्जित रचना के लिए बधाई
umda gazal ke liye badhai weekren.
लाजवाब गुरूवर...अनूठे शेर...
"आजमाये कौन मन की योजना/लोग चिंतित तन के पिंजर के लिये"...एकदम नायाब शेर!
नए भाव नया तेवर नया अंदाज़...भा गया दिल को कसम से...वाह...
नीरज
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, बेहतरीन पंक्तियों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
दमदार ग़ज़ल।
आदमी के पाप ले बहती रही
हर नदी समन्दर के लिए
बहुत खूब। यूँ तो पूरी कविता ही सुन्दर है। आदमी अभी भी सुधर जाए तो अच्छा है।
एक खूबसूरत रचना
आदमी के पाप ले बहती रही
हर नदी समन्दर के लिए. कमाल है.
आदमी के पाप ले बहती रही,
हर नदी सीधे समंदर के लिये.
भू को बंजर कर दिया पर 'मौदगिल'
वक्त है कुछ सोच अंबर के लिये.
बहुत खूब.
बहुत उम्दा रचना सर.शाश्वत चिंताओं का शाश्वत मूल्य लिए चिंतन.
आजमाये कौन मन की योजना
लोग चिंतित तन के पिंजर के लिये ।।
आज तो आपने कमाल ही कर डाला... तारीफ के लिए शब्दों का चुनाव ही नहीं कर पा रहा हूँ ।
Harek sher hee gahre bhaav liye.. bahut hi sundar rachna...sadaiv ki bhanti .....
Aanand aa gaya padhkar...Aabhaar.
बहुत सुंदर गजल.
धन्यवाद
बहुत सुंदर गजल.
धन्यवाद
aap blog per aaye shukriya.mere no' hain-o9414523730 aur 09829317780.pat hai-dr kavita'kiran'nehru colony,falna-306116(raj)
plz aapka pata bhi choden.
bahut khoob mudgil ji, hamesha ki tarah lajawaab.
एक से एक लाजवाब शेरों से बनी ये गजल एक हीरों का हार बन गई है ।
एक बेहतरीन रचना ।
बधाई ।
सुभानाल्लाह......!!
योगेन्द्र जी ये चहरे में इतना परिवर्तन कैसे ....??
बस यही देखने चली आई .....आप वही हास्य लेखन वाले मौदगिल ही हैं न ....????
बहुत बेहतरीन गजल एक नय रंग और अंदाज में।
बहुतखूब ।
भाई आपकी यह रचना कबीर के बहुत पास है. शुभकामनाएं.
आबरू से बेशकीमती लाल को,
बेच डाला तूने कंकर के लिये.
विरोधाभाषी तेवर की गजल. बहुत सुन्दर
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