एक नवगीत.... बस्तियों की बस्तियां

एक नवगीत सादर प्रस्तुत कर रहा हूं



दस्तखत विकास के
परिवर्तनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम

बाबूऒं की बेहयायी
राम.. राम.. राम..
गोपनीय फाइलें भी हो रही नीलाम

पैरवी भी
फैसले भी
दुर्जनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम

दुष्टता की भैरवी को
काल का प्रणाम
धान्य से भी
है समर्थ
गोरियों का चाम


थालियों ने
कर दिये तल
बैंगनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम

राजनीति भ्रष्टता को
कर रही सलाम
भद्रता ने
ले लिया
पाताल में विराम
श्रम भी
गिरवी रख दिया है
साधनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम
--योगेन्द्र मौदगिल

28 comments:

Unknown said...

गज़ब है जी नवगीत
बधाई !

Mumukshh Ki Rachanain said...

समाज के सच को उजागर करता एक और अद्भुत नवगीत.
बधाई स्वीकार करें

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

mehek said...

बाबूऒं की बेहयायी
राम.. राम.. राम..
गोपनीय फाइलें भी हो रही नीलाम

waah sachhi satik rachana,badhai

Mithilesh dubey said...

समाज के सच को उजागर करती लाजवाब रचना।

ओम आर्य said...

समाज को आइना दिखता एक सच...........अतिसुन्दर

Chandan Kumar Jha said...

कटु सत्य को उजागर करती एक सुन्दर नवगीत । आभार ।

राज भाटिय़ा said...

दस्तखत विकास के
परिवर्तनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम
क्या बात है योगेन्द्र जी, एक ओर कटू सत्य

धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

राजनीति भ्रष्टता को
कर रही सलाम
भद्रता ने
ले लिया
पाताल में विराम.....

gazab का navgeet है gurudev pranaa है आपकी kalam को ......... आज के haalaat का kekha jikha हर रूप में आप लिख देते हैं ........ chahe gazal हो, गीत या navlekhan .......... samaajik chntan aake ragon में है, लाजवाब,............. प्रणाम है hamaara ............

नीरज गोस्वामी said...

थालियों ने
कर दिये तल
बैंगनों के नाम

भाई जी...जय हो...गुजारिश है की लौटती डाक से अपनी चरण पादुकाएं भिजवा दो...बड़ा होने के बावजूद भरत बनने की प्रबल इच्छा हो रही है...
नीरज

Vinay said...

वाह रस आ गया, बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Yogesh Verma Swapn said...

nai shaili, uttam rachna.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक रचना.

रामराम.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

दस्तखत विकास के
परिवर्तनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां
महाजनों के नाम।।

वाह्! सच ब्यां करती एक् बेहतरीन प्रस्तुति!!

सुशील छौक्कर said...

सच के करीब है आपका ये नवगीत।
दस्तखत विकास के
परिवर्तनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम

बहुत खूब।

समयचक्र said...

सत्य को स्वीकार करती अच्छी रचना . आभार

समयचक्र said...

सत्य को स्वीकार करती अच्छी रचना . आभार

Ankit said...

नमस्कार यौगेन्द्र जी,
बेहतरीन गीत है.

Anonymous said...

आजके समाज पर सटीक व्यंग्य है यह नवगीत।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

विनोद कुमार पांडेय said...

जी रहे हैं, कुछ वहाँ
नाम का बस छत जहाँ,
रोटियों की चाह में,
चल रहे हैं राह मे,
दिन कहाँ पता नही,
उनकी कुछ खता नही,
नींद तक हराम,
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम!!!

कमाल की लेखनी!!!

कंचन सिंह चौहान said...

kya kahane .....!!!!!

राजीव तनेजा said...

कम शब्दों में तीखे व्यंग्य कर डालना आपकी सबसे बड़ी खूबी है ...


बधाई

Asha Joglekar said...

Wikas ke dastakhat bilkul theek utare hain aapne. teekhi rachna chubhane wali.

Alpana Verma said...

बहुत उम्दा!
समाज के विभिन्न पहलुओं पर आप की रचनाएँ..समाज को आईना दिखाती हुई हैं.

Nitish Raj said...

बहुत ही उत्तम बहुत बढ़िया।

Pritishi said...

बढ़िया गीत, योगेन्द्र जी!

थालियों ने
कर दिये तल
बैंगनों के नाम
बस्तियों की बस्तियां महाजनों के नाम

यह पंक्तियाँ सबसे अधिक पसंद आयीं !

कविता का फोर्मेट कहीं कहीं बदल रहा है | बहरहाल बहाव पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा |

Pranaam
RC

रंजना said...

वाह !! लाजवाब !!

आपकी कवितायेँ पढ़ मन आनंदविभोर न हो जाये .... यह भला हो सकता है.....

आपको तथा आपकी लेखनी को नमन..

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत खूब गुरुदेव! नवगीत में तेज़ धार है.

आपके लिए एक परोडी भी ख़ास है.

कवि: सुलभ सतरंगी (यादों का इंद्रजाल पर)

Pritishi said...

थालियों ने
कर दिये तल kar
बैंगनों के नाम

bahut khoob rachana. Kaafi dinon baad aapke blog per aana hua. Navgeet padhkar achcha laga.

Pranaam
RC