बेमतलब की बातें की

अन्यान्य कारणों से बहुत दिनों से निरन्तरता बाधित थी. अब पुनर्प्रयास में हूं और एक ग़ज़ल के साथ आपके समक्ष... विश्वास है पहले की तरह स्वीकारेंगें....




उजले-उजले नेताऒं ने काली शब की बातें की.
खादी के ठेकेदारों ने फिर मज़हब की बातें की.

भूख, गरीबी, लाचारी को छोड़ मौसमी शेर कहे,
दानाऒं ने जब भी की तो बेमतलब की बातें की.

मुझे सयानों की बातों पर बहुत तरस आया लोगों,
कमज़र्फों ने महफिल-महफिल, यों बेढब की बातें की.

सारी उमर गंवा कर बाहर परदेसी घर लौटा तो,
अम्मां-बीवी-बच्चों ने मतलब-मतलब की बातें की.

कुछ साथी कच्ची-पक्की के मिले थियेटर के आगे,
मीठी यादें ऐसे उभरी सब ने सब की बातें की.

जादू, परियां, तितली, सर्कस, फूल, परिंदे और गुलाब,
बच्चों ने बातों-बातों में अपने ढब की बातें की.

ज़िंदा था माहौल 'मौदगिल' जब तक महफिल में तू था,
तेरे जाते ही लोगों ने फिर जब तब की बातें की.
--योगेन्द्र मौदगिल

36 comments:

रविकांत पाण्डेय said...

उजले-उजले नेताऒं ने काली शब की बातें की.
खादी के ठेकेदारों ने फिर मज़हब की बातें की.

भूख, गरीबी, लाचारी को छोड़ मौसमी शेर कहे,
दानाऒं ने जब भी की तो बेमतलब की बातें की.

बहुत अच्छा!! आज की सुबह का आगाज़ आपकी जानदार गज़ल से हुआ!!! सरस्वती की कृपा ऐसी ही बनी रहे आपकी लेखनी पर और हमें बेहतरीन गज़लें मिलती रहें पढ़ने को।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन...आनन्द आया!!

Urmi said...

वाह बहुत बढ़िया लगा! इस शानदार और उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !

दिनेशराय द्विवेदी said...

जनता ने क्या बातें की? अगली ग़ज़ल का इंतजार है।

Unknown said...

bahut khoob yogendraji,

waah

कुछ साथी कच्ची-पक्की के मिले थियेटर के आगे,
मीठी यादें ऐसे उभरी सब ने सब की बातें की.

badhaai !

वाणी गीत said...

सारी उमर गंवा कर बाहर परदेसी घर लौटा तो,
अम्मां-बीवी-बच्चों ने मतलब-मतलब की बातें की.
सच है कभी कभी दूरियां रिश्तों में औपचारिकता भर देती है..!!

निर्मला कपिला said...

उजले-उजले नेताऒं ने काली शब की बातें की.
खादी के ठेकेदारों ने फिर मज़हब की बातें की.

भूख, गरीबी, लाचारी को छोड़ मौसमी शेर कहे,
दानाऒं ने जब भी की तो बेमतलब की बातें की
लाजवाब गज़ल के लिये बधाइ

Himanshu Pandey said...

"मुझे सयानों की बातों पर बहुत तरस आया लोगों,
कमज़र्फों ने महफिल-महफिल, यों बेढब की बातें की."

मुझे तो जम गयीं यह पंक्तियाँ । आभार ।

seema gupta said...

जादू, परियां, तितली, सर्कस, फूल, परिंदे और गुलाब,
बच्चों ने बातों-बातों में अपने ढब की बातें की.

बेहद... खुबसूरत पंक्तियाँ...
regards

अमिताभ मीत said...

क्या बात है भाई. बेहतरीन ग़ज़ल. और ये शेर बस गया ज़हन में .......

भूख, गरीबी, लाचारी को छोड़ मौसमी शेर कहे,
दानाऒं ने जब भी की तो बेमतलब की बातें की.

लाजवाब.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सुन्दर और मनोरंजक

विनोद कुमार पांडेय said...

उजले-उजले नेताऒं ने काली शब की बातें की.
खादी के ठेकेदारों ने फिर मज़हब की बातें की.

Behtareen Gazal..

Anil Pusadkar said...

हमेशा की तरह शानदार।

Shardul said...

जादू, परियां, तितली, सर्कस, फूल, परिंदे और गुलाब,
बच्चों ने बातों-बातों में अपने ढब की बातें की.
...

Vinay said...

सयानी रचना है
---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव

Arshia Ali said...

अति सुंदर।
( Treasurer-S. T. )

दिगम्बर नासवा said...

सारी उमर गंवा कर बाहर परदेसी घर लौटा तो,
अम्मां-बीवी-बच्चों ने मतलब-मतलब की बातें की.

सच में दुनिया मतलब की ही है ............ सार्थक, सच कहा है गुरु देव .........

ओम आर्य said...

भूख, गरीबी, लाचारी को छोड़ मौसमी शेर कहे,
दानाऒं ने जब भी की तो बेमतलब की बातें की.
बहुत ही सुन्दर .........क्या बात है........

रंजना said...

इसबार की आपकी इस रचना में ओज के स्थान पर भावुकता का आधिक्य मिला....पर यह रंग भी बड़ा ही अच्छा लगा...

Chandan Kumar Jha said...

बहुत ही सार्थक रचना. सत्य के करीब.

क्षमा करें पर इन शब्दों का अर्थ मैं समझ नहीं पाया....

कमज़र्फों

दानाऒं

-आभार.......

Rashmi Swaroop said...

Really great, sir !!!

Rashmi Swaroop said...

And thanx for coming on my blog, :)

Pritishi said...

Yeh teen ashaar sabse zyada pasand aaye (iska matlab poori Gazal achchi lagi aur ye favorite hain!)

भूख, गरीबी, लाचारी को छोड़ मौसमी शेर कहे,
दानाऒं ने जब भी की तो बेमतलब की बातें की.

कुछ साथी कच्ची-पक्की के मिले थियेटर के आगे,
मीठी यादें ऐसे उभरी सब ने सब की बातें की.

ज़िंदा था माहौल 'मौदगिल' जब तक महफिल में तू था,
तेरे जाते ही लोगों ने फिर जब तब की बातें की.

Pranaam
RC

शेफाली पाण्डे said...

जादू, परियां, तितली, सर्कस, फूल, परिंदे और गुलाब,
बच्चों ने बातों-बातों में अपने ढब की बातें की.
bahut sundar.......

अनिल कान्त said...

mazaa aa gaya

"अर्श" said...

सारी उमर गंवा कर बाहर परदेसी घर लौटा तो,
अम्मां-बीवी-बच्चों ने मतलब-मतलब की बातें की.

इस शे'र ने मुझे यका- यक चौका दिया .. क्या खूब कही है आपने ... कितनी शालीनता है इस अदब में भी .. ये शे'र खासा पसंद आया ... सलाम हुज़ूर...

अर्श

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन भाई.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन भाई.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन भाई.

रामराम.

Yogesh Verma Swapn said...

ek baar phir behatareen kalakaari, wah. lajawaab rachna ke liye badhaai.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

जादू, परियां, तितली, सर्कस, फूल, परिंदे और गुलाब,
बच्चों ने बातों-बातों में अपने ढब की बातें की।।

वाह्! बहुत बढिया मनभावन रचना!
आभार्!

राजीव तनेजा said...

उजले-उजले नेताऒं ने काली शब की बातें की.
खादी के ठेकेदारों ने फिर मज़हब की बातें की...


बहुत खूब...

Asha Joglekar said...

Behatareen.

Apane jab bhee kee baten blog par, Maudgil sahab
Ek muskan khilade lab par aisee aisee baten kee.
Dhanyawad

sandhyagupta said...

Chliye der aaye par durust aaye.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

कैसे अनायास ही लिख लेते हैं इतनी अच्छी ग़ज़लें आप?

ज़िंदा था माहौल 'मौदगिल' जब तक महफिल में तू था,
तेरे जाते ही लोगों ने फिर जब तब की बातें की.

कई बार हम आधुनिक समाज की अच्छाइयाँ-बुराइयाँ बयां करते-करते ग़ज़ल कहने के बेसिक कमनीयता से हट जाते हैं। आपका मक़्ता इस नज़र से बहुत अच्छा लगा।

जितेन्द़ भगत said...

सुंदर और यथार्थ।