मंच के संचालकों को.....

नित नये चेहरे पहन जो लोग इतराते रहे.
मंच के संचालकों को लोग वे भाते रहे.

मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे.

आपके ऊंचे महल, ऊंची दुकानें, आप क्यों,
एक अदना झोंपड़ी को देख घबराते रहे.

एक ऐसा हादिसा कल फिर शहर में हो गया,
क़त्ल कर के लोग ईश्वर के भजन गाते रहे.

भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे.

सांप के बच्चे बड़े मक्कार कातिल दुष्ट थे,
दूध भी पीते रहे नरमांस भी खाते रहे.

मौत हो जाती सहज ये जान लेता मैं अगर,
रिश्तेदारों से मियां क्यों खोखले नाते रहे.
--योगेन्द्र मौदगिल

37 comments:

श्यामल सुमन said...

एक ऐसा हादिसा कल फिर शहर में हो गया,
क़त्ल कर के लोग ईश्वर के भजन गाते रहे.

बहुत खूब योगेन्द्र भाई। कुछ मेरी तरफ से भी-

सत्य किन्तु चोट करती है गजल की पंक्तियाँ
आईना हर शख्स को बस यूँ ही दिखलाते रहे

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

वाणी गीत said...

रिश्तेदारों से क्यों खोखले नाते रहे ..!!
बहुत बढ़िया ..!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे.

वाह...वाह...
मौदगिल जी।
आपने तो सच्चाई को आइना दिखा दिया।

Arvind Mishra said...

अब कोई कहे की ब्लॉग जगत में साहित्य नहीं लिखा जा रहा तो हम उसे क्या कहें -दिल पर सीधे वार करती कविता ! ख़ास तौर पर यह -
मौत हो जाती सहज ये जान लेता मैं अगर,
रिश्तेदारों से मियां क्यों खोखले नाते रहे.

संजीव गौतम said...

बहुत बढिया भाई जी आपने तो अंदर तक तिल्मिला और गुदगुदा दिया.

ताऊ रामपुरिया said...

बिल्कुल सटीक रचना.

रामराम.

डॉ. मनोज मिश्र said...

एक ऐसा हादिसा कल फिर शहर में हो गया,
क़त्ल कर के लोग ईश्वर के भजन गाते रहे.
भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे...
vaah,behtreen.

राजीव तनेजा said...

भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे.

सांप के बच्चे बड़े मक्कार कातिल दुष्ट थे,
दूध भी पीते रहे नरमांस भी खाते रहे.

गुरूवर, आप तो बड़ी खतरनाक गज़लें लिखते हैँ...पता नहीं कितनों के अंतर्मन छलनी हो जाते होंगे

Unknown said...

gazab ka kaam...............

yaugendraji,
kamaal ka kaam kar diya ghazal me aapne..
saare she'r umdaa aur bhaari...

waah waah !
mubaaraq !

विवेक सिंह said...

मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे.


देखिये जी अब ऐसी ऐंग्री यंग मैन वाली कविताएं लिखकर आप स्वयं को हास्यकवि न कहना !

Smart Indian said...

एक ऐसा हादिसा कल फिर शहर में हो गया,
क़त्ल कर के लोग ईश्वर के भजन गाते रहे.

भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे.

बहुत बढिया

संगीता पुरी said...

गजब लिखा है .. एकदम सटीक !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

वाह, क्या गूढ़ बाते कह डाली मोदगिल साहब !

अमिताभ मीत said...

क्यों न खूँ चक्खें, न क्यों हम मांस भी खाते रहें ?
क़ौम के हुक्काम से अपने घने नाते रहे

दिगम्बर नासवा said...

गुरु देव आप इतने अछे शेर कैसे निकालते हैं........... कमाल का लिखते हैं......... एक से बढ़ कर एक होता है हर शेर आपका...

आलोक सिंह said...

एक ऐसा हादिसा कल फिर शहर में हो गया,
क़त्ल कर के लोग ईश्वर के भजन गाते रहे.

बहुत सटीक रचना

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक बार फिर जोरदार व्यंग्य.

admin said...

Sahee baat kahi.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

सतपाल ख़याल said...

नित नये चेहरे पहन जो लोग इतराते रहे.
मंच के संचालकों को लोग वे भाते रहे.
aajkal ke manch, mushaire, ya kavi sammelan ye tikaRamee aur tuKKaR logogoN ke liye hain ya phir behuda maskhroN ke liye. bahut sahi baat kahi aapne.

P.N. Subramanian said...

सांप के बच्चे बड़े मक्कार कातिल दुष्ट थे,
दूध भी पीते रहे नरमांस भी खाते रहे.
बहुत सुन्दर रचना. आभार.

ओम आर्य said...

yah andar ki baat wyaan karati huee kawita hai .........gahare jude lagate hai taar .......bahut hi sundar

विनोद कुमार पांडेय said...

भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे.

sach me kya kamal ke likhate hai aap..
badhayi

पंकज सुबीर said...

सांप के बच्चे बड़े मक्कार कातिल दुष्ट थे,
दूध भी पीते रहे नरमांस भी खाते रहे.

योगेंद्र जी आनंद आ गया इन पंक्तियों पर । आपकी ग़ज़ले कविताएं एक तीखे और धारदार व्‍यंग्‍य से भरी होती है। ईश्‍वर आपकी कलम को इसी प्रकार पैना बनाये रखे ।

M VERMA said...

बहुत सुन्दर --- यथार्थपरक और मार्मिक

जीवन सफ़र said...

यथार्थपरक रचना!

शेफाली पाण्डे said...

भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे.
bahut hee umda .........badhaai

Vinay said...

बहुत अच्छी रचना है
--
अपना पासवर्ड भेज दें, आवश्यक परिवर्तन करने हैं।
---
1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप ने जमाने की तस्वीर खींच दी है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे.
भाइयों में भूख पर लम्बी बहस होती रही,
खून अपना बेच अब्बा रोटियां लाते रहे।।

वाह्! क्या खूब लिखा है! एकदम आईना दिखाने का काम किया है!!!

Chandan Kumar Jha said...

लाजबाव.....अतिसुन्दर.

गुलमोहर का फूल

अविनाश वाचस्पति said...

टीक की तरह मजबूत और टिकाऊ संरचना।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

"मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे."
एकदम सटीक दे मारा...
जंगल में बबुए शेरों के रहमो करम के चलते छुटभइयों की चांदी होने का रिवाज़ अब आम हो ही गया है

Asha Joglekar said...

kamal kee gazal.

नीरज गोस्वामी said...

मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे.
भाई जी...जय हो.
नीरज

रविकांत पाण्डेय said...

मेमनों की भेंट देकर भेड़िये भी भेंट में,
पद्मभूषण-पद्मश्री वनराज से पाते रहे.

अहा!! गज़ब का शेर है!!! बहुत-बहुत बधाई, सुंदर गज़ल के लिये

गौतम राजऋषि said...

हर शेर...हर इक शेर पर आह निकल कर रह गयी,...
बेमिसाल गुरूवर!

hem pandey said...

'नित नये चेहरे पहन जो लोग इतराते रहे.
मंच के संचालकों को लोग वे भाते रहे.'

- ये चेहरे मंच के संचालकों और दर्शकों दोनों को ही रिझाने में माहिर होते हैं.