मैं हूं औरत.....

आप सब को सादर समर्पित करता हूं ये रचना



मैं हूं औरत, मेरी तो बस ये कथा.
पीर, आंसू, शोक, शोषण अरु व्यथा.

मैं भी तेरे पेट से जन्मी थी मां,
मुझमें और भैय्या में फिर क्या फर्क था ?

पीट कर पत्नी को पौरुष तृप्त क्यों ?
इस प्रश्न ने अक्सर ही माथे को मथा.

हमने तो हर दौर में पाया यही,
झूठ आवश्यक है सच तो है वृथा.

श्रृंखलाबद्ध हो गयी है "मौदगिल",
उफ ! कलंकित भ्रूण-हत्या की प्रथा.
--योगेन्द्र मौदगिल

32 comments:

ओम आर्य said...

ek sahi mudde ko aawaz dene ke liye .......bahut bahut bahut bahut dhnyabaad...........is awaz ko salam

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

bahut khoob maudgil ji
sachmuch dil ko chhune wali rachna
www.bebkoof.blogspot.com

Anonymous said...

बहुत खूब... समाज पर चोट करती हुई एक यथार्थ रचना

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

मैं हूं औरत, मेरी तो बस ये कथा.
पीर, आंसू, शोक, शोषण अरु व्यथा

अद्भुत....भ्रूण हत्या जैसी कुरीती पर प्रहार करती हुई शशक्त रचना.....आभार

Unknown said...

bahut khoob !
bahut umda !
______________maarmik rachnaa................
badhaai !

Unknown said...

bahut khoob !
bahut umda !
______________maarmik rachnaa................
badhaai !

राजीव तनेजा said...

मैं हूं औरत, मेरी तो बस ये कथा.
पीर, आंसू, शोक, शोषण अरु व्यथा

मार्मिक रचना

Yogesh Verma Swapn said...

wah, samaj ko jagati anupam kriti. maudgil ji badhai sweekaren.

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद सटीक. बहुत सटीक चोट.

रामराम.

निर्मला कपिला said...

मैं हूं औरत, मेरी तो बस ये कथा.
पीर, आंसू, शोक, शोषण अरु व्यथा
ओह क्या सही तस्वीर पेश की है एक औरत की
एक सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति आभार्

राज भाटिय़ा said...

मैं हूं औरत, मेरी तो बस ये कथा.
पीर, आंसू, शोक, शोषण अरु व्यथा.
जबाब नही योगेन्दर जी बहुत सुंदर.
धन्यवाद

कडुवासच said...

... behad prabhavashaalee abhivyakti !!!!!

गौतम राजऋषि said...

आह!

अद्‍भुत योगेन्द्र जी...अद्‍भुत !
"पीट कर पत्नी को पौरुष तृप्त क्यों ?
इस प्रश्न ने अक्सर ही माथे को मथा"

क्या बात कही है सर!

शेफाली पाण्डे said...

आपने ऐसा विषय चुना
बहुत अच्छा लगा ....

Abhishek Ojha said...

श्रृंखलाबद्ध हो गयी है ! यही तो ... :(

Udan Tashtari said...

उफ ! कलंकित भ्रूण-हत्या की प्रथा

--अद्भुत!! वाह.

दिनेश शर्मा said...

आपने सही कहा । भ्रूण हत्या वाकई शर्मनाक है।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sahi kah hain. kanya ka yahi durbhagya hai.

कंचन सिंह चौहान said...

सटीक...!

नीरज गोस्वामी said...

मैं भी तेरे पेट से जन्मी थी मां,
मुझमें और भैय्या में फिर क्या फर्क था ?
शाश्वत प्रश्न जो हर बेटी अपनी माँ से करती है...किस खूबसूरती से आपने इसे ग़ज़ल में पिरोया है...वाह....ऐसी ग़ज़ल लिखना आपके बस की ही बात है...बधाई...
नीरज

Akanksha Yadav said...

आप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
___________________________________
"शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!

दिगम्बर नासवा said...

श्रृंखलाबद्ध हो गयी है "मौदगिल",
उफ ! कलंकित भ्रूण-हत्या की प्रथा.

maarmik.......... bahoot ही bhaav poorn रचना है .......... gazal बन कर और गहरी हो uthi है

Vinay said...

बहुत सुन्दरता से ब्लॉग को सजा लिया है आपने!

admin said...

कब शब्‍दों में बहुत बडी बडी बातें कह दी आपने।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

के सी said...

बहुत खूब
अभी भी ज़मीन से जुड़े कवि जिंदाबाद हैं

डॉ. मनोज मिश्र said...

उफ ! कलंकित भ्रूण-हत्या की प्रथा....
आपनें तो अन्ततः भावुक कर दिया .बेहतरीन .

Riya Sharma said...

संवेदनशील रचना !!!

भयावह सच्चाई ..:((

Pritishi said...

Hmmm ....

परमजीत सिहँ बाली said...

श्रृंखलाबद्ध हो गयी है "मौदगिल",
उफ ! कलंकित भ्रूण-हत्या की प्रथा.

बहुत बढिया कहा।

लता 'हया' said...
This comment has been removed by the author.
लता 'हया' said...

Aapaki har rachana ek se badh kar ek hai lekin aurat hun to marmsparshi hai kyonki main bhi ek aurat hun .



haya