जीवनसूत्र - १
वृद्धावस्था
उस आयु को कहते हैं
अब किसी
खूबसूरत लड़की को देख कर
मन में
आशायें नहीं
यादें जगती हैं
जीवनसूत्र - २
जब किसी व्यक्ति को
अपनी जवानी के सारे काम
मूर्खतापूर्ण लगें
तो समझ लेना चाहिये
कि वह
वृद्धावस्था में प्रवेश कर चुका है
जीवनसूत्र - ३
अपने से
अधिक मूर्ख व्यक्ति का
सदैव सम्मान करो
क्योंकि
अगर वह न हो तो
आपको बुद्धिमान समझने की
मूर्खता कौन करेगा
और हां लीजिये
ये हैं दुनिया के सब से बड़े झूठ
-- मैंने तो चिट्ठी का जवाब उसी दिन दे दिया था, मिली क्यों नहीं ?
-- मैं इंकमटैक्स विभाग से हूं और आपकी सहायता करने आया हूं..
-- मैं पैसे की परवाह नहीं करता, भूखा रह सकता हूं मगर अपने सिद्धान्त नहीं छोड़ सकता..
-- नहीं.. नहीं.. ये कुत्ता काटता नहीं है...
-- मेरे साथ पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ...
-- इस बार बज़ट में नये टैक्स नहीं लगाये जायेंगें..
-- सच मानिये मैं झूठ नहीं बोल रहा....
और मित्रों
जरा सोचिये की ऐसा क्यों होता है
--अक्लमंद आदमी ही आपको बेवकूफ क्यों समझता है और बेवकूफ आपको अक्लमंद क्यों नहीं समझता ?
--जब कोई चीज बहुत संभाल कर रखी जाती है तो जरूरत पड़ने पर मिलती क्यों नहीं ?
--जिस दिन भूख न हो, घर में बढ़िया खाना क्यों बनता है ?
--विग्यापन में मुफ्त उपहार क्यों लिखा होता है, क्या हर उपहार मुफ्त नहीं होता ?
--जरूरत पड़ने पर टार्च के सैल क्यों खराब हो जाते है ?
--जब घर में मोमबत्तियां ना हो तो लाइट क्यों चली जाती है ?
--अभी बस पांच मिनट और सो लूं,- कह कर जब आप सो जाते है तो एक घंटे बाद ही क्यों नींद खुलती है ?
--योगेन्द्र मौदगिल
33 comments:
गुरूदेव, आप तो बहुत सटीक एकलाईना लिखते हैं। इसे कहते हैं गागर में सागर।
सूत्र बताया आपने लगा बहुत गम्भीर।
पढ़ी बाद की पंक्तियाँ बेहतर है तकरीर।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
सुन्दर है!
बेहतरीन, प्रभु!!
बहुत उम्दा लिखा है.बधई.
बढियां ! मैं आश्वस्त हुआ की अभी मैं बूढा नहीं हुआ ! शुक्रिया !
अभी तो खूबसूरत लड़की को देख कर दिल में उमंगें और आशाएँ दोनों जग रही हैँ मित्र ...
धन्यवाद आपका जो बतला दिया कि बूढे कैसे होते हैँ
बहुत ही बढिया
बदले रूपों में 'मर्फी लॉ' का प्रताप है,
'मर्फी लॉ', 'फिनाग्ले लॉ'।
अरे बधाई ,आज तो आपनें पूरा जीवन दर्शन लिख दिया .
जीवनसूत्र - ३
अपने से
अधिक मूर्ख व्यक्ति का
सदैव सम्मान करो
अब समझ आया लोग हमारा इतना सम्मान क्युं करते हैं?:)
रामराम.
अच्छा हुआ बतला दिया योगेन्द्र भाई वरना मै तो अपने को बुढा समझने की भूल करने वाला था।जवाब नही आपका का।
बहुत बढिया!!
और हां लीजिये
ये हैं दुनिया के सब से बड़े झूठ
इसमें एक पंक्ति ये भी शामिल की जा सकती है
"मैं अभी बूढा नहीं हुआ हूँ "
बाकी आपके चिंतन और कविताओं को मेरा सलाम पहुंचे
वाह, लाजबाव
ek anubhaw se paripurna kawitaa ........bahut sundar
गुरुदेव ............ आज का अंदाज़ तो बिलकुल निराला है............ व्यंग में ही लिखा पर सच को बाखूबी लिखा है..........और फिर बातो ही बातों में कितना कुछ कह दिया है आपने.......... सोचने को बहुत मसाला दिया है इस बार
HA HA HA BAHOT HI GAMBHIR BAAT KO AAPNE HASI HASI ME LIKHAA HAI ... AUR JO SATYA HAI.... AAPKE YE TEWAR KHUB BHAYE SAHIB... DHERO BADHAAYEE...
ARSH
जबरदस्त सूत्र बता दिए आपने तो। वाह वाह ।
anti men baandh kar rakh liye ji, dhanyawaad,
सुन्दर
भई वाह्! आज तो बडी गूढ ग्यान की बातें बताई आपनै......अर मैं तो यही सोच सोच कै परेसान हो रया हूँ के इतने ग्यान नैं धरूंगा कडै सी।
योगेन्दर जी अभी भी किसी खूब सुरत लडकी कोप देख कर मन मै आशाये जागती है...काश मेरे बच्चे भी ऎसी ही सुंदर ओर नाजुक लडकी से ही शादी करे.
पीछे मुड कर कभी देखा ही नही,जवां बने हर कदम नयी मंजिल की ओर बढाते रहे...
अपने से अधिक मुर्ख की खोज अभी जारी है, मिला तो जरुर बतायेगे.
बहुत सुंदर लिखा.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
अभी बस पांच मिनट और सो लूं.............:)
उम्दा
अब समझ आया कि बचपन से ही क्यों सिखाया जाता है-"अपने से बड़ों का सम्मान करो"
जीवन के इतने सारे सत्य जानकार, ज्ञानचक्षु खुले के खुले रह गए.
सब वचन सत्य महाराज.
(१) यादावस्था (कुछ लोग इसे सठियाना भी कहते हैं) .सठियाया व्यक्ति ख्वाबों में नहीं यादों का इतिहास देखता है.
(२) जहा तक मैं समझता हूँ कि यह ज्ञान प्राप्ति की निशानी है, जो देर-सबेर हर किसी को प्राप्त होती ही है.
(३) यह सूत्र वाक्य आपकी ही "ऐसा क्यों होता है" की निम्न पंक्तियों
"अक्लमंद आदमी ही आपको बेवकूफ क्यों समझता है और बेवकूफ आपको अक्लमंद क्यों नहीं समझता ?"
की उलटवाणी है.
चन्द्र मोहन गुप्त
वृदादावस्था वह भी तो होती है जब आप अपने उम्र की आड़ में किसी भी युवा लडकी के गालों पर.... न न बालों पर हाथ फेर सकते हैं हां आशाष जरूर देना पडेगा ।
हमने तो सुना ता कि हर आदमी को अपनी अकल और दूसरे का पैसा ज्यादा लगता है ।
और मैं समझती थी कि ऐसा मेरे ही साथ होता है कि मै चीज सम्हाल के रखूँ और जरूरत पडने पर उसके लिये फिर बाजा़र जाना पडे ।
अरे वाह ! क्या बात है ?
मजेदार पोस्ट है सब रसों से पूर्ण, योगेन्द्र जी बड़ा मजा आया पढ़के
जबरदस्त सूत्र.....मजेदार पोस्ट है.
आपकी अद्भुत सृजनशीलता का कायल हूँ....वाकई आपकी रचना तमाम रंग बिखेरती है...साधुवाद.***
"यदुकुल" पर आपका स्वागत है....
नमस्कार यौगेन्द्र जी,
जीवनसुत्रों के जरिये आपने बहुत अच्छी बात कही है.
वृद्धावस्था
उस आयु को कहते हैं
अब किसी
खूबसूरत लड़की को देख कर
मन में
आशायें नहीं
यादें जगती हैं
इस बार अंदाज़ भिन्न और निराला भी...! बनाये रहें ये बहुमुखी प्रतिभा के आयाम..!
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