बगैर किसी भूमिका के एक हल्की-फुल्की सी ग़ज़ल पढ़ कर खुद को संभालियेगा
बुरा वक्त जल्दी आएगा, किसे पता था..
बहता दरिया थम जाएगा, किसे पता था..
वह लौट कर फिर आएगा, किसे पता था
खोटा सिक्का चल जाएगा, किसे पता था..
रोटी दिखला कर के कपड़े नोच लिये
इन्सां इतना गिर जाएगा, किसे पता था..
नगरवधु के चर्चित महल के कोने में
नगरपिता भी मिल जाएगा, किसे पता था..
हमने तो बस शौक-शौक में पाला था
हम पर ही फ़न लहराएगा, किसे पता था..
जेल से नोमिनेशन भर कर जीत गया
लोकतंत्र ऐसा आएगा, किसे पता था..
नेता जी का पुत्र हो गया फेल तो क्या
यों भी बहुमत मिल जाएगा, किसे पता था.....
--योगेन्द्र मौदगिल
29 comments:
पूरी तरह से आपके रंग में है गज़ल।
नगरवधु के चर्चित महल के कोने में
नगरपिता भी मिल जाएगा, किसे पता था..
आह!
ऐसी गजले आप कहेंगे किसे पता था
ऐसी टिप्पणी हम देदेंगे किसे पता था
bahut baDhiya
रोटी दिखला के…………………… कड़ुवा सच लिख मारा योगेन्द्र भाई।सलाम करता हूं आपको।
LAJAWAAB ! BEHTAREEN ! Hmesha ki tarah........
bahut badhiyaa!
एक से बढ़कर एक ! खासकर ये तो...
नगरवधु के चर्चित महल के कोने में
नगरपिता भी मिल जाएगा, किसे पता था..
भई ... हमें तो कुछ भी नहीं पता था :-)
भईया हम तो आशिक है आप की गजलो , ओर शेरो के, धन्यवाद
वाह जनाब.............. ऐसे लाजवाब रचना है............ संभालना तो पडेगा ही.......... आपकी हर रचना की तरह ये भी सुपर डूपर ....... सटीक, पैनी धार की तरह
बहुत ही बढ़िया गुरुजी। आपकी पिछली कविता की दो लाइनें-
गुम्बदों ने यों कबूतर से कहा
छोड़ दो आकाश की संभावना
हमने भी छोड़ दिया इन नेताओं को।
योगेंद्र भाई
मतले में छिपी उदासी का अर्थ मैं जान पा रहा हूं । कवि जगत पर ये बुरा वक्त बिना किसी दस्तक के आया है । सब दुखी हैं और कवि के पास दुख को व्यक्त करने के लिये कविता ही होती है । ओम जी को दिल्ली अपोलो रवाना कर दिया गया है । उनकी स्थिति अभी भी गंभीर है ।
रोटी दिखला कर के कपड़े नोच लिये
इन्सां इतना गिर जाएगा, किसे पता था..
जेल से नोमिनेशन भर कर जीत गया
लोकतंत्र ऐसा आएगा, किसे पता था..
भाई जी जय हो...आप सच लाजवाब हो...कितनी आसानी से कितनी गहरी चुभती हुई बात...वाह वा जी वा...
नीरज
बहुत खूब बहुत खूब। हमें पहले से पता था कि अगली रचना भी आप ऐसी ही जोरदार लाएंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सच्चाईयों को उधेडती आपकी ग़ज़ल पसंद आई। बहुत ही उम्दा।
bahut pasand aayi aapki gazal
रोटी दिखला कर के कपड़े नोच लिये
इन्सां इतना गिर जाएगा, किसे पता था
सच्चाई को ब्यां करती हुई लाजवाब पंक्तियाँ....बहुत ही उम्दा।
milegi tahalte-tahalte padhne ko ghazal........kise pataa tha.
BADHAAAAAIII
har ek panktiyan khubsoorat hai .....waah ...waah.....waah
MAUDAGIL SAHIB YE GAZAL BARTAMAAN PE LIKHI JO BYATHAA BYAKT KAR RAHI HAI WO PADH KE AANKHEN NAM HO GAYEE HAI ..
ARSH
maudgil ji, adbhut/anupam rachna ke liye badhai sweekaren.
bahut sahi kataksh kiya hai aapne..
हमने तो बस शौक-शौक में पाला था
हम पर ही फ़न लहराएगा, किसे पता था..
जेल से नोमिनेशन भर कर जीत गया
लोकतंत्र ऐसा आएगा, किसे पता था..
नेता जी का पुत्र हो गया फेल तो क्या
यों भी बहुमत मिल जाएगा, किसे पता था.....
these lines r really nice...
रोटी दिखला कर के कपड़े नोच लिये
इन्सां इतना गिर जाएगा, किसे पता था..
बेहतरीन .
हमने तो बस शौक-शौक में पाला था
हम पर ही फ़न लहराएगा, किसे पता था..
सुन्दर गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन गज़ल आभार्
aapki har ek gazal dil me ek khas jagah banati hai
हमने तो बस शौक-शौक में पाला था
हम पर ही फ़न लहराएगा, किसे पता था..
बहुत खूब मौदगिल जी ! मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी के लिए आभार !
बात-बात में बहुत बड़ी बात कह दी आपने, बधाई.
वाह मौदगिल साहब आप कमाल हैं ।
जेल से नोमिनेशन भर कर जीत गया
लोकतंत्र ऐसा आएगा, किसे पता था..
.............. ?
ज़बरदस्त
Post a Comment