आप सब का स्नेह संजीवनी का काम करता है. इसी के तहत कुछ न कुछ पोस्ट डालता रहता हूं. कुछ नाम ऐसे हैं जिनकी टिप्पणी का वाकई इंतज़ार रहता है. बरास्ता पत्रमित्रता के ब्लागिंग का सफर कईं बार नया करने-कहने को तैयार कर ही देता है. आज फिर एक ग़ज़ल आप सभी को सौंप रहा हूं.......
यूं भी कुछ अपराध हुए
पाठ प्यार के याद हुए
बांटा खाया गया हमें
मानो हम परशाद हुए
चादर से बाहर जाकर
घर के घर बरबाद हुए
साथ चले तो पता लगा
रहबर ही सैय्याद हुए
छोड़ होस्टल में बच्चे
मात-पिता आज़ाद हुए
अख़बारी कविताई में
छंद कईं बरबाद हुए
घर-घर केबल कल्चर है
फिल्मी मुखड़े याद हुए
देख 'मौदगिल' कव्वे भी
कोयल के उस्ताद हुए
--योगेन्द्र मौदगिल
30 comments:
बहुत खुब....
घर-घर केबल कल्चर है
फिल्मी मुखड़े याद हुए
देख 'मौदगिल' कव्वे भी
कोयल के उस्ताद हुए
भाई मोदगिल जी पता नही आप की कविता मै हमेशा ही मेरे दिल की आवाज झलकती है, ऎसी ही शिकायत मुझे आज के समय से है.
आप का धन्यवाद
मौदगिल जी क्या कमाल की ताज़र्बाकारी की बातें की है आपने इस कमाल की ग़ज़ल में ...और खास तौर से ये शे'र तो खड़े होकर दाद मांग रहा है....
बाँट खाया गया हमें...
मानो हम परशाद हुए..
बहोत ही गंभीर बात बातो बातों में.. कह जाते है आप...
अर्श
देख 'मौदगिल' कव्वे भी
कोयल के उस्ताद हुए..
और क्या खूब कहा आपनें .
बहुत जोरदार रचना है।बधाई स्वीकारें।
कव्वे कोयल के उस्ताद तो हर जगह हो रहे हैं. और आप से बखूबी कौन बयां कर सकता है भला !
वाह! क्या बात है ।
चादर से बाहर जाकर
घर के घर बरबाद हुए
वाह योगेन्द्र भाई वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बरबाद अगर कोई हुआ तो सिर्फ़ हम, सोचते ही रह गये किस शेर पर दाद दें। हर शेर ही लाजवाब है। बहुत बढ़िया गज़ल।
achaa samkaaleen vyang hai .agar aap daayain haath se apnee daaree [beard]naa kujjaayen to ek nivedan hai apne ache vyang mai thoraa haasay [hansee]ka put bhee nichoriye.
saadhuvaad
बहुत बेहतरीन. शुभकामनाएं.
रामराम.
बांटा खाया गया हमें
मानो हम परशाद हुए
भाई जी जय हो....क्या शेर कहा है..अह ह ह ह ह ह ह ...वाह...संजीवनी का काम तो हमारे लिए आपकी शायरी करती है...जिस दिन मिल जाती है दिल नाचने लगता है...भाव और शब्द पर आपकी पकड़ लाजवाब है...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत......बधाई...
नीरज
एक बात तो कहना ही भूल गया भाई जी...ब्लॉग की रूप सज्जा भोत ही बढ़िया लग रही है...बिलकुल नया लुक दे दिया है आपने...अति मन भावन...
नीरज
'देख मौदगिल कव्वे भी…'
बहुत ख़ूब!
लाजवाब ग़ज़ल है
---
तख़लीक़-ए-नज़र
छोटी बहर में एक और गजब
बधाई !
अभी भी बांटा खाया गया हमें मानो हम परशाद हुए, के आनंद में डूबा हूं । अहा हा ।
मोदगिल जी..........आपकी ग़ज़ल पढ़ कर दिल अनेकों बार वाह वाह करता है.......... आपका बात रखने का अंदाज अपने आप में निराला है..........किसी भी एक शेर को मैं जोरदार नहीं कह सकता.......जब पूरी ग़ज़ल बेमिसाल हो
Bahut khoob moudgil sahab.......
lajawab......
आपकी हर रचना पढने के बाद मुँह से बस...'वाह' ही निकलता है
kya baat hai !
waah waah
बांटा खाया गया हमें
मानो हम परशाद हुए
मज़ा आ गया योगेन्द्र जी.
क्या कहा है सरकार,,,
हर शे;र ही तो चोट कर रहा है,,,
हंसती मुस्काती ,,प्यारी गजल,,,
सच्ची बातें कह दी आपने। बहुत ही बेहतरीन।
छोड़ होस्टल में बच्चे
मात-पिता आज़ाद हुए'
इस छोटे बहर की ग़ज़ल में तो आप ने खूब कस कस कर व्यंग्य किये हैं.
बहुत खूब!
सुंदर गजल। आनंद आ गया।
देख 'मौदगिल' कव्वे भी
कोयल के उस्ताद हुए
वाह वाह बहुत ही बढिया ।
बांटा खाया गया हमें
मानो हम परशाद हुए
चादर से बाहर जाकर
घर के घर बरबाद हुए
यह दो शे'र पसंद आये |
God bless
RC
वाह, वाह, क्या बात है। कौवे वाला बिम्ब जोरदार है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
wah wah wah maudgil ji, abto gazal ki tareef men shabdon ka tota lag raha hai , mano sabhi shabd tareef ke liye baune hain.
lajawaab rachna thode shabdon men poora maha kaavya. wah
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