बचपना, दर-ब-दर, दर-ब-दर.
या खुदा, खैर कर, खैर कर.
राजधानी है वो इसलिये,
हर कदम, नाचघर, नाचघर.
मांगते-मांगते गिर पड़ा,
राम के, नाम पर, नाम पर.
जब तू मंडी में आ ही गया,
हर अदा, कैश कर, कैश कर.
देख टीवी पे संसद लगा,
चुन लिये, जानवर, जानवर.
बाप बेटी का सकते में है,
हर नज़र, बद-नज़र, बद-नज़र.
क्या भरोसा किसी का मियां,
बा-खबर, बे-खबर, बे-खबर.
देख कर मुझको वो हो गया,
सर-ब-सर, तर-ब-तर, तर-ब-तर.
--योगेन्द्र मौदगिल
26 comments:
क्या भरोसा किसी का मियां,
बा-खबर, बे-खबर, बे-खबर.
देख कर मुझको वो हो गया,
सर-ब-सर, तर-ब-तर, तर-ब-तर.
बहुत सुंदर.
धन्यवाद
bahut khoob........
tap rahi subah shaam,
tap raha dopahar,
har or se aawaaj aaiye,
barap raha kaisa kahar.....
yogendra jee...bahut khoob...
ARE WAAH MAUDAGIL SAHIB YE TEWAR AUR MUSHIKI... KAMAAL KAR DIYAA AAPNE TO KITANI KHUBSURATI SE KAHI HAI AAPNE BAAT ... GAZAB DHAA DIYAA AAPNE... DHERO BADHAAYEE SAHIB...
ARSH
वाह!! बहुत बढिया!!
दिल भी हमारा हो गया तर-ब-तर, तर-ब-तर
सुंदर तरीके से यथार्थ को अभिव्यक्त किया है।
एकदम बेमिसाल सर...और ये नया फोटू भी खूब जँच रहा है
वाह गुरु देव................आज फिर पुराना अंदाज़ वापस अ गया............धज्जियाँ उडाता हुवा...........तेज धार वाला कवी............इतनी लाजवाब रचना.............नए अंदाज़ की............बस सुभान अल्ला
जब तू मंडी में आ ही गया
हर अदा कैश कर कैश कर ।
वाह ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने । आपका शब्द संसार भाव, विचार और अभिव्यिक्ति के स्तर पर काफी प्रभावित करता है ।-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
वाह वाह!
wah maudgil ji, wah
ek nasha sa padh ke aa gaya
hai gazal ka asar, ka asar
badhai sweekaren.
योगेन्द्र जी,
छोटे छोटे शब्दों में बड़ी बातें आपकी शख्शियत को और ऊंचा कद देती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
'देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर'
जब तू मंडी में आ ही गया,
हर अदा, कैश कर, कैश कर.
अति सुंदर
वाह्! जी, क्या खूब लिखा है........आपने तो चन्द शब्दो मे ही पूरी तरह से यथार्थ को चित्रित कर दिया।
योगेन्द्र जी, वाकई आप छोटी बहर में गजब ढाते हो।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नमस्कार योगेन्द्र जी,
छोटी बहर में खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने, खासकर आपने लफ्जों को बहुत सुन्दर तरीके से पिरोया है वो वाकई आप ही कर सकते हैं.
वाह बहुत सुंदर.
रामराम.
ओ रब्बा खुदा खैर करे जी उम्दा रचना
राजधानी है वो इसलिये,
हर कदम, नाचघर, नाचघर
अदा , नज़ाकत और व्यंगय का अनूठा संगम .
आपकी लेखन प्रतिभा का कायल हूँ हर शब्द पे वाह निकली है आप तक पहुंची मालूम हो और ये नया प्रोफाईल फोटो जबरदस्त है आप मन को भा गए हैं और हाँ पिछली पोस्ट भी पढ़ी थी कुछ व्यसताता ने रोक लिया वरना प्रजापति भाई को भी शुक्रिया कहना था खैर इसी कमेन्ट से पहुँच जायेगा ऐसी आशा है. अपनी ग़ज़लों को सेंसर ना करें योगेन्द्र जी की ग़ज़ल कोई चुराएगा तो पकडा कयेगा क्योंकि वो आपका हुनर कहाँ से लाएगा ?
जब तू मंडी में आ ही गया,
हर अदा, कैश कर, कैश कर...
उम्दा लाइनें हैं ,बधाई .
आपने इतना सुन्दर लिखा कि बार-बार पढने को जी चाहे.
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विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
waah waah waah waah
kamaal kar diya bhaiji................
-----------------badhaiji______________
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