फिर भी गिला इन को.........

सफ़ीनों से महोब्बत साहिलों की हो तो कैसे हो
भंवर के बीच रखते हैं हमेशा नाखुदा इन को

कि ये जो खेलते हैं आग से ये भी तो अपने हैं
बचाना याखुदा इन को दिखाना रास्ता इन को

ये बच्चे हैं पतंग की डोर कसना सीख जाएंगे
अभी गोता खिलाने से संभालेगी हवा इन को

के सच को देखना आंखों के आगे है बहुत मुश्किल
ये अंधे हैं दिखाना मत कभी तुम आईना इन को

वफ़ा करते नहीं हर्गिज वफ़ा से हुस्न के मालिक
हमेशा रास आई है दग़ाबाजी-दग़ा इन को

किसी दिन खूब निकलेगा दूध-पानी का ये अंतर
फक़त हो जाएंगे नंगे मिलेगा जब सिला इन को

अजब सौदा शिकस्तों का हमीं ने कर लिया प्यारे
हमारे भाग से है मौदगिल फिर भी गिला इन को
--योगेन्द्र मौदगिल

27 comments:

गौतम राजऋषि said...

"कि ये जो खेलते हैं आग से ये भी तो अपने हैं
बचाना याखुदा इन को दिखाना रास्ता इन को"

देख रहा हूँ अपने इन्हीं "अपनों" को योगेन्द्र जी अपने इर्द-गिर्द, लेकिन कोई खुदा नहीं आता इन्हें रास्ता दिखाने...

बहुत सुंदर पंक्तियां

Unknown said...

har she'r me jaan hai
har lafz me shaan hai
har bar ki tarah is bar bhi achhi post liye hardik badhaiyan

Udan Tashtari said...

के सच को देखना आंखों के आगे है बहुत मुश्किल
ये अंधे हैं दिखाना मत कभी तुम आईना इन को

-गजब भाई-हर शेर जबरदस्त!! जिओ!!

Anil Pusadkar said...

क्या बात है!बहुत बढिया!

P.N. Subramanian said...

"थोप्दा दिखाने का शुक्रिया. इस बार की पहेली बड़ी कठिन लग रही है. पश्चिम बंगाल होना चाहिए" बहुत khoob .आभार..

नीरज गोस्वामी said...

ये बच्चे हैं पतंग की डोर कसना सीख जाएंगे
अभी गोता खिलाने से संभालेगी हवा इन को

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने, भाई जी ...बेहतरीन...लाजवाब...हमेशा की तरह...आपका जवाब नहीं.

नीरज

"अर्श" said...

MAUDGIL SAHIB KISI EK SHE'R KI KYA TARIF KARI JAAYE PURI GAZAL HI MUKAMMAL HAI... AAJ BE-RADIF GAZALON NE TO KAHAR DHAA RAKHAA HAI ABHI ABHI NEERAJ JI KE YAHAANSE AA RAHAA HUN UNHONE BHI KAMAAL KAR RAKHAA HAI... AUR AAP IDHAR DHAAMAAL MACHAA RAHE HAI... BAHOT HI SHAANDAAR GAZAL KAHI HAI AAPNE...DHERO BADHAAYEE

ARSH

दिगम्बर नासवा said...

मोदगिल साहब.......एक और लाजवाब.....यथार्त रचना...........हर शेर कुछ न कुछ बोल रहा है .तीखा, तल्ख़ या कडुवा

ये बच्चे हैं पतंग की डोर कसना सीख जाएंगे
अभी गोता खिलाने से संभालेगी हवा इन को
समय सब कुछ सिखा देता है..........जिस भी माध्यम से हो........

के सच को देखना आंखों के आगे है बहुत मुश्किल
ये अंधे हैं दिखाना मत कभी तुम आईना इन को
यथार्त.जीवन का सत्य है इस शेर में............कमाल का लिखा है..........

Vinay said...

baDhiya hai saahab, sadhuwaad

कुलदीप "अंजुम" said...

bahut khoob har sher me sikh hai

मोना परसाई said...

बच्चे हैं पतंग की डोर कसना सीख जाएंगे
अभी गोता खिलाने से संभालेगी हवा इन को
यह शेर बहुत पसंद आया नसीहत देता हुआ सा ,वैसे पूरी गजल शानदार है .

Abhishek Ojha said...

किसी दिन खूब निकलेगा दूध-पानी का ये अंतर
फक़त हो जाएंगे नंगे मिलेगा जब सिला इन को

आमीन !

Vineeta Yashsavi said...

कि ये जो खेलते हैं आग से ये भी तो अपने हैं
बचाना याखुदा इन को दिखाना रास्ता इन को

bahut khub...

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत कामयाब रचना है, वक्त से प्रासंगिक!

रंजना said...

बड़ी परेशानी में पड़ गयी की किस शेर को उन्नीस कहूँ,किसे बीस....सभी तो एक से बढ़कर एक हैं....

भावपूर्ण अद्वितीय ग़ज़ल.....आनंद आ गया पढ़कर...

बहुत बहुत आभार आपका...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मैं आपके ब्लाग पर टिप्पणी करना बन्द कर रहा हूं, इसलिये कि मेरे पास प्रशंसा करने के लिए रोज-रोज नये शब्दों का भंडार नहीं है.

Yogesh Verma Swapn said...

wah...........................

किसी दिन खूब निकलेगा दूध-पानी का ये अंतर
फक़त हो जाएंगे नंगे मिलेगा जब सिला इन को

aapke blog par ek aur naayaab heera.
badhai sweekaren.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

किसी दिन खूब निकलेगा दूध-पानी का ये अंतर
फक़त हो जाएंगे नंगे मिलेगा जब सिला इन को

सच कहा आपने...बढिया रचना

पंकज सुबीर said...

योगेंद्र जी हर बार पहले से बेहतरीन रचते हैं आप । पानीपत के मैदान का कमाल है ये कि हर बार आप विजेता होकर उभरते हैं ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

हो सकता है.. सुबीर जी, हो सकता है.. क्योंकि इतिहास गवाह है कि यहां तीन युद्ध हुए. तीनों में योद्धा वीरगति को प्राप्त भी हुए और कईं-कईं दिन घायल हो पड़े भी रहे. उनका खून पानीपत के मच्छरों ने चूसा. अब उन मच्छरों के वंशज अक्सर.. अक्सर क्या.. रोज ही हमें भी इंजैक्शन लगाने आते ही हैं. ये उनका कमाल भी हो सकता है.
बहरहाल... कुछ भी हो आपकी टिप्पणी की ऊर्जा भी बहुत कुछ कहलवा देती है. इसलिये देते रहा करें.
शेष ठीक.
सादर,
योगेन्द्र मौदगिल

के सी said...

मज़ा आता है आपकी ग़ज़ल पढ़ के, शुक्र है आप पढ़ने वालों का ध्यान रखते हैं "बहरों" का नही

Nitish Raj said...

फिर से एक अच्छी पेशकश गुरुजी।

Pritishi said...

Yeh She'r achcha laga magar baaqi rachanaon ki tarah is rachana mein wo "Maudgil" wale asar ki kami nazar aayi :( Nothing new.

कि ये जो खेलते हैं आग से ये भी तो अपने हैं
बचाना याखुदा इन को दिखाना रास्ता इन को

Science Bloggers Association said...

hamesha ki tarar JAANDAAR aur SHANDAR.

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

कंचन सिंह चौहान said...

सफ़ीनों से महोब्बत साहिलों की हो तो कैसे हो
भंवर के बीच रखते हैं हमेशा नाखुदा इन को

आगाज़ से अंजाम तक सब दुरुस्त...!

यही तो अदा है आपकी कि बहर और पढ़ने वालो का आनंद दोनो मकम्मल होता है आपकी गज़लो में.....! शायद सच्चे शायर की पहचान यही है।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

के सच को देखना आंखों के आगे है बहुत मुश्किल
ये अंधे हैं दिखाना मत कभी तुम आईना इन को
ज़नाब कर तो आप यही रहे हैं.

Asha Joglekar said...

बेहतरीन गज़ल, एक एक शेर खूबसूरत, पर मेरी पसंद का
ये बच्चे हैं पतंग की डोर कसना सीख जाएंगे
अभी गोता खिलाने से संभालेगी हवा इन को ।
ये है ।