फूलों को लाया ना करो.............

हर अपेक्षित स्वप्न पलकों पर सजाया ना करो.
फिर किसी को आंख से अपनी गिराया ना करो.

लोग कुंठाऒं में अपनी, कैद हैं, मजबूर हैं,
चुप रहो, मजबूरियां अपनी बताया ना करो

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.

अमन कतराता, नहीं आता हमारे गांव में,
राजनेताऒं को इस खातिर बुलाया ना करो.

चैन से रहने ही दो, अब चांद को आकाश में,
रोज आंगन की परांतों में उगाया ना करो.

कुल की मर्यादा अगर चाहो बचाना साथियों,
तो महाभारत कथा घर में सुनाया ना करो.

दोस्ती की आजमाइश करने वाले दोस्तों,
दोस्ती के नाम पर बगलें खुजाया ना करो.

वक्त ने बांधे तो हैं, घुंघरू हमारे पांव में,
मजबूरियों के नाम पर लेकिन नचाया ना करो.

खुशगवारी का ये मौसम कब तलक रह पायेगा,
एक भी क्षण इसलिये यूंही गंवाया ना करो.

गंध तुम से कर रही है ये शिकायत 'मौदगिल'
पत्थरों के शहर में फूलों को लाया ना करो
--योगेन्द्र मौदगिल

29 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

हर अपेक्षित स्वप्न पलकों पर सजाया ना करो
फिर किसी को आंख से अपनी गिराया ना करो



maudgil ji,ek aur nayaab hira............bahut umda. badhai sweekaren.

Udan Tashtari said...

काश तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया
दर्पणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो


-ये बात हुई गज़ब की...मजा आ गया भई इस गज़ल में. बधाई.

शारदा अरोरा said...

बहुत सुन्दर , कितनी ही जगह रुक कर सोचने को मजबूर करती |

manu said...

हर शेर लाजवाब मुदगिल जी,,,
क्या छांट छाँट कर चोट मारी है,,,,
बहुत बढिया व्यंग,,,

डॉ. मनोज मिश्र said...

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.
बहुत ही उम्दा लाइनें हैं .

Ria Sharma said...

लोग कुंठाऒं में अपनी, कैद हैं, मजबूर हैं,
चुप रहो, मजबूरियां अपनी बताया ना करो

लाज़वाब शेर हैं सभी !!!!
सच्चाई को छूते हुवे से ..उम्दा ग़ज़ल मौदगिल जी

ताऊ रामपुरिया said...

भाई चाल्हे पाड राखे सैं. घणी बधाई.

रामराम.

"अर्श" said...

EK AUR LAGAYAA AAPNE ... KARINE SABKE GAAL PE ... BAHOT HI KHUBSURAT BYANG BHARI GAZAL....DHERO BADHAAYEE..


ARSH

गर्दूं-गाफिल said...

हर अपेक्षित स्वप्न पलकों पर सजाया ना करो.
फिर किसी को आंख से अपनी गिराया ना करो.
काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.


रंग और व्यंग दोनों में महारत पाई है
योगेन्द्र उम्दा गजल के लिए बधाई है

गर्दूं-गाफिल said...

हर अपेक्षित स्वप्न पलकों पर सजाया ना करो.
फिर किसी को आंख से अपनी गिराया ना करो.
काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.


रंग और व्यंग दोनों में महारत पाई है
योगेन्द्र उम्दा गजल के लिए बधाई है

Alpana Verma said...

गंध तुम से कर रही है ये शिकायत 'मौदगिल'
पत्थरों के शहर में फूलों को लाया ना करो
--
हर अपेक्षित स्वप्न पलकों पर सजाया ना करो.
फिर किसी को आंख से अपनी गिराया ना करो.

Umda!bahut umda!

के सी said...

आज आपके कुछ शेर दोस्तों को एसएमएस करने होंगे मैं जो कहना चाह रहा था आपने सुन्दरता से कहा है अब आएगा मज़ा.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लोग कुंठाऒं में अपनी, कैद हैं, मजबूर हैं,
चुप रहो, मजबूरियां अपनी बताया ना करो

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो

भई वाह! मौदगिल जी, क्या बढिया लाईनें लिखी हैं...बेहतरीन

Nitish Raj said...

आपसे बेहतर कोई नहीं लिख सकता लगता तो ये ही है। आपसे यही उम्मीद थी फिर से बेहतरीन।
लगा पसंद के रूप में पूरी कविता यहां डाल दूं लेकिन दो लाइन आपकी बहुत पसंद आई-
कुल की मर्यादा अगर चाहो बचाना साथियों,
तो महाभारत कथा घर में सुनाया ना करो.

बहुत उम्दा गुरू जी, बहुत बढ़िया।

दिनेशराय द्विवेदी said...

खुशगवारी का ये मौसम कब तलक रह पायेगा,
एक भी क्षण इसलिये यूंही गंवाया ना करो.

समय का संकट भारी है।

सतपाल ख़याल said...

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.
khoob!bahut achee ghazal

Abhishek Ojha said...

कमाल करते हैं सर आप... ! गजब की रचना है.

दिगम्बर नासवा said...

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.

नतमस्तक...........आपके लिखे हर शेर पर............गज़ब ढा दिया है आपने इस ग़ज़ल में............
समाज की बुराइयों को दूर करने में आपकी ग़ज़लें सबसे आगे हैं.........

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

खुशगवारी का ये मौसम कब तलक रह पायेगा,
एक भी क्षण इसलिये यूंही गंवाया ना करो.

यूं तो पूरी रचना ही बढ़िया है, लेकिन ये लाइनें बड़ी प्रेरक हैं.

रंजना said...

हर शेर के साथ मुंह से अपने आप वाह निकल गया.......

बहुत बहुत लाजवाब ग़ज़ल....वाह !!!

नीरज गोस्वामी said...

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.

चैन से रहने ही दो, अब चांद को आकाश में,
रोज आंगन की परांतों में उगाया ना करो.

दोस्ती की आजमाइश करने वाले दोस्तों,
दोस्ती के नाम पर बगलें खुजाया ना करो.

भीजी कोई एक शेर तो वाह वा भी करूँ यहाँ तो एक से बढ़ कर एक सवा शेर हैं....आप की कलम का लोहा तो कब का मान चुका अब तो बस दिन रात ऐसी ग़ज़लें पढ़ पढ़ कर सर झुकता हूँ...बस...
नीरज

सुशील छौक्कर said...

हर शेर बहुत कुछ कहता हुआ। ऐसी बेहतरीन ग़ज़ले पढवाते रहा करो जी।

Anonymous said...

apne sahar me rahkar hum abhi tak anjan the.Aaj line padkar laga ki hum bahut khus kismat jo nayab hira apne daman me liye bathe hai. Hame Garv Hai Bhai Moudgil jesi shaksiyat per.

-Sanjay Jain

Anonymous said...

खुशगवारी का ये मौसम कब तलक रह पायेगा,
एक भी क्षण इसलिये यूंही गंवाया ना करो.


.... लाजवाब ग़ज़ल

शेफाली पाण्डे said...

खुशगवारी का ये मौसम कब तलक रह पायेगा,
एक भी क्षण इसलिये यूंही गंवाया ना करो.
bahut hee achcha sher hai.....badhaai

Unknown said...

vah vah kya baat hai
bahut khoob.................badhai

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.

गुरू! दर्पणों के व्यापार का यही सही मौक़ा है. जब असली चेहरा दिखेगा नहीं तो कोई चिढ़ेगा भी नहीं.

श्रद्धा जैन said...

वक्त ने बांधे तो हैं, घुंघरू हमारे पांव में,
मजबूरियों के नाम पर लेकिन नचाया ना करो.

wah bhaut khoob

काश..! तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया,
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो.


ye sher bhi khoob kaha aapne

aapki gazal padhna hamesha hi bhaut achha laga hai

Science Bloggers Association said...

योगेन्द्र जी, बहुत खूब कहते हैं आप।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }