शाही किले की नींव में मज़दूर दफ़नाए गये
तब कहीं उन बुर्ज़ियों के दूर तक साए गये
गोश्त खाने की ललक ने उन को अंधा कर दिया
हिरन के बेटे बिचारे रोज कटवाए गये
वायदे-आश्वासनों के स्वप्न दिखलाए गये
भूख के कुछ प्रश्न लेकिन ज़िंदगी खाए गये
आबरू अपनी का सौदा अंत में करने लगी
जिन बिचारी पुतलियों को ख्वाब दिखलाए गये
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये
भेड़िया आया उठा कर रोज बालक ले गया
झूठी हमदर्दी दिखाते लोग चिल्लाए गये
एक हो कोई खराबी तो उसे बतला ही दूं
दुनिया भर के खोट मेरे यार में पाए गये
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
भीड़ में तक़सीम होकर हो गये रिश्ते सिफ़र
जिस्म अपने-आपको परचम सा लहराए गये
आत्मा ही मर गयी थी उन सभी की मौदगिल
दैरो-हरम के नाम पै जो लोग बहकाए गये
--योगेन्द्र मौदगिल
34 comments:
wah maudgil ji, hamesha ki tarah ek aur shaandaar, jaandaar rachna, sabhi sher lajawaab. badhaai sweekaren.
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये...
बहुत सुंदर लिखा है भाई जी आपने .
मोदगिल साहब.............आपके अपने अंदाज़ की ये कविता बहोत ही खूब है ...........हर शेर लाजवाब, पैनी धार है..........
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये
सुन्दर प्रस्तुति मौदगिल भाई। वाह।
पानी पानी हो गया है हल्की बारिश में शहर।
लोगों का पानी भी उतरा कुछ के उतरवाए गए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
maudgil sahib is she'r ki jitnai taarif karun kam hai bahot hi bemishaal hai ye ... subhaanallaah..
arsh
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये.
बहुत सुँदर पंक्तियाँ . बधाई योगेन्द्र जी
बहुत सुंदर जी.
रामराम.
अच्छी रचना-
भीड़ में तक़सीम होकर हो गये रिश्ते सिफ़र
जिस्म अपने-आपको परचम सा लहराए गये
Ekdam sateek gazal aajke samyanukool.
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
badhiya.
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये.
बहुत बढिया योगेन्द्र भाई॥
शाही किले की नींव में मज़दूर दफ़नाए गये
तब कहीं उन बुर्ज़ियों के दूर तक साए गये
वाह....वाह.....!!
इनाम लो मिल गया ...इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़......!!
आबरू अपनी का सौदा अंत में करने लगी
जिन बिचारी पुतलियों को ख्वाब दिखलाए गये
लाजवाब......!!
इस बार रंग कुछ अलग हट के है ....!!
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
ये भी अच्छा लगा ......!!
[haan wo nazm to raat hi likhi hai pahle ki nahi hai ]
योगेन्द्र जी लाजवाब गजल पढकर मजा आ गया। हर शेर अपनी बात दूर तक कह गया।
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
ये दो ज्यादा ही भा गए।
yogendraji, barmbar dili mubarqbad aapko is shandar aur jaandar ghazal k liye...........
aapne vaakai kamaal kar dia
LAGE RAHO
-albela khatri
आपकी ग़ज़ल उम्मीदों की ग़ज़ल है जो जिस निगाह से पढ़े उस निगाह की ग़ज़ल है. हर शेर में एक नयी खुशबू नया संसार बसा है.
एक बेहतरीन ग़ज़ल उस्ताद की कलम से
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये
..उम्दा रचना
गोश्त खाने की ललक ने उन को अंधा कर दिया
हिरन के बेटे बिचारे रोज कटवाए गये
-हर शेर उमा है...गज़ब!! बधाई.
शाही किले की नींव में मज़दूर दफ़नाए गये
तब कहीं उन बुर्ज़ियों के दूर तक साए गये
भीड़ में तक़सीम होकर हो गये रिश्ते सिफ़र
जिस्म अपने-आपको परचम सा लहराए गये
Liked these two ..
God bless
RC
Liked the simple, sober, new look of your blog. I am glad you removed that interesting mouse-pointer :-)
Remember?
RC
भाई जी...बहुत दिनों के बाद आप की रचना पढने को मिली...दिल बाग़ बाग़ हो गया...आपके लेखन का जवाब नहीं...एक सर्जन की तरह समाज की परत दर परत उतार के रख देते हैं आप...धन्य हैं...किसी एक शेर का जिक्र क्यूँ करूँ जब की सारी ग़ज़ल ही उम्दा है...
नीरज
पुनश्च: ब्लॉग का चेहरा मोहरा बदल दिया आपने...बहुत उजला उजला लग रहा है...बधाई.
'गोश्त खाने की ललक ने उन को अंधा कर दिया
हिरन के बेटे बिचारे रोज कटवाए गये'
सत्य वचन !
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गए।
बहुत खूब, जोरदार रचना।
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये.
हर बार की तरह ही बहुत अच्छी रचना लगी.
बहुत बारीकी से अपने आस पास की हर गतिविधियों को कलमबद्ध करते हैं आप.
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
आप भी मुस्कराते नजर आ रहे है !!
पेड़ ने पत्तों से पूछी जब भी उन की आरज़ू
वो बिचारे बोलते क्या सिर्फ मुस्काए गये
adbhut !!!!
कारुणिक सच है.
भेड़िया आया उठा कर रोज बालक ले गया
झूठी हमदर्दी दिखाते लोग चिल्लाए गये
वाह! वाह! बहुत ही जानदार गज़ल लिखी है आपने। दिल में गहरे तक उतर गई।
गजब की गजल। बेहद सार्थक पंक्तियां-
गोश्त खाने की ललक ने उन को अंधा कर दिया
हिरन के बेटे बिचारे रोज कटवाए गये
शाही किले की नींव में मज़दूर दफ़नाए गये
तब कहीं उन बुर्ज़ियों के दूर तक साए गये.....
आदमी के भेष में शैतान ही मिलते रहे
देवता तो पत्थरों के रूप में पाए गये..
Atyant prabhavi.Badhai.
समकालीन समाज का अक्स आपकी गजलों में दिखाई देता है।
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SBAI TSALIIM
बहुत सुन्दर और सटीक रचना.
बहुत सुन्दर गजल, प्रत्येक शेर लाजवाब है।
योगेन्द्र की इस गज़ल ने समाँ ऐसा कर दिया
बोलता तो वो गया और हम भी चुप पाये गये
बधाई ...
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