नमस्ते॥!
गायब रहा कईं दिन..
कोई विशेष बात नहीं...
बस वही कवि-सम्मेलनीय व्यस्तताएं..
इधर जायें-उधर आयें..
थकान उतारने की कोशिश में एक ग़ज़ल दे रहा हूं
आप पढ़ें गुनगुनाएं और फिर बतायें
कैसी लगी..?
तब तक हम भी सब मित्रों के ब्लाग-दर्शन कर टिपियायें ..!!
सूरत से अन्जाने निकले.
लेकिन बड़े सयाने निकले.
ऊंचे-ऊंचे कंगूरों के,
नीचे भी तहखाने निकले.
बहुत दिनों के बाद मिला वो,
किस्से कईं पुराने निकले.
एक हवेली लाखों चरचे,
पत्थर तक दीवाने निकले.
क्या तेरा, क्या मेरा पर्दा,
लोग किसे बहकाने निकले ?
सच में डरता रहा आईना,
जब पत्थर समझाने निकले.
हाथों में फव्वारा लेकर,
बादल को दिखलाने निकले.
बौने थे किरदार अगरचे,
कद्दावर अफ़साने निकले.
कहने को तो अपने थे वो,
परखा तो बेगाने निकले.
--योगेन्द्र मौदगिल
31 comments:
थकान उतारने का बहुत जबरद्स्त इंतजाम किया आपने। हर शेर लाजवाब है। बधाई स्वीकारें।
achcha hai
थकान उतारने का एक बेहतरीन तरीका। वाह।
कहने को तो अपने थे वो,
परखा तो बेगाने निकले.
वाह जी वाह सच कह दिया ।
परखा तो बेगाने निकले .
एक शब्द ही कह सकता हूँ लाजबाब
सच में डरता रहा आईना,
जब पत्थर समझाने निकले.
लाजबाब
किसकी मैं तारीफ करूँ , किसको नज़र-अंदाज़
एक से बढ़कर एक sher है lazabaab jinka अंदाज़
hamesha ki tarah behtareen rachna. maudgil ji badhaai sweekaren.
अरे साहब, आपने नयी प्रविष्टी की बात कही थी सो पोस्ट कर दी है! वैसे सम्मेलन की सफलता के लिए बधाई दे रहा हूँ, स्वीकार करें!
थकान मिटाने का अच्छा प्रबंध किया है आपने.. हर शे'र लाजवाब रोचक और बेहतर प्रस्तुति के साथ... अब आपके क्या कहने .. कवी सम्मेलनों की सफलता के लिए बधाई स्वीकारें...
अर्श
यह रचना अछि लगी
"कहने को तो अपने थे वो,
परखा तो बेगाने निकले"
समस्या तो परखने के कारण हुई.
बड़े भाग्यशाली हैं. थकान इतनी आसानी से निकल जाती है.
आभार.
इब भाई पत्थर समझाण क लिये जायेंगे तो आईने के औकात की वो ना डरै? डरणा ही पडैगा.
घणी बढिया कविता. कवि सम्मेलनिय माल कित सै? वो भाटिया जी को उधारी देणी सै ना.:)
रामराम.
ऊँचे ऊँचे कंगूरों के
नीचे भी तहखाने निकले
बहुत दिनों के बाद मिला वो
किस्से कई पुराने निकले
वाह जी वाह....बहुत खूब....!!
कहने को तो अपने थे वो,
परखा तो बेगाने निकले. ....
बहुतसुंदर भाई साहेब .
एक हवेली लाखों चरचे,
पत्थर तक दीवाने निकले.
क्या तेरा, क्या मेरा पर्दा,
लोग किसे बहकाने निकले ?
waah behtarin
व्वा साहब क्या खूब कही तह-ए-दिल तक जा पोहची
बहुत खूब ...
बस हर शेर को पढ़ते गए और दाद की जड़ी मुंह से अपने आप लग गयी.....कमाल ! सचमुच कमाल...!!!
आनद आ गया पढ़कर...आभार आपका...
ऐसे ही आप थकान उतारा कीजिये और हम सुखी होते रहा करेंगे...
वाह !वाह!वाह!
सभी शेर बहुत बढ़िया हैं..
आईना और पत्थर वाला बेहद उम्दा लगा!
कवि को कवि सम्मलेन में ऐसी थकान हुई कि खूबसूरत ग़ज़ल बन के ऐसे उतरी!वाह!
हाथों में फव्वारा ले कर.....
बहूत खूब...बहूत दिन बाद आये पर दुरुस्त आये जनाब , अपने पुराने अंदाज में
बहूत खूब
वाह ,बहुत उम्दा कैलाश गौतम की याद आ गयी -क्या तेवर है !
सच में डरता रहा आईना,
जब पत्थर समझाने निकले.
आनद आ गया पढ़कर...आभार
लाजबाब
Regards
बहुत खूब भाई योगेन्द्र मौदगिल जी। हमेशा की तरह उम्दा शायरी। आशा है अब नियमित रूप से आपकी गजल पढ़ने को मिलेगी।
Har She'r pasand aaya. Yeh Ghazal to waaqai bahut bahut bhaa gayi.
Haathon mein favvara lekar ... ye She'r to bhai wah!!
God bles
RC
सच में डरता रहा आईना,
जब पत्थर समझाने निकले.
kya baat hai...! bahut bada sach...!
कहने को तो अपने थे वो,
परखा तो बेगाने निकले. ...
शायद दुनिया का यही दस्तूर है......इसलिए बिना परखे ही अगर भ्रम में जिया जाए तो बेहतर है..
सच में डरता रहा आईना,
जब पत्थर समझाने निकले.
पत्थर अगर झूंट भी समझाने निकलेगें तो आइना भले ही न डरे पर उसके मालिक के तो पसीने निकल जायंगे.
जैसे बंद के दौरान कांच के शोरूम डर के मारे बंद रहते हैं कि बंद करने वाले कही गलती से भी पत्थर न फेंक दे....................
कुल मिला कर ग़ज़ल के हर शेर कबिले तारीफ हैं .
मन प्रसन्न कर दिया, मानसिक थकान भी दूर हो गई.
आभार स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
सोचा कुछ चुनिन्दा पद उद्धृत कर दूं ,लेकिन यह तय नहीं कर पाया कि किसे छोड़ दूं.बहुत सुंदर.साधुवाद.
मुझे ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं
कहने को तो अपने थे वो
परखा तो बेगाने निकले
क्या बात हे मौदगिल साहब कहने को तो अपने थे वो परखा तो बेगाने निकले
बेहतरीन गजल बहुत बहुत बधाई एक और इजाफे के लिए
हर शेर उम्दा.....
पूरी गज़ल....कमाल
बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती
ये म्रेरी आपकी वाली सबसे फ़ेवरीट गज़ल है................
हर शेर सवा डेढ़ अढ़ाई शेर हैं...
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