होली पर बहुत व्यस्तता रही इस बार
कविसम्मेलन लगातार लगातार
अब फुरसत में हूं
तो फिर वही कम्प्यूटर यार
बस अब आप सभी के साथ
ब्लाग-गंगा में डुबकी लगायेंगें
पढ़ेंगें और टिपियायेंगें
अभी भी मौसम होलियाना है
या यों कहिये कि एक-दो रचनाएं आप सब को पढ़वाने का बहाना है
तो प्रस्तुत है फिलहाल आप सबके लिये
महावीर जी के ब्लाग पर छपे मेरे दो छंद
होली के बहाने करें गोरियों के गाल लाल
अंग पे अनंग की तरंग आज छाई सी
बसंत की उमंग, मन होली के बहाने चढ़ी
भंग की तरंग रंग ढंग बल खाई सी
सजना मलंग हुए सजनी मृदंग हुई
रास रति रंग रत हवा लहराई सी
दंग हुए देख लोग प्रेम के प्रसंग आज
छुइ मुइ जोड़ियां भी कैसी मस्ताई सी
मीठी मीठी बोलियों के भीगी भीगी चोलियों के
होली के नजारे सब आंखों को सुहाते हैं
रस रंग भाव रंग लय रंग ताल रंग
देख के उमंग को अनंग मुस्काते हैं
सारे मगरूर हुए भंग के नशे में चूर
प्रेम के पुजारी हो मलंग इठलाते हैं
लाग ना लपेट कोई ईर्ष्या ना द्वेष कोई
प्रेम के त्यौहार ही प्रसंग सुलझाते हैं
और अब पढ़िये
सतपाल जी के ब्लाग पर छपी मेरी एक और ग़ज़ल
झूम रहा संसार, फाग की मस्ती में.
रंगों की बौछार, फाग की मस्ती में.
सारे लंबरदार, फाग की मस्ती में.
बूढ़े-बच्चे-नार, फाग की मस्ती में.
गले मिले जुम्मन चाचा, हरिया काका,
भूले मन की खार फाग की मस्ती में.
जाने कैसी भांग पिला दी साली ने,
बीवी दिखती चार, फाग की मस्ती में.
आंगन में उट्ठी जो बातों-बातों में,
तोड़ें वो दीवार, फाग की मस्ती में.
चाचा चरतु चिलम चढ़ा कर चांद चढ़े,
चाची भी तैयार, फाग की मस्ती में.
इतनी चमचम, इतनी गुझिया खा डाली,
हुए पेट बेकार फाग की मस्ती में.
काली करतूतों को बक्से में धर कर,
गली में आजा यार फाग की मस्ती में.
ननदों ने भी पकड़, भाभी के भैय्या को,
दी पिचकारी मार, फाग की मस्ती में.
कईं तिलंगे खड़े चौंक में भांप रहे,
पायल की झंकार, फाग की मस्ती में.
गुब्बारे दर गुब्बारे दर गुब्बारे.......
हाय हाय सित्कार, फाग की मस्ती में.
होली है अनुबंधों की, प्रतिबंध नहीं,
सब का बेड़ा पार, फाग की मस्ती में.
चिड़िया ने भी चिड़े को फ्लाइंग-किस मारी,
दोनों पंख पसार फाग की मस्ती में.
कीचड़ रक्खें दूर 'मौदगिल' रंगों से,
भली करे करतार, फाग की मस्ती में.
और अंत में पढ़िये
सुबीर जी के ब्लाग पर छपी मेरी तरही ग़ज़ल
तेरे अब्बू ने जो लटकाये ताले याद आते हैं
वो पहरेदारी जो करते थे साले याद आते हैं
वो टूटा नल वो गीला तौलिया वो फर्श की फिस्लन
लगे थे गुस्लखाने में वो जाले याद आते हैं
वो रमज़ानी के कोठे पै जो मुरगा बांग देता था
उसी के साथ में उगते उजाले याद आते हैं
कोइ उल्लू का पट्ठा एक दिन भी बांध ना पाया
तेरे सब पालतू कुत्ते वो काले याद आते हैं
बहुत रुसवा किया तूने हमेशा तोड़ कर वादे
मुझे अब भी वो वादों के हवाले याद आते हैं
वो टीटू-नीटू अब भी अल्लसुब्ह ही बैठते होंगें
तुम्हारे शहर के गंदे वो नाले याद आते हैं
जो थी हमने कही ग़ज़लें कि वो तो भूल बैठे हम
तेरे मामू ने जो लिक्खे मक़ाले याद आते हैं
तेरी अम्मां भी झुकती थी तेरा अब्बू भी झुकता था
तेरी दीवार के सैय्यद के आले याद आते हैं
कुछ मित्रों ने मेरा सदुपयोग अपने ब्लाग पर कार्टून बना कर भी किया वो इसके बाद
अभी तो फिलहाल इतना ही
-योगेन्द्र मौदगिल
कविसम्मेलन लगातार लगातार
अब फुरसत में हूं
तो फिर वही कम्प्यूटर यार
बस अब आप सभी के साथ
ब्लाग-गंगा में डुबकी लगायेंगें
पढ़ेंगें और टिपियायेंगें
अभी भी मौसम होलियाना है
या यों कहिये कि एक-दो रचनाएं आप सब को पढ़वाने का बहाना है
तो प्रस्तुत है फिलहाल आप सबके लिये
महावीर जी के ब्लाग पर छपे मेरे दो छंद
होली के बहाने करें गोरियों के गाल लाल
अंग पे अनंग की तरंग आज छाई सी
बसंत की उमंग, मन होली के बहाने चढ़ी
भंग की तरंग रंग ढंग बल खाई सी
सजना मलंग हुए सजनी मृदंग हुई
रास रति रंग रत हवा लहराई सी
दंग हुए देख लोग प्रेम के प्रसंग आज
छुइ मुइ जोड़ियां भी कैसी मस्ताई सी
मीठी मीठी बोलियों के भीगी भीगी चोलियों के
होली के नजारे सब आंखों को सुहाते हैं
रस रंग भाव रंग लय रंग ताल रंग
देख के उमंग को अनंग मुस्काते हैं
सारे मगरूर हुए भंग के नशे में चूर
प्रेम के पुजारी हो मलंग इठलाते हैं
लाग ना लपेट कोई ईर्ष्या ना द्वेष कोई
प्रेम के त्यौहार ही प्रसंग सुलझाते हैं
और अब पढ़िये
सतपाल जी के ब्लाग पर छपी मेरी एक और ग़ज़ल
झूम रहा संसार, फाग की मस्ती में.
रंगों की बौछार, फाग की मस्ती में.
सारे लंबरदार, फाग की मस्ती में.
बूढ़े-बच्चे-नार, फाग की मस्ती में.
गले मिले जुम्मन चाचा, हरिया काका,
भूले मन की खार फाग की मस्ती में.
जाने कैसी भांग पिला दी साली ने,
बीवी दिखती चार, फाग की मस्ती में.
आंगन में उट्ठी जो बातों-बातों में,
तोड़ें वो दीवार, फाग की मस्ती में.
चाचा चरतु चिलम चढ़ा कर चांद चढ़े,
चाची भी तैयार, फाग की मस्ती में.
इतनी चमचम, इतनी गुझिया खा डाली,
हुए पेट बेकार फाग की मस्ती में.
काली करतूतों को बक्से में धर कर,
गली में आजा यार फाग की मस्ती में.
ननदों ने भी पकड़, भाभी के भैय्या को,
दी पिचकारी मार, फाग की मस्ती में.
कईं तिलंगे खड़े चौंक में भांप रहे,
पायल की झंकार, फाग की मस्ती में.
गुब्बारे दर गुब्बारे दर गुब्बारे.......
हाय हाय सित्कार, फाग की मस्ती में.
होली है अनुबंधों की, प्रतिबंध नहीं,
सब का बेड़ा पार, फाग की मस्ती में.
चिड़िया ने भी चिड़े को फ्लाइंग-किस मारी,
दोनों पंख पसार फाग की मस्ती में.
कीचड़ रक्खें दूर 'मौदगिल' रंगों से,
भली करे करतार, फाग की मस्ती में.
और अंत में पढ़िये
सुबीर जी के ब्लाग पर छपी मेरी तरही ग़ज़ल
तेरे अब्बू ने जो लटकाये ताले याद आते हैं
वो पहरेदारी जो करते थे साले याद आते हैं
वो टूटा नल वो गीला तौलिया वो फर्श की फिस्लन
लगे थे गुस्लखाने में वो जाले याद आते हैं
वो रमज़ानी के कोठे पै जो मुरगा बांग देता था
उसी के साथ में उगते उजाले याद आते हैं
कोइ उल्लू का पट्ठा एक दिन भी बांध ना पाया
तेरे सब पालतू कुत्ते वो काले याद आते हैं
बहुत रुसवा किया तूने हमेशा तोड़ कर वादे
मुझे अब भी वो वादों के हवाले याद आते हैं
वो टीटू-नीटू अब भी अल्लसुब्ह ही बैठते होंगें
तुम्हारे शहर के गंदे वो नाले याद आते हैं
जो थी हमने कही ग़ज़लें कि वो तो भूल बैठे हम
तेरे मामू ने जो लिक्खे मक़ाले याद आते हैं
तेरी अम्मां भी झुकती थी तेरा अब्बू भी झुकता था
तेरी दीवार के सैय्यद के आले याद आते हैं
कुछ मित्रों ने मेरा सदुपयोग अपने ब्लाग पर कार्टून बना कर भी किया वो इसके बाद
अभी तो फिलहाल इतना ही
-योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
तीनों रचनाऐं फिर से, अबकी एक जगह, पढ़कर अच्छा लगा. वापसी पर स्वागत.
आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं
आप के खुद के ब्लाग पर रचनाओं ने अधिक आनंद दिया। अंतिम रचना तो क्लासिक है।
गजल मस्त लगी .....फाग की मस्ती में ।
होली का असली मजा तो अब आया.
तीनों की तीनों रचनाऎं एक से बढकर एक.......उम्दा
होली बीतने के बाद भी आपको होली की हार्दिक शुभकामनाऎं...हर दिन होली,रात दीवाली हो.
maudgil ji namaskar, holi ki shubhkaamnayen, aur badhai in teenon eke se badhkar ek rachnaon ke liye.
maudgil ji namaskar, holi ki shubhkaamnayen, aur badhai in teenon eke se badhkar ek rachnaon ke liye.
fir se tino rachnaawon ko padhane ka bharpur man se swagat hai.... aapke waapsi ka bhi swagat karta hun..tarahi me to maza hi aagaya tha ... yaade shesh hai jo aajiwan rahne waali hai... dhero badhai aur saadhuvaad...
arsh
इस बार तो होली पर आप ब्लॉग जगत पे छा गए गुरु जी...धन्य हो...आपको वहां भी पढ़ा और यहाँ भी..... समझिये हम तो रंग भरे कुंड में गोते लगा लिए...
नीरज
होली का आनंद अब जाकर पूरा हुआ जी। वाह क्या कहने जी।
भाई योगेन्द्र जी,
आप को होली के इस पवित्र त्यौहार पर हमारी हार्दिक बधाई, पर देख रहा हूँ कि.............
आप को अपनों ने जब चाहा,
जैसे चाहा,अपने घाट पर नचाया
बुरा न मानों की तर्ज पर
हर घाट का पानी पिलाया,
दोस्तों ने क्या-क्या न करवाया
जनानी का वस्त्र तक पहनाया
समझ आया मतलबियों ने मौकों पर
गधे को भी क्यों बाप बनाया.
अपनी हर दास्ताँ खुद बयां की
जो चुके उन्हें भी बताया
छाबिया जो उघेड़ी कलाकारों ने
बहाना फिर दिखाने का बनाया
एक बार फिर से होली की हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
भाई साहब
तनिक देर से ही सही ...
लेकिन आपको भी बहुत-बहुत मुबारिक
नीरज भाई साहब ने ठीक ही फरमाया है कि हमने तो रंग
भरे कुंड में गोते लगा लिये.
भाई शुक्रिया गोते लगवाने के लिए.
योगेन्द्र जी आपको सपरिवार होली की मँगल कामनाएँ और ३ अलग रँगोँ से सजी सभी रचनाएँ बहुत पसँद आईँ...
मस्ती भरी रचनाओं के लिए आभार.
अजी तीनो रचनऎ बहुत ही सुंदर, पढ कर भांग जितनी मस्ती छा गई
धन्यवाद
...तो होली छोड़ के कविसम्मेलन चल रहा था. बढ़िया है.चलिए कोई बात नहीं, अबीर-गुलाल की शुभकामना लीजिए...अभी-अभी आपकी कुछ लाइनें मैं चुराकर गुनगुना रिया हूं...बुरा न मानो होली है...कविता आपकी हो या हमारी एक ही बात है.
होली के बहाने करें गोरियों के गाल लाल
अंग पे अनंग की तरंग आज छाई सी
बसंत की उमंग, मन होली के बहाने चढ़ी
भंग की तरंग रंग ढंग बल खाई सी
सजना मलंग हुए सजनी मृदंग हुई
रास रति रंग रत हवा लहराई सी
...मस्त-मस्त लाइना. लेकिन सजनी मृदंग हुई. क्या मतलब?
Are Moudgil ji, aap khunte se kab chute...?? Aapne to holi pr dhmal mcha diya hai is baar teen teen fuljhdiyan ek sath....???
Aur ye mitti chedh....
मीठी मीठी बोलियों के भीगी भीगी चोलियों के
होली के नजारे सब आंखों को सुहाते हैं
रस रंग भाव रंग लय रंग ताल रंग
देख के उमंग को अनंग मुस्काते हैं
सारे मगरूर हुए भंग के नशे में चूर
प्रेम के पुजारी हो मलंग इठलाते हैं
लाग ना लपेट कोई ईर्ष्या ना द्वेष कोई
प्रेम के त्यौहार ही प्रसंग सुलझाते हैं
Waah ji Waah...!!
तीनों रचनाएँ...एक साथ....एक जगह पढकर आनंद आ गया
एक साथ तीन रचनाए, सारे हिसाब पुराने याद आते हैं।
लेकिन तीनों में मुझे गज़ल पसंद आई।
बेहद सुन्दर रंगा-रंग रचनाएँ हैं, शुभकामनाएँ ।
अहाहा तीनों रसंरंग रचनाएं एक ही जगह सोने पर सुहागा तो सुना था किन्तु ये तो सोने पर सुहागे के बाद एक और गुण भी है । होली की शुभकामनाएं और तरही मुशायरे में अपनी रचना भेज कर मान बढ़ाने के लिये आभार ।
होली के रंगों में भीगी रचनाऐं,मजा आ गया
होली की फुआर में यूँ ही रंगें रहो
बहुदलीय सरकार से यूँ ही टंगे रहो
बुरा न मानो हँसी और ठिठोली का
खुशियों भरा हो रंग हर बरस होली का
मुंहफट भाई
मुझे नहीं पता आप कुंवारे हैं अविवाहित हैं या विवाहित हैं फिर भी आपके प्रश्न का उत्तर ये है कि मृदंग तबला या ढोलक या उन जैसे थपथपा या ठोक कर बजाने वाले वाद्य-यंत्र को कहा जाता है
काम अथवा रास क्रियाऒं में एड़ी से सर तक हर अंग का थपथपाने से महत्वपूर्ण संबंध है इसीलिये इस होली की मस्त रचना में यह पंक्तिया उसी ऒर इंगित कर रही हैं यदि अभी भी आपकी शंका का निवारण न हुआ हो तो मैं पानीपत में बैठा-बैठा कुछ नहीं कर सकता
शेष शुभ
पुनः शुभकामनाएं
साथ ही अन्य सभी टिप्पणीकार विग्यों को भी
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