भई वाह...!!!
पता भी नहीं लगा कि कब साल बीत गया. दरअसल अपने मंचीय साथी कविवर राजेश चेतन की प्रेरणा से मैंने अपना ब्लाग ६ फरवरी २००८ को शुरू किया. एक रचना पोस्ट की. कोई कमैंट नहीं आया. अगले दिन याने ७ फरवरी २००८ को होली के दो छंद डाले. उस पर एक कमैंट आया.
कंचन सिंह चौहान का.
तब से आज अभी तक यह सफ़र जारी है. मज़ा आ रहा है. बहुत सारे नये मित्र इस माध्यम से मिले.
मैं उन सभी का शुक्रिया अदा करता हूं और हां
ब्लाग सज्जा में मैं कतई अनाड़ी था कविता वाचक्नवी जी ने अपने विदेश प्रवास के दौरान मेरे ब्लाग को इतना सजा दिया कि तब से अब तक अभिभूत हूं .
बहरहाल इस आनन्द में आप सब का भी सहयोग जैसा भी रहा उस के प्रति कृतग्यता ग्यापित करते हुये यह ग़ज़ल कंचन सिंह चौहान एवं कविता वाचक्नवी जी को सादर समर्पित करता हूं
कौन भला है किस के बस में.
सारी दुनिया असमंजस में.
सब को आफत बांटने वाला,
जीत खोजता है बेबस में.
राम उसी के मन में बसते,
करुणा है जिस के अंतस में.
साथ आन के मान का पक्का,
यही तो खूबी थी पोरस में.
सब कुछ फीका इस के आगे,
बहुत मज़ा है कविता-रस में.
देख ज़माना कैसा आया,
ना बेटा, ना बेटी बस में.
क़मतर कोई नहीं 'मौदगिल',
ज़हर भरा है सब की नस में.
--योगेन्द्र मौदगिल
22 comments:
वाह योगेन्दर जी आप ने तो इस जमाने की सही तस्वीर खिंच दी अपनी कविता मै.
धन्यवाद
WAH MAUDGIL SAHAB KIN PANKTIYON KI TAREEF KARUN KINKI NA KARUN , SABHI JAISE HEERE JADI HAIN, BAHUT KHOOB ANAND AA GAYA.
बहुत सही खाका खींचा आपने.
रामराम.
बहुत सही ....
पहले तो बधाई. लगता है अपने ब्लॉग का जन्म दिन भूल ही गए थे. चलो देर आयए दुरुस्त आए. रचना सुंदर लगी. समयचक्र ही है. आभार.
आपके ब्लॉग जीवन की वर्ष गांठ पर हार्दिक शुभकामनाएं !
ब्लाग सालगिरह का पता अब दे रहे हैं आप? बधाई!
पर सब की नस में जहर भरा होना कुछ अजीब सा नहीं है। कोई तो होगा अमृत का प्याला भी।
सुंदर....ज़माने की हकीकत ही पेश कर डाली जनाब.... बधाई.....
राम उसी के मन में बसते,
करुणा है जिस के अंतस में.
साथ आन के मान का पक्का,
यही तो खूबी थी पोरस में.
waah bahut achhi gazal,saalgirah mubarak(blog ki)
ब्लॉग की वर्षगांठ की बहुत बहुत मुबारकबार और अनेक शुभकामनाऐं.
कविता एकदम स्पष्ट चित्र खींच रही है. बधाई.
्ब्लोग की दुनिया मे सफ़लता पूर्वक एक साल पूरा करने पर बहुत-बहुत बधाई और हमेशा की तरह ज़माने की सच्ची तस्वीर दिखाने के लिए भी।लिखते रहिये,मां सरस्वती आप पर सदा प्रसन्न रहे।
मोदगिल साहब
पहले तो बधाई एक वर्ष पूरा होने पर. दूजे इतनी सुंदर और आपके अंदाज़ की रचना कहने पर.
और एक बात कहना चाहता हूँ की आप ख़ुद इतने अच्छे इंसान हैं की आपको स्वतः ही सब पसंद करेंगे, आपके दिल में जो आदर और सम्मान अपने मित्रों की लिए है वो तो आपकी इस पोस्ट से झलकता ही है. मेरी दुआ है आप दिन दुगनी, रात चोगनी तरक्की करें, नयी नयी उचाइयां नापें.
मौदगिल जी, लगता है कि अब तारीफ के लिए कोई नए शब्द घडने पडेंगें,क्य़ूंकि मेरे अपने शब्दकोष के सारे के सारे शब्द आपकी कविताओं पर खर्च हो चुके हैं.अब तो मेरे पास तारीफ के लिए कोई शब्द ही नहीं रह गया है.
बाकी चिट्ठावर्षगांठ के उपलक्ष मे आपको ढेरों शुभकामनाऎं. ईश्वर से कामना करता हूं कि आप अपने चिट्ठे की सिल्वर तथा गोल्डन जुबली भी मनाऎं.
हार्दिक शुभकामनाऎं...........
एक साल से आप जो लगातार हमें इतनी अच्ची रचनाओं से मिलवा रहे हैं,ये कृपा है हम सब पर योगेन्द्र जी...
और ये गज़ल भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुयी है......
दुआ है यूं ही आप साल-दर-साल हमें इन खूबसूरत गज़लों और छंदों से मिलवाते रहें
सब को आफत बांटने वाला,
जीत खोजता है बेबस में.
कमाल !
साल पूरा करने की बधाई !
"हास्य-विधा हो या संजीदा ,
मुदगिल माहिर है हर रस में.."
हुज़ूर नमस्कार ...!
इस कदर नायाब ग़ज़ल कहने पर
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं .....
---मुफलिस---
इस एक साल में जब से आपके ब्लॉग से जुड़े हैं हम भी तो बहुत कुछ सीख रहे हैं. सोच रहा हूँ एक साल पुरे होने की आपको बधाई दूँ या अपने आप को !
वर्षगांठ की बधाई। पर मक़्ते का भाव कुछ अधिक ही निराशावादी हो गया है। आपको नहीं लगता?
Bahut khub.
Pahli varshganth par badhai.
बहुत बदिया!!
... छा गये, कमाल की अभिव्यक्ति है, हर समय कुछ नया बेजोड "सितारा" आसमान मे चमका देते हैं "मौदगिल जी"।
आपको ब्लॉग की वर्षगांठ बहुत-बहुत मुबारक हो
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