कच्चे लंगोट से कभी पक्के लंगोट से.
वो राजनीति में रहे डंके की चोट से.
सोना जो रहे शुद्ध किसी काम का नहीं,
ढलते हैं गहने तो मियां थोड़े से खोट से.
दो गालियां के जूतियां दो, आप की मर्जी,
मरहूम ना करना मगर नेता को वोट से.
ईमान घर में रख के वो दफ्तर चले गये,
परहेज़ कैसा दोस्तों अफसर को नोट से.
ता-ज़िंदगी मर्यादा किसी काम की नहीं,
बालि को मारा राम ने पेड़ों की ऒट से.
जितनी मिली अफीम ससुरी फीस बन गयी,
लो आ रही है गंध वकीलों के कोट से.
योग हो, पूजा के शिक्षा 'मौदगिल' सब को,
फुरसत कहां है आजकल लूटम-खसोट से.
--योगेन्द्र मौदगिल
28 comments:
दो गालियां के जूतियां दो, आप की मर्जी,
मरहूम ना करना मगर नेता को वोट से.
वाह जी वाह !
मोदगिल साहब
जबरदस्त चोट है समाज पर...........
क्या किख दिया आपने..........साधू साधू
व्यंग्य पूर्ण शैली में सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई।
दो गालियां के जूतियां दो, आप की मर्जी,
मरहूम ना करना मगर नेता को वोट से.
"क्या क्या ना सहें हम ने सितम वोट की खातिर.....जवाब नही.."
Regards
WAH SAHAB ISI ANDAJ KE TO KYA KAHANE AAPKE ,FIR SE AAPNE EK BAARGI FIR SE BAHOT HI SATIK BYANGA KASA HAI AAPNE WARTAMAAN PARIWESH KE LIYE ..DHERO BADHAI AAPKO AUR SADHUWAD ..
ARSH
दो गालियां के जूतियां दो, आप की मर्जी,...बहुत अच्छी लगी यह व्यंग कविता
व्यंग तो पैना है मगर डर इतना ही कि भाई लोग इसे सीख न मान बैठें !
योग हो, पूजा के शिक्षा 'मौदगिल' सब को,
फुरसत कहां है आजकल लूटम-खसोट से.
बहुत गहरा व्यंग्य है इस रचना में... लिखते रहिये...
upar sabhi tippaniyon se sahmat, wo kya hai ki kabhi kabhi shortcut se bhi kaam chalaana padta hai.
भई कोई नेताओ या उनके पी.ए. का ई-मेल जानता है सबको यह पोस्ट मेल करो, कुछ नेताओं की अकल तो ठिकाने आये!
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
लाजवाब जी.
रामराम.
ईमान घर में रखकर........
बहुत अच्छे साहब
मौदगिल भाई, लाजवाब रचना है।
गहरा व्यंग्य और कटाक्ष करती आपकी रचनाये पढ़ना अपने आप में अति सुखद अनुभव है.
बहुत ही सुंदर...वाह !
वाह बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
ईमान घर में रख के.........
परहेज कैसा दोस्तो...........
वाह्! बहुत बढिया. नितांत पैना व्यंग्य
मनोरंजक व्यंग. आभार.
सही कह रहे हो मौदगिल भाई
कविता नहीं हकीकत है यह।
शब्दों की शकल में शमशीर है यह।
सुन्दर। बहुत ही सुन्दर।
सोना जो रहे शुद्ध किसी काम का नहीं,
ढलते हैं गहने तो मियां थोड़े से खोट से.
बहुत खुब योगेन्दर जी, आज का कडबा सच तो यही है.
धन्यवाद
क्या बात है, क्या बात है!
शानदार. बहुत शानदार.
कभी मैने लिखा था
नित्य समय की आग पे चढ़ना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है,
माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है
मगर अब
सोना जो रहे शुद्ध किसी काम का नही,
डलते है गहने तो मियाँ, थोड़ी सी खोट से
पढ़ने के बाद खुद का पुनः आँलन करना होगा :)
ताजिंदगी मर्यादा किसी काम की नही,
बालि को मारा राम ने पेड़ों की ओट से
भी कुछ ऐसा ही कह रही है....! :) :)
बहुत सुंदर भाव
योग हो, पूजा के शिक्षा 'मौदगिल' सब को,
फुरसत कहां है आजकल लूटम-खसोट से.
bahut khub sir
सोना जो रहे शुद्ध किसी काम का नहीं,
ढलते हैं गहने तो मियां थोड़े से खोट से.
kamaal ka she'r..bahut khoob !!
दो गालियां के जूतियां दो, आप की मर्जी,
मरहूम ना करना मगर नेता को वोट से.
वाहा जी वाह !
योगेन्द्र जी,कहां है वो लेखनी...किससे रचते हैं आप ये अंगारे
कहीं मिथक,कहीं व्यवस्था,कही राजनीति-सब पर एक-सा डंडा और वो भी करारी चोट वाला
वाह उस्ताद वाह !!!!
करारा व्यंग ।
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