पेट भरा हो.....

जितनी सुन्दर नेमप्लेट.
उतने ऊंचे घर के गेट

पेट भरा हो-लगता है,
भरा-भरा सा सबका पेट.

खूब चढ़ाता मन्दिर में,
बहियों से कर-कर आखेट.

जितना उत्पादन हो यार,
उतना क्यों गिर जाता रेट ?

छोड़ के दारू, बच्चों को,
ला दे कापी और सलेट.

टुक-टुक देख रहा है यार,
घर है कोई भूखे पेट.
--योगेन्द्र मौदगिल

28 comments:

"अर्श" said...

ये अंदाज भी खूब पसंद आया साहब ढेरो बधाई कुबूल करें...मेरी नईग़ज़ल जरुर पढ़े अगर फुर्सत होतो....

आपका
अर्श

दिनेशराय द्विवेदी said...

मौदगिल जी आप की दृष्टि की दाद देता हूँ। सूक्ष्म बातों पर भी नजर रहती है आप की।

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी क्‍या नसीहत दी है आपने पीने वालों को बहुत खूब

निर्मला कपिला said...

छोड दे दारू ब्च्चों को ला दे कोई सलेट अच्छी शिक्षा है बधाई

योगेन्द्र मौदगिल said...

अर्श जी, लगता है आपने अपनी पोस्ट पर आये कमैंट्स ध्यान से नहीं पढ़े. आपकी १५ जनवरी को पंकज जी द्वारा सुधारी गजल पर १५ जनवरी को ही मैं टिपिया लिया था. देखियेगा. क्योंकि आपका यह कहना कि 'फुर्सत हो तो'... भाई.... मैं टिप्पणियों की टीआरपी के चक्कर में अधिक आदान-प्रदान नहीं करता लेकिन स्वभावत जिग्यासु होने के कारण यथासंभव ब्लाग्स पर आता-जाता रहता हूं. टिप्पणी भी करता ही हूं. फिर भी बहुत से ब्लागमित्रों के पास नहीं जा पाता.
खैर... द्विवेदी दा, मोहन भाई आपका आभारी हूं. निर्मल कपिला जी आप संभवतया पहली बार आई हैं. आपका स्वागत है. आभार भी.

दिगम्बर नासवा said...

छोड़ के दारू, बच्चों को,
ला दे कापी और स्लेट.
टुक-टुक देख रहा है यार,
घर है कोई भूखे पेट.

बहुत ह्रदय स्पर्शी मोड़ दिया है इस रचना को मोदगिल साहब............बहूत सुंदर

राज भाटिय़ा said...

भरा-भरा सा सबका पेट.
खूब चढ़ाता मन्दिर में,

बहियों से कर-कर आखेट.
जितना उत्पादन हो यार,

उतना क्यों गिर जाता रेट ?

योगेन्दर जी फ़िर से एक सुंदर कविता के लिये धन्यवाद, बहुत सुंदर भाव लिये है.

Udan Tashtari said...

अंत बड़ा मार्मिक कर दिया.

P.N. Subramanian said...

बहुत सुंदर. हम भी उड़ान तश्तरी से सहमत हैं कहाँ एकदम ज़मीन पे पटक दिया,. आभार.

Alpana Verma said...

बहुत ही सही सही कह दिया है.

सच ही तो है..जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर परायी.-

hem pandey said...

एक सुंदर रचना के लिए साधुवाद.

"अर्श" said...

मौदगिल साहब नमस्कार,
आप तो श्रेष्ठ और आदरणीय है मेरे आप मेरी बात को अन्यथा ना ले चूँकि मैं टिप्पणियों को खासा तवज्जो नही देता इसलिए मैंने ध्यान नही दिया होगा और ना ही मैं TRP के बारे में सोंचता हूँ ,मुझे लगा आपने नई ग़ज़ल ना पढ़ी हो इसलिए ,क्यूँ के आज-कल आप पिछले कुछ दिन से काफी ब्यस्त चल रहे थे जैसा के आपने ख़ुद ही कहा था इसलिए मैंने कहा के अगर आप कभी फुर्सत में हों तो मेरे ब्लॉग पे आप जैसे गुनी लोगों का खासा स्वागत है जिनसे मैं लगातार सिखाने की कोशिश करता हूँ .फुर्सत हो तो को अन्यथा ना लें ये मेरी गुजारिश है मौदगिल साहब आपसे ......


आपका
अर्श

योगेन्द्र मौदगिल said...

मुझे आप से कोई शिकायत नहीं अर्श जी, मैंने कुछ भी अन्यथा नहीं लिया..... निश्चिन्त रहो और लिखते रहो.... कहते रहो....
इस बीच पधारे दिगम्बर भाई, भाटिया जी, पीएनसुब्रमणियम दा, अल्पना जी और हेम पांडे जी का भी हृदय से आभारी हूं.

अमिताभ मीत said...

सही है मालिक ! कभी सपनों में भी रहने दिया करें !

गौतम राजऋषि said...

अब तो तारिफों के लिये नये शब्द-कोश तलाशने पड़ेंगे सर....
और मैंने जिस खास हँसी की बात की थी वो तो डराने वाली नहीं मोहित कर मुर्छित कर देने वाली है

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी रचना...बधाई।

नीरज गोस्वामी said...

खूब चढ़ता मन्दिर में
बहियों से कर कर आखेट
भाई जी ऐसा शानदार शेर लिखना आप के बस की ही बात है...अब क्या तारीफ करूँ जी इस ग़ज़ल की...नत मस्तक हूँ जी...बेहद खूबसूरत..सारे के सारे शेर...
नीरज

Smart Indian said...

वाह, क्या बात है.

कडुवासच said...

छोड़ के दारू, बच्चों को,
ला दे कापी और सलेट.
... प्रससंशनीय अभिव्यक्ति।

विवेक सिंह said...

समाज का यथार्थ सामने ला दिया है !

Himanshu Pandey said...

खूब चढ़ाता मन्दिर में
बहियों से कर-कर आखेट ।"

इन पंक्तियों का संवेदी स्वर और शब्द-चयन लुभा गया।

Vinay said...

बहुत अच्छे से सच को उकेरा है

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जितेन्द़ भगत said...

आम लोगों की खास कवि‍ता।

रंजू भाटिया said...

बेहतरीन लगी यह

Aruna Kapoor said...

रचना बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद है.... मेरे ब्लॉग पर उपस्थिति और सुंदर कॉमेंट के लिए धन्यवाद।

Abhishek Ojha said...

'छोड़ के दारू, बच्चों को,
ला दे कापी और सलेट.
टुक-टुक देख रहा है यार,
घर है कोई भूखे पेट.'
बहुत-बहुत सुंदर.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut sundar, kam shabdon me goodddh baat.

Dr.Bhawna Kunwar said...

eak eak bat akdam sahi ..aapka javab nahi...