बुद्धु भैय्या....

बुद्धु भैय्या मिल से आकर बिस्तर पर गिर जाते हैं
डण्डी वाला पंखा लेकर घंटों कमर खुजाते हैं

छोटी मुनिया बांह दबाये
बीवी बालों को सुलझाये
फिर भी चैन ना आये उनको
पड़े-पड़े बल खाते हैं
बुद्धु भैय्या मिल से आकर बिस्तर पर गिर जाते हैं
डण्डी वाला पंखा लेकर घंटों कमर खुजाते हैं

मिल-मालिक का नाम बहुत है
मिल के भीतर काम बहुत है
मजदूरों को मिलती कौड़ी
उत्पादन का दाम बहुत है

सारा दिन खटता है बुद्धु
सारा दिन खटता है रंगी
बरस महीना हफ्ता रोजई
रहती है रूपये की तंगी

बुद्धू जो मेहनत करता है
बुद्धु जो हिम्मत करता है
बुद्धु जो बरकत करता है
सारी मालिक खा जाते हैं
बुद्धु भैय्या मिल से आकर बिस्तर पर गिर जाते हैं
डण्डी वाला पंखा लेकर घंटों कमर खुजाते हैं

सारी उमर गंवाई मिल में
पूरी देह लुटाई मिल में
अपना घर शम्शान बना कर
शहनाई बजवाई मिल में

सारा दिन मेहनत से कूटे
कसी फावड़ा और हथौड़ी
बदले में दी है तो मिल ने
रोटी लेकिन थोड़ी-थोड़ी

पेट नहीं भरता है पूरा
रह जाता है रोज अधूरा
लेकिन अक्सर पानी पूरा
पीकर पेट हिलाते हैं
बुद्धु भैय्या मिल से आकर बिस्तर पर गिर जाते हैं
डण्डी वाला पंखा लेकर घंटों कमर खुजाते हैं
--योगेन्द्र मौदगिल

22 comments:

mehek said...

har aam insaan ki kahani,bahutkhub prastut hui hai

"अर्श" said...

वह साहब बहोत खूब लिखा है आपने एक आम इंसान की मौलिकता को लिए है ये कविता बेहद उम्दा.....ढेरो बधाई मौदगिल साहब...


अर्श

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sabhi buddhuu hain yahan kuchh-ek ko chhodkar.

Arvind Mishra said...

यथार्थ चित्रण !

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब.

रामराम.

Unknown said...

बहुत लाजवाब!
साधुवाद!
मन की बात

Udan Tashtari said...

बुद्धु भईया के ठसके हैं, बेहतरीन!!

P.N. Subramanian said...

सत्य की जय हो. अति सुंदर. आभार.

Vinay said...

दिल को छू लेने वाली रचना...

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

राज भाटिय़ा said...

आप ने तो इस कविता मै इन सभी की असलियत ही लिख दी...
पता नही कितने बुद्ध भेय्या मेरे इस भारत मै है.
धन्यवाद

विवेक सिंह said...

लाजबाब अभिव्यक्ति ! आप आम आदमी की बात प्रभावशाली तरीके से कह जाते हैं !

Smart Indian said...

बुद्धू भैया का किस्सा तो बड़ा ही रोचक है - अफ़सोस कि उतना ही दुखद भी

seema gupta said...

बुद्धु भईया के इस सजीव चित्रण मे हर एक आम इंसान की दिनचर्या उसकी मेहनत उसका दुःख उसकी बेबसी समाई है ....शानदार"
Regards

Abhishek Ojha said...

बुद्द्धू भइया की बेवसी का इससे अच्छा चित्रण और क्या हो सकता है !

मोहन वशिष्‍ठ said...

छूकर मेरे मन किया तूने क्‍या इशारा


वाह मौदगिल साहब अच्‍छी रचना के लिए बधाई

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! बहुत खूब..........बिल्कुल लाजवाब अभिव्यक्ति.......

गौतम राजऋषि said...

अद्‍भुत रचना सर जी....मजेदार

एकदम से गाने लायक और सच्ची-सच्ची बातों वाली
बहुत सुंदर सर

मोबाईल पर की आपकी हँसी गुँज जाती है कानों में

दिगम्बर नासवा said...

वाह मोदगिल साहब.............आम आदनी को ही उत्तर दिया है इस बार आपने अपनी कविता में.
बहुत अच्छा लिखा है

gaganjaingarg said...

moudgil ji namaskar
aapne bahut achha likha hai janaab lekin aap ne majdoor ki vyatha to likh di factory mallik ki bhi to likho

श्रद्धा जैन said...

wah bhaut hi rochak aur dil ko chhu lene wali rachna hai

बवाल said...

आदरणीय योगी बड्डे,
आज तो फिर आप अपने इस बुद्धू भैया के माध्यम से समाज की दुखती रग दर्शा गये । सच कितना मार्मिक है।
"डण्डी वाला पंखा लेकर घंटों कमर खुजाते हैं," क्या ही सहज में कितने भाव समेटे है जी।
बहुत अच्छी लगी रचना।

Dr.Bhawna Kunwar said...

ye bhi bahut acha raha..kaya kahne aaj aapke blog par aaye to dekha kafi nayi2 post han eak sans men sab padh dali..