कौन कहता है, हमारी बात में पावर नहीं.
सच तो ये है जांचने का आपको अवसर नहीं.
कोई अपना हो न हो, किसको फिकर इस बात की,
वो कहीं जाते तो होंगें, जिनका कोई घर नहीं.
उपहार में भी जख़्म देना, आजकल फैशन हुआ,
बिक गये वो लोग जिनकी बात में तेवर नहीं.
मन का भारीपन दिखाना, यार को भारी लगा,
बात सीना तान कहता हूं, कभी गिरकर नहीं.
चार दिन की ज़िंदगी में ढाई दिन के चोंचले,
बिस्तरे की सलवटें बनती कभी ज़ेवर नहीं.
तुम मेरा ईमान बांचो, मैं तुम्हारे प्यार को,
फिर न कहना आजकल मिलता कोई आकर नहीं.
आज कह दी है ग़ज़ल हमने किसी के वास्ते,
लाख वो कहता रहे कि ये ग़ज़ल हम पर नहीं.
अपने-अपने रास्तों के ज़ख्म अपने हैं मियां,
अपनी ही औक़ात से क़द आपका ऊपर नहीं.
मिल गये तो मिल गये और ना मिले तो ना मिले,
नर्क जीकर भी नहीं और स्वर्ग भी मर कर नहीं.
मन से रिश्तों को निभाना आजकल हठयोग है,
भावना अच्छी रहे बस उस से कुछ बेहतर नहीं.
ताश के पत्ते लगाने आ गये पर 'मौदगिल',
कैसे जम पायेगी रम्मी, एक भी जोकर नहीं
--योगेन्द्र मौदगिल
30 comments:
वाह! वाह! आनंदित कर देनेवाली रचना। एक सांस में पढ़ गया।
वाह ! अच्छी व्यंगोक्तियाँ ,उलाहने और अनुरोध !
मौदगिल साहब हर शे'र उम्दा किसे कहूँ के कौन कैसा है बहोत ही खूब कही आपने इस बार भी वह मज़ा आगया ...
मिल गए तो मिल गए और ना मिले तो ना मिले वाला शे'र तो खासा है ...बेहद उम्दा साहब...
ढेरो बधाई कुबूल करें....
अर्श
सलवटें और ज़ेवर, वाह साहब!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
अभी तो वो पहले वाली गज़ल पढ़ कर हटा कि ये एक और तेवर वाली आ धमकी...
सुभानल्लाह सर
आज कह दी है गज़ल हमने किसी के वास्ते / लाख वो कहता रहे कि ये गज़ल हम पर नहीं...
सुभानल्लाह सर...इस शेर पर मैम की प्रतिक्रिया क्या रही?
माशा अल्लाह क्या क्या बातें एक साथ कह दी. "कैसे जम पायेगी रम्मी, एक भी जोकर नहीं"
Ham aur aap to hain hi. abhar.
उम्दा रचना है। यथार्थ कह दिया है आपने सलीके से।
वाह जी वाह मजा आ गया !
आप के शेरो मै हमेशा एक सच झलकता है, आज भी आप ने हर शेर मै सच ही कहा है.
धन्यवाद
आपसे एक अनुरोध है कि
आप कविता की
पोड कास्ट भी कर देँ
और आनँद आयेगा -
ये कविता सच बयानी सी लगी -
स स्नेह,
- लावण्या
हमेशा की तरह बहुत अच्छी कविता
yogendra ji , kya baat hai ,, bahut khoob ..
itne ache andaaj mein aapne apni baat kahi , wah wah .. mujhe saare sher pasand aaye..
badhai ..
mujhe aapki kitaab chahiye thi , maine mail bi bheja tha , aapko , kuch bataye ..
maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.
vijay
Pls visit my blog for new poems:
http://poemsofvijay.blogspot.com/
'उपहार में भी जख़्म देना, आजकल फैशन हुआ,
बिक गये वो लोग जिनकी बात में तेवर नहीं.' लावण्या जी की सलाह पर ध्यान दिया जाय. प्लीज. आपकी जबान से सुनाने की इच्छा प्रबल हो रही है.
बेहद सच सच कहती रचना.
रामराम.
ताश के पत्ते लगाने आ गये पर 'मौदगिल',
कैसे जम पायेगी रम्मी, एक भी जोकर नहीं
bahut umda
"koi apna na ho ... ",
"Char din ki zindagi - "
"hath yog"
and best is - Maktaa
... Bahut badhiya She'r!!
"Aaj keh di hai" - Pehla misra khoobsoorat, magar Saani padhne ke baad Sher mein utna dum nahi laga :(
Kuchh Asharon mein lay gadbad lag rahi hai ..... ex these Sher - girkar nahin, zevar nahi ... (I know, chhota mooh badi baat, main khud lay mein nahin likhti!! Magar samajhti hoon aur baat satya kehti hoon!)
God bless
RC
अजी मोदगिल जी, इब्बी तक तो थारी पिछली पोस्ट का ससूर बी कोणी उतरया अर गेल्लै ही दूसरी धांसू गजल चिपका दी.
अजी थारा बी जवाब कोणी........
वो कहीं जाते तो होंगें, जिनका कोई घर नहीं.....
सोचने पर मजबूर कर दिया आपने।
बहुत अच्छी रचना।
मोदगिल साहब................एक से बढ़कर एक............दनादन गोले बरसा रहे हो सच्चाई के, बहुत तेज़ धार है आपकी मज़ा आ जाता है आपके ब्लॉग पर आ कर
बहुत खूब......पर इन दिनों तो ढेर सारे जोकर है इस जहाँ मे.....बादशाह ढूंढ़ना अलबत्ता मुश्किल है.....(वैसे आपका इशारा हँसी पर है....)
Yogendraji,
Aapkee rachnaape mai tippanee karun, itnee qabiliyat mujhme kahan ? Isliye aksar chupchaap aake nikal jaatee hun...par aaj raha na gaya...kuchh aise alfaaz padhe jo aaj mere jeevankaa saty bane hue hain,"Uphaarmebhee zakhma dena...",
"Man kaa bhareepan dikhaana, yaarkobhee bharee lagaa"...nishabd hun, jaise kiseene mere manko padhke likh diya ho...
समसामयिक प्रभावों से परिपूर्ण एक सार्थक गजल, बधाई।
वाह ! वाह ! वाह ! आनंद आ गया ! लाजवाब
वाह जी वाह!! क्या बात है..हर एक शेर उम्दा!!
चार दिन की ज़िंदगी में ढाई दिन के चोंचले,
बिस्तरे की सलवटें बनती कभी ज़ेवर नहीं.
तुम मेरा ईमान बांचो, मैं तुम्हारे प्यार को,
फिर न कहना आजकल मिलता कोई आकर नहीं.
आज कह दी है ग़ज़ल हमने किसी के वास्ते,
लाख वो कहता रहे कि ये ग़ज़ल हम पर नहीं.
अपने-अपने रास्तों के ज़ख्म अपने हैं मियां,
अपनी ही औक़ात से क़द आपका ऊपर नहीं.
मिल गये तो मिल गये और ना मिले तो ना मिले,
नर्क जीकर भी नहीं और स्वर्ग भी मर कर नहीं.
मन से रिश्तों को निभाना आजकल हठयोग है,
भावना अच्छी रहे बस उस से कुछ बेहतर नहीं.
सभी एक से बढ़कर एक किस-किस की तारीफ की जाये ...बहुत-२ बधाई ...आपने जो मेरी पोस्ट पर टिप्पणी दी है कबूतर वाली वो बहुत अच्छी लगी धन्यवाद...
एक और सुंदर प्रस्तुति. साधुवाद.
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
मन से रिश्तों को निभाना आजकल हठयोग है,
भावना अच्छी रहे बस उस से कुछ बेहतर नहीं
अति सुन्दर रचना बधाई
विक्रम सिंह
Hamesha ki tarah sundar.
नर्क जीकर भी नहीं और स्वर्ग भी मर कर नहीं.
ग़ज़ब की ग़ज़ल फेर दी योगी बड्डे ! सच बताऊँ इतने उम्दा ख़यालात दिखलाए हैं आपने इसमें के लग रहा है आपसे इसे मोल ले लूँ और हमेशा के लिए अपने पास रख लूँ। बहुत बहुत और बहुत ख़ूब !
बात सीना तान कहता हूं, कभी गिरकर नहीं. अहा !
Post a Comment