राजनीत मंथन करी... (दोहे)

उघड़े-नंगे नागरिक, करते रहे सवाल.
नेता मुस्काते रहे, ऒढ़े मोटी खाल.

वानप्रस्थ जब खोजता, माया अर मधुमास.
तब-तब हिस्से राम के, आता है बनवास.

जातपात-फिरकापरस्त, भेदभाव-विध्वंस.
राजनीत की गोद में, पोषित रावण-कंस.

लक्कड़बग्घे, तेंदुए, गीदड़, कव्वे, सांप.
खड़े इलैक्शन में हुये, तन पर खादी ढांप.

भीतर-भीतर खूब है, कटुता-खींचातान.
स्वयंसिद्ध अपवाद है, राजनीत की आन.

राजनीत मंथन करी, प्राप्त हुआ ये ग्यान.
राम-कृष्ण के देश में, तिकड़म है बलवान.

राजनीत अब तो बनी, इक ऐसा उद्योग.
हानि जिस में है नहीं, सिर्फ लाभ का योग.

राजनीति में इसलिये, करते लोग निवेश.
कुटिया से पहुंचें महल, बदल सकल परिवेष.

सिंह पींजरे में पड़े, बुरी बखत की मार.
जंगल ने फिर से चुनी, गीदड़ की सरकार.

विस्फोटक है योजना, तंत्र हुआ उद्दण्ड.
शुभ्र-वसन विद्रूपता, नीतिगत पाखण्ड.

आंखों पट्टी बांध कर, मौन रहा कानून.
जनसेवक पीते रहे, भारत मां का खून.

पर्चे, बैनर, पोस्टर, माइक, मंच-प्रसार.
नेता जी ने कर लिये, काबू सब हथियार.
--योगेन्द्र मौदगिल

29 comments:

Udan Tashtari said...

गजब के दोहे...आनन्द आ गया!!

युग-विमर्श said...

आपके दोहे कई दृष्टियों से अदभुत है. वर्त्तमान राजनीतिक फलक और सामाजिक वैचारिकता की जो चुभती हुई तस्वीर इन दोहों में है वह उस यथार्थ को उदघाटित करती है जिसे महसूस तो सब करते हैं किंतु ठहर कर उसपर कभी विचार नहीं करते.
shaileshzaidi@gmail.com

Smart Indian said...

आधुनिक दोहों के लिए धन्यवाद! आज के हालत का बहुत सच्चा चित्रण है यह!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक चित्रण है आपके दोहो में ! बहुत शुभकामनाएं !

Dr. Amar Jyoti said...

गागर में सागर।

राजीव रंजन प्रसाद said...

सभी दोहे एक से बढ कर एक हैं, यह कथ्य आदरणीय मौदगिल जी के कलम के बस में ही था।

***राजीव रंजन प्रसाद

Tarun said...

बहुत ही जबरदस्त दोहे हैं

"अर्श" said...

आपकी लेखन की प्रंशंसा मेरे जैसे छोटे कद का क्या करे बस यही के लेखनी का आप पे असीम कृपा है ... बहोत खूब मौदगिल साहब बहोत उम्दा ... फ़िर से कहूँगा कास के लगाया वर्तमान को ....

आपको ढेरो साधुवाद ..

seema gupta said...

" rajneete ka kaccha chiddha, sajeev chitran.."

Regards

Vinay said...

सार्थक, साधुवाद!

गौतम राजऋषि said...

एक-एक दोहा संग्रणिय है कविवर...
आपने तो ब्लौग पर ताला भी लगा लिया है तो इनको सेव भी नहीं कर सकता.

Abhishek Ojha said...

"देखन में छोटे लगें, घाव करे गंभीर" की तर्ज पर कमाल के हैं.

रंजना said...

हर एक दोहा गागर में सागर समेटे हुए है. यथार्थ का सटीक सुंदर चित्रित करते हुए दोहे मन बाँध लेते हैं.अद्वितीय ,अतिसुन्दर............

दिगम्बर नासवा said...

योगेन्द्र जी
मजा आ गया दोहे पड़ कर
राजनीतिज्ञों को इस की कापी जरूर पडाव दें

समयचक्र said...

दोहों के लिए साधुवाद

डॉ .अनुराग said...

bahut khoob...

Ankit said...

बहुत ही अच्छे दोहे कहे है आपने हमेशा की तरह, मुझे विशेष रूप से ये तीन बहुत पसंद आए.

राजनीत मंथन करी, प्राप्त हुआ ये ग्यान.
राम-कृष्ण के देश में, तिकड़म है बलवान.

राजनीत अब तो बनी, इक ऐसा उद्योग.
हानि जिस में है नहीं, सिर्फ लाभ का योग.

राजनीति में इसलिये, करते लोग निवेश.
कुटिया से पहुंचें महल, बदल सकल परिवेष.

Dileepraaj Nagpal said...

shikriya, bahut badhiya sir, maza aa gya.

जितेन्द़ भगत said...

राजनीति‍ का सुंदर आकलन।

राज भाटिय़ा said...

चुभते हुये तीर मारे है आप ने हम सब की दुखती रग से, बहुत ही सटीक,
लक्क्डबग्घे,तेंदुये, गीदड,कव्वे सापं....
भाई तारीफ़ जितनी की जाये कम है, बहुत ही सुंदर
धन्यवाद

pran sharma said...

YOGINDRA JEE,
AAP SATIRE KHOOB KAR
LETE HAIN.AAPKE DOHE IS BAAT KA
SABOOT HAIN.MUBARAK

कंचन सिंह चौहान said...

पहला दोहा विशेष रूप से पसंद आया...!

बवाल said...

कितने बेहतरीन बन पड़े हैं आपके ये दोहे, योगी बड्डे. दर्द और द्रोह की शानदार व्यंगात्मक अभिव्यक्ति. अहा क्या कहना !

Dr.Bhawna Kunwar said...

eak se badhkar eak dohe likhe han aapne sadhuvad...

pallavi trivedi said...

बढ़िया दोहे...

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

आपकी किवता में िजंदगी के यथाथॆ को प्रभावशाली ढंग से अिभव्यक्त िकया गया है । अच्छा िलखा है आपने ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

abhivyakti said...

yogendra bhai is choti didi ki or se rachna ke liye bahut bahut badhai.

दीपक said...

सही कह रहे है मौदगील जी !! ये ससुरा अफ़जल असफ़ल काहे हो गया !!

makrand said...

bahut khub dohe
regards