जिनके पुरखे शामिल थे कल तक देसी गद्दारों में.
उनके वंशज़ मांग रहे हैं सत्ता को दस्तारों में.
गांधी बाबा ने दे दी थी घुट्टी हमें समर्पण की,
इसीलिये तो घूम रहे डाकू, संसद गलियारों में.
सृष्टी के आरंभ से हव्वा-मुफलिस पर हंटर बरसे,
ठठा रहे हैं आदम-अफसर तो नौबत नक्कारों में.
आम आदमी तो गुम है रोटी-बेटी की चिन्ता में,
बड़ा आदमी सोच रहा है क्या होगा सरकारों में..?
जिन पीरोमुरशिद की यारों हमको आज जरूरत है,
वो पीरोमुरशिद तो कब के सोये पड़े मज़ारों में.
एक परिन्दा बोला, इक दिन आसमान को छू लूंगा,
उस दिन से हड़कम्प मचा है जंगल के ऐय्यारों में.
लूटजनी के आरोपों की चिन्ता यारों कौन करे,
नीले गीदड़, शेर बने, अपने-अपने दरबारों में.
अगली सदी में कम्प्यूटर पर गणना कैसे होगी रे,
कौंध रहा है प्रश्न यही तो ज़ेहन के ठेकेदारों में.
थाली में खाते-खाते ये छेद जरूरी करते हैं,
जाने कैसी प्रथा चली है नौकर-चौकीदारों में.
हमें गरीबी-रेखा से ऊपर उठवाने की खातिर,
टाटा जी ले आये देखो नैनो को बाज़ारों में.
--योगेन्द्र मौदगिल
26 comments:
वाह ! आपका जवाब नहीं.
दो सबसे अच्छी पंक्तियों को चुनना चाहता था पर निर्णय नहीं कर पाया. आभार.
गांधी बाबा ने दे दी थी घुट्टी हमें समर्पण की,
इसीलिये तो घूम रहे डाकू, संसद गलियारों में.
लूटजनी के आरोपों की चिन्ता यारों कौन करे,
नीले गीदड़, शेर बने, अपने-अपने दरबारों में.
वाह वा...वाह ...वा...बेजोड़ ग़ज़ल भाई जी बेजोड़....क्या बात है..दिल अन्दर तक तृप्त हो गया...जिंदाबाद...जिंदाबाद...
नीरज
बहुत गजब की रचना ! शुभकामनाएं !
गांधी बाबा ने दे दी थी घुट्टी हमें समर्पण की,
इसीलिये तो घूम रहे डाकू, संसद गलियारों में.
bahut khub...har sher behatarin hamesha ki tarah
अच्छे शेर कहे हैं,
रोज़ मर्रा की बातों को बहुत खूब पिरोया है आपने.
- अंकित सफ़र
खूब खरी खरी . बेहतरीन !
बहुत खबू। बहुत दमदार और सार्थक गजल। ऐसी रचनाएं बहुत कम देखने को मिलती हैं। बहुत बहुत बधाई।
हर शेर उम्दा है, वाह!! वाह!!
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dhanyavaad.
aapne sarvatha theek likha hai, kal tak ke gaddar aaj ke manniya ho gaye
एक परिन्दा बोला, इक दिन आसमान को छू लूंगा,
उस दिन से हड़कम्प मचा है जंगल के ऐय्यारों में.
very very nice sher-o-shayri Maudgill Ji
गज़ब की बात कही है मौदगिल जी, धन्यवाद!
एक परिन्दा बोला, इक दिन आसमान को छू लूंगा,
उस दिन से हड़कम्प मचा है जंगल के ऐय्यारों में.
सीधी सच्ची बात
सुंदर शब्दों मैं
समाज का सही चित्रण
सर जी...कैसे कर लेते हैं आप?इतने सारे भावों और सब के सब यथार्थ से भरे---और फिर उन को नाप तौल कर शेर में ढ़ालना...
एक परिंदा बोला,इक दिन आसमान को छू लूंगा
उस दिन से हड़कम्प मचा है जंगल के एय्यारों में
क्या खूब...
आम आदमी तो गम है रोटी-बेटी की चिंता में ,
बड़ा आदमी सोंच रहा है क्या होगा सरकारों में ...
फ़िर से उम्दा टिपण्णी वर्तमान परिवेश पे बहोत ही सुंदर दिया है आपने ..
आपको ढेरो बधाई...
गांधी बाबा ने दे दी थी घुट्टी हमें समर्पण की,
इसीलिये तो घूम रहे डाकू, संसद गलियारों में
बहुत सुंदर! आम आदमी से जुड़ी हुई शानदार गजल।
कमाल है भाई .... किस शेर की तारीफ़ हो ?
लोग अच्छी पंक्तियों को कितनी जल्दी भाप लेते हैं-
गांधी बाबा ने दे दी थी घुट्टी हमें समर्पण की,
इसीलिये तो घूम रहे डाकू, संसद गलियारों में.
लोगों की इतनी जागरूकता वोट करने और सही जगह करने में मददगार क्यों नहीं होती।
योगेन्दर जी बहुत खुब आप की कविता पढ कर एक हिम्मत आ जाती है, बिलकुल सही लिखा है आप ने, बचपन मै एक कविता पढी... बुंदेलो के मुहं ... याद आ गई
धन्यवाद
समसामयिक यथार्थ का मुखर शब्द-चित्र!
बधाई।
बहुत शानदार कविता ! प्रणाम कवि वर !
बहुत सुंदर हर लफ्ज़ खुबसूरत लगा
वाह ! लाजवाब........बहुत बहुत सुंदर........एकदम खरा सत्य..
Mai ek adnaa-si wyaktee...kin, kin panktiyonko chunun ? Jo sameerji ne tatha anya doston ne kaha wahee dohraa saktee hun...bemisaal alfaaz hain...kaash aaphee kee tarah kisee din maibhee likh paaun ? Abhee to bilkul anjaan hun...abtak apne fiber art tatha anya creative arts pehee zyada dhyan diya gaya hai...aap logonse seekhneko bohot milta hai...!
Lekin kiseekabhee anusaran karna nahee chahtee !
सुंदर रचना/आपको बहुत-बहुत बधाई/
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