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चर्चा जारी रहने दो..............

विजयघोष के सन्नारों की चर्चा जारी रहने दो.
अपने-अपने अधिकारों की चर्चा जारी रहने दो.

वरना तुमको खा जायेंगें ये दहशत के सौदाग़र,
बात-बात में अंगारों की चर्चा जारी रहने दो.

जिन कूचों में खेल-खेलते बचपन छूट गया हम से,
उन कूचों की, गलियारों की चर्चा जारी रहने दो.

चैनल युग की आपाधापी, घर का हिस्सा बन बैठी,
विग्यापित साहूकारों की चर्चा जारी रहने दो.

समता व सद्भाव-एकता और समन्वय की खातिर,
कंगूरों से मीनारों की चर्चा जारी रहने दो.

सुबह लान में बैठ चाय की प्याली में तूफ़ान लिये,
पुन 'मौदगिल' अखबारों की चर्चा जारी रहने दो.
--योगेन्द्र मौदगिल

जाने कैसी प्रथा चली है.................

जिनके पुरखे शामिल थे कल तक देसी गद्दारों में.
उनके वंशज़ मांग रहे हैं सत्ता को दस्तारों में.

गांधी बाबा ने दे दी थी घुट्टी हमें समर्पण की,
इसीलिये तो घूम रहे डाकू, संसद गलियारों में.

सृष्टी के आरंभ से हव्वा-मुफलिस पर हंटर बरसे,
ठठा रहे हैं आदम-अफसर तो नौबत नक्कारों में.

आम आदमी तो गुम है रोटी-बेटी की चिन्ता में,
बड़ा आदमी सोच रहा है क्या होगा सरकारों में..?

जिन पीरोमुरशिद की यारों हमको आज जरूरत है,
वो पीरोमुरशिद तो कब के सोये पड़े मज़ारों में.

एक परिन्दा बोला, इक दिन आसमान को छू लूंगा,
उस दिन से हड़कम्प मचा है जंगल के ऐय्यारों में.

लूटजनी के आरोपों की चिन्ता यारों कौन करे,
नीले गीदड़, शेर बने, अपने-अपने दरबारों में.

अगली सदी में कम्प्यूटर पर गणना कैसे होगी रे,
कौंध रहा है प्रश्न यही तो ज़ेहन के ठेकेदारों में.

थाली में खाते-खाते ये छेद जरूरी करते हैं,
जाने कैसी प्रथा चली है नौकर-चौकीदारों में.

हमें गरीबी-रेखा से ऊपर उठवाने की खातिर,
टाटा जी ले आये देखो नैनो को बाज़ारों में.
--योगेन्द्र मौदगिल