दो गज का सही लेकिन अपना होना बहुत जरूरी है.
जिसको अपना कह पायें वो कोना बहुत जरूरी है.
भाई ऐबी, बाप कबाबी, मां-बहनें अपनी मर्जी की,
बावजूद इन सब का घर में होना बहुत जरूरी है.
घर चाहे गिरने वाला हो, घर चाहे ढहने वाला हो,
अपनी छत के नीचे हंसना-रोना बहुत जरूरी है.
देश हमारा घर है प्यारे और यही बेहतर है प्यारे,
क्योंकि तन कोढ़ी हो फिर भी ढोना बहुत जरूरी है.
सिर्फ भांवरे पड़ जाने से ब्याह नहीं होता पूरा,
बाद ब्याह के यार बिदाई-गौना बहुत जरूरी है.
आंख खोलना और देखना है आंखों-आंखों की बात,
मगर हो धुंधलापन तो आंखें धोना बहुत जरूरी है.
कितना अच्छा हो दीवारें भी घर का अहसास बने,
एक झरोखा आर-पार का होना बहुत जरूरी है.
दुत्कार, गालियां, छींटे-ताने परिवारों से दूर रहें,
'मुदगिल जी' कोई ऐसा जादू-टोना बहुत जरूरी है
--योगेन्द्र मौदगिल
22 comments:
भाई जी...क्या कहूँ ? लाजवाब...रोज मर्रा की छोटी छोटी बातों को आप जिस खूबी से ग़ज़लों में पिरोते हैं की देख कर वाह ख़ुद बा ख़ुद जबान पर आ जाता है...आप का अंदाज़ निराला है...इसीलिए पढने की ललक हमेशा बनी रहती है...एक और यादगार ग़ज़ल...
नीरज
कमाल की रचना ! बहुत शुभकामनाएं !
बहुत अलग तरह अनोखी विशिष्ट रचना है!
जोरदार रचना .यौगेंद्र जी बधाई
जोरदार रचना .यौगेंद्र जी बधाई
घर चाहे गिरने वाला हो घर चाहे ढहने वाला हो
अपनी छत के निचे हँसाना - रोना बहोत जरुरी है ....
एक और कस के लगाया आपने मौदगिल साहब.. वह इस तरह से बात कहना तो कोई आपसे सीखे.. बहोत खूब .
वाह क्या बात है हमेशा की तरह से एक सुन्दर रचना, योगेन्दर जी दिल के करीब यह आप की रचना है.
धन्यवाद
यु ही चमकते रहो राह मे दीये के मानिंद
अंधेरा घना है और पीछे रहगुजर बहुत है !!
एक शेर नहीं उठाता-सभी एक से बढ़कर एक. आनन्द आ गया. क्या उम्दा लिखा है. वाह!! जियो महाराज!!!
कुछ कहने को शेष बचा क्या....लोग तो जैसे टक लगाये बैठे रहते हैं कि कब मोद्गिल जी गज़ल पोस्ट करें और कब हम पढ़ें....और हम हमेशा पछुआ जाते हैं...
पहले तो आपको हमारी अदनी-सी रचना तारिफ़ के काबिल लगी,उसके शुक्रगुजार हैं....दुजे वो अपनी किताबों का हवाला दे दें.एक-एक प्रति ही चाहिये होगी.
शानदार ! बहुत शुभकामनाएं !
"बहुत जरूरी है" Excellent!
" ek ek sher jandaar......apke lekhne ka jvaab nahee"
Regards
एक झरोखा आर पार होना भी जरूरी है ......बहुत खूब.
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने .एक झरोखा आर पार होना भी जरूरी है .यह बहुत पसंद आया
waaah waah waaah waaaaah waaaaaah kitani badai kare.n samajh nahi paa rahe
एक और बेहतरीन रचना !
कमाल है साहब !
भाई ऐबी, बाप कबाबी, मां-बहनें अपनी मर्जी की,
बावजूद इन सब के घर का होना बहुत जरूरी है
Achchi rachchana hai.
RC
मित्र
अमूमन मैं किसी कविता, नज्म, ग़ज़ल की तारीफ़ उसी मूड्स की चार -छः लाईनों से ही करता हूँ जब की कवि नही हूँ पर "या.......-चक्......" बोलती बंद है
घर चाहे गिरने वाला हो ,चाहे ढहने वाला हो ,
अपनी छत के नीचे हसना -रोना बहुत जरूरी है|
पर बाज नही आउंगा ----
रिश्तों से ही घर होते हैं
इसी लिए रिश्ते ही संग हँसते हैं
रिश्ते ही संग-संग रोते भी हैं
रिश्तों के काँधे इसीलिए होते हैं ||
चिटठा
अन्योनास्ति
aap sabhi ka aabhaar...
aapki tippania meri nirantartaa ko barqaraar rakhti hain.
abhinandan aap sabhi ka.
मैंने अपने पसंदीदा ब्लोगों में आपके ब्लाग को रख लिया है,नियमित पढ़ती रहूंगी.अद्भुद लिखते हैं आप...... आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.
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