नयीं लकीरें हाथों पर..............

उनको दिखती होंगी किस्मत की तस्वीरें हाथों पर.
हमको तो दिखती हैं केवल चार लकीरें हाथों पर.

टुकड़े-टुकड़े रात कटी तो धज्जी-धज्जी दिन बीता,
ऊहापोह में बदन रहा तो लीरें-लीरें हाथों पर.

जिस्म की मंडी के सौदागर नगरी-नगरी घूम रहे,
जेब में लैला, कांख में शींरीं, लेकर हीरें हाथों पर.

अजब हौंसले का बन्दा है खाली हाथों आन डटा,
रहा झेलता दुनिया भर की वो शमशीरें हाथों पर.

काटने वाले काट गये फसलें बंदूक की नोकों से,
जोतने वाले चाट रहे हैं गोंद-कतीरें हाथों पर.

मर्द वही कहलाता है जो कष्टों से भयभीत नहीं,
आगे बढ़ कर रोक ले दुक्खों की शहतीरें हाथों पर.

निरे दश्त पर नाकाबन्दी, तालाबन्दी माथे पर,
'मुदगिल जी' अब खुद खेंचेंगें, नयीं लकीरें हाथों पर.
--योगेन्द्र मौदगिल

24 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kya kiya jaaye, jiski poonch uthaiye wahi maada niklta hai

PREETI BARTHWAL said...

बहुत ही सुन्दर रचना।

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत ख़ूब...

श्रीकांत पाराशर said...

Aaj ke halaton ka sateek aur sundar chitran.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना !

manvinder bhimber said...

बहुत सुंदर भाव-प्रवण कविता

Abhishek Ojha said...

वाह ! बहुत सुंदर रचना.

Vinay said...

काटने वाले काट गये फस्लें बंदूक की नोकों से,
खेतिहर फिर चाट रहे हैं गोंदकतीरें हाथों पर.

aaj-kal gambheer baatein ujaagar kar rahein hain, ham haasy kavi ko miss kar rahe hain. plz come back.

अमिताभ मीत said...

क्या बात है भाई .... How are you so prolific ? The rate at which you churn out poetry, I mean.

गौतम राजऋषि said...

अब तो वाह कहने का भी नया अंदाज ढ़ूढ़्ना पड़ेगा योगेन्द्र जी.
सारे के सारे शेर...बढ़-चढ़ कर बोलते हुये.

"अर्श" said...

काटने वाला काट गए फासले बंदूकों की नोक पर ,
खेतिहर फ़िर चाट रहे है गोंदाक्तिरे हांथो पर ,,,

एक बरगी फ़िर आप अपने पुरे लय में दिखे बहोत ही शानदार लगाया आपने फ़िर से .........

आपको ढेरो बधाई

अर्श

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही अच्छी रचना लिखी है आप नै, अब हाथो की लकीरो को हमै खुद ही खिचना होगा...
धन्यवाद

Kavita Vachaknavee said...

achchhee badhiyaa rachanaa hai.

admin said...

आपकी गजल में जिंदगी की रवानी बहुत खूबसूरती से टांक दी जाती है। ये शेर बहुत ही प्यारे लगे-

उनको दिखती होंगी किस्मत की तस्वीरें हाथों पर.
हमको तो दिखती हैं केवल चार लकीरें हाथों पर.


अजब हौंसले का बन्दा है खाली हाथों आन डटा,
रहा झेलता दुनिया भर की वो शमशीरें हाथों पर.

बवाल said...

वाह वाह योगी बड्डे, कमाल लिखते हो सरजी आप. कवित्त की बारीकियाँ बहुत से ब्लोगर्स को आपसे सीखनी चाहिए. मैं आपको इसी प्यार के नाम से पुकारूँगा और आप बुरा नहीं मानेंगे. बुन्देलखंडी में बड्डे का मतलब, बड़े भाई. शायद आप जानते भी हों. पिछली भी सब ग़ज़लें पढ़ डालीं आज. ये विधा आप पर कितनी सजती है, सच. आपका मुरीद बवाल.

Unknown said...

कितनी सुंदर बात कही है आपने, हम अपने हाथों पर ख़ुद नई लकीरें खीचेंगे.

योगेन्द्र मौदगिल said...

आप सभी के स्नेहाशीष के समक्ष नतमस्तक हूं

Satish Saxena said...

योगेन्द्र भाई !
बेहतरीन रचना है आपकी यह, मैंने जितनी आपकी रचनाएँ पढीं हैं उनसब में इसके आगे नत मस्तक हूँ ! मज़ा आगया यार !शुभकामनायें !

दिगम्बर नासवा said...

योगेन्द्र जी

बहूत सुंदर रचना है
आपके लेखन की धार बहुत तेज है
बहुत बहुत बधाई

Smart Indian said...

बहुत सुंदर!

seema gupta said...

" sach mey char lkeeren hee to hotee hain haton mey, dekhne wale ke nazar hone chaheye, adbhut.."

Regards

Straight Bend said...
This comment has been removed by the author.
Straight Bend said...

Really very good composition Yogendra ji. Awesome.

For some reason, my mouse-pointer is not doing copy-paste. But I really loved the Matlaa and jism ki mandi - these 2 She'r !

रंजना said...

वाह ! वाह ! वाह ! जवाब नही.........