गजलगुरू पंकज सुबीर जी को सादर समर्पित
१
अन्धी, बहरी, गूंगी जनता.
कुछ लंगड़ी, कुछ लूली जनता.
नीले गीदड़, बस्ती-बस्ती,
दुबकी, सहमी-सहमी जनता.
किरकेटर बहकाने निकले
दिखा-दिखा कर पैप्सी जनता
अन्धे ऒलम्पिक में अब तो,
वाइफ-स्वैपिंग करती जनता.
इक-दूजे के पूरक हैं भई,
छिछले नेता-छिछली जनता.
चमगादड़ विस्मित हैं प्यारे,
देख-देख कर उल्टी जनता.
पिता जो पुत्री को नचवाए,
उसे रियल्टी कहती जनता.
चहक रही अधनंगी होकर,
टीवी शो की फैन्सी जनता.
मिल जाती है भरो किराया,
जैसे हो भई टैक्सी जनता.
बहकावे दर बहकावे में,
रहे निरन्तर बहकी जनता.
देख 'मौदगिल' रीत नयी,
खुश ही खुश है नंगी जनता.
२
निपट, मूक, गांधारी जनता.
तीन लोक से न्यारी जनता.
नेताऒं की कथनी-करनी,
भुगत रही बेचारी जनता.
कौन दुधारू, कौन बांझ है,
जांच रहा पटवारी जनता.
आपस में तो जीत गई पर,
संसद-संसद हारी जनता.
महंगाई के कुम्भकरण ने,
लेकर मजे डकारी जनता.
नशे में नासमझी के देखो,
जनता की हत्यारी जनता.
बेशरमी का महादौर है,
आजा नच ले, प्यारी जनता.
सब गुण्डों को, मुश्टण्डों को
करके हिम्मत हटा री जनता.
जिससे पिटती उसे उठाती,
क्यों सारी की सारी जनता ?
कुत्ते, बिल्ली, चूहे, गीदड़,
संगत से बटमारी जनता.
यार 'मौदगिल' गज़ल कहो ना,
क्यों जनता पर मारी जनता ?
--योगेन्द्र मौदगिल
20 comments:
bahut khoob
पिता जो पुत्री को नचवाए,
उसे रियल्टी कहती जनता.
चहक रही अधनंगी होकर,
टीवी शो की फैन्सी जनता
योगेन्दर जी आप ने तो बिलकुल सच ही उतार दिया है, कागज के दिल पर.
बहुत ही सुन्दर, आज की सचाई कह दी है, एक एक शव्द सच मे डुबा हुआ.
धन्यवाद
योगेन्द्र जी आपका समर्पण प्राप्त हुआ मैं अभिभूत हूं । आपके वीडियों का लिंक नहीं मिला कहीं मैं अपने एक आयोजक को देना चाहता था कवि सम्मेलन हेतु । कृपया लिंक या यू ट्यूब का को ई लिंक हो तो भिजवा दीजियेगा । आपकी ग़ज़ल के बारे में क्या कहूं आपने तो भारत का कश्मीर से लेकर कन्यकुमारी तक का पूरा नक्शा ही खींच दिया है ।
भाई आज तो कती चाल्हे काट राखें सै , खरी खरी के !
बहुत बढिया और घणी शुभकामनाएं !
आदरेय पंकज जी
अभी यूट्यूब या वीडियो लिंक पर उपलब्ध नहीं हूं
प्रयासरत हूं
जल्दी मिलूंगा
मुझे अधिक प्रसन्नता इस बात की है कि आप इमेलबाक्स से टिप्पणी बाक्स तक आये
स्वागत है
मैं बहुत प्रसन्न हूं
कामन मैन भाई
आप को मेरी रचना फिर भायी मैं कोशिश करूंगा कि और बेहतर कह सकूं
और भाटिया जी आप तो मेरे बड़े भाई हैं
आपका आशीष बना रहे
आप निरन्तर मुझे पढ़ते हैं यही बहुत है
कुछ और मित्रों-शुभचिन्तकों की प्रतीक्षा है
फिलहाल शुभरात्रि
ताऊ जी
हे ताऊ जी
अड़ै बी गड़बड़ कर दी
मैं इतनै टिप्पणी का जवाब देण गया
इतनै आशीर्वाद भेज दिया
जै हो
एक हरियाणवी गजल हरियाणाएक्सप्रैस पर है
एक बात गर्व से कह सकता हूं ताऊ कि लट्ठमार बोली हरियाणवी में गांव पाई जिला कैथल के कवि श्री कंवल हरियाणवी के अलावा हरियाणवी में गज़ल मैने ही कहीं हैं
अब कम्प्यूटर पै कल बेट्ठूंगा
चाल्लूं सूं
घरआली बुलारी सै
ना तो रोट्टी कोनी मिलैं
जिससे पिटती उसे उठाती,
क्यों सारी की सारी जनता ?
कुत्ते, बिल्ली, चूहे, गीदड़,
संगत से बटमारी जनता.
यार 'मौदगिल' गज़ल कहो ना,
क्यों जनता पर मारी जनता ?
कमाल का लिखा है भाई मौदगिल जी..आपकी लेखनी है या जादू की छड़ी :)
बिल्कुल सटीक ..
योगेन्द्र जी बहुत ही अच्छी लिखी है आपने जनता जनार्दन की जीवनी बहुत ही अच्छी लगी और पांडेय जी ने बखूबी सोने पे सुहागा वाला काम कर दिया आपको बधाई
bahut accha kataksh kiya hai. rajneeti ki visangation ko prabhavshali dhag sey uthaiya hai.
अद्भुत रचना।
आपस में तो जीत गई पर,
संसद-संसद हारी जनता
समय के अनुरूप टिपण्णी
भाई मुदगिल जी कमाल की ग़ज़लें लिखी हैं आपने...मैं पिछले कई दिनों से इस काम में जुटा हुआ था लेकिन एक आधा शेर भी ढंग का नहीं बन पाया और इधर आपने इतने सारे शेर लिख दिए...एक से बढ़ कर एक...क्या बात है आप की...लाजवाब...
aashcharya ho raha jo mujhe bahut kathin lag raha tha us par aap ne itani sahajata se kaise itana saara likh diya..natmastak hu.n
आज तो पटापट पंक्तियों की बारिश-सी महसूस हुई, आपने खरेपन से गजल की खूबसूरती बढ़ा दी है। हमेशा की तरह लाजवाब।
यार मौदगिल की यह रचना।
जादू भरी पिटारी जनता।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
मज़ा आगया भाई !
anekanek samajik visangatiyon ko apne chand shabdo me badi hi khoobsurati se prastut kiya hai.
-dr.jaya
जिससे पिटती उसे उठाती,
क्यों सारी की सारी जनता ?
आज की आम जनता भी कमतर
हर जिगर में है लालच हरा देखिए
wah
बहुत ही खूब...
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