अभिव्यंजना है मित्रवर.......

दोस्ती की आंख में दुर्भावना है मित्रवर.
चूंकि बालि-वध कथा अभिव्यंजना है मित्रवर.

मृत्यु के संग सरहदों पर गूंजता जयघोष है,
साधकों की सच यही संसाधना है मित्रवर.

आंख से अब नेह की बदली बरसती ही नहीं,
वासना की इस कदर प्रस्तावना है मित्रवर.

देश में हर देशवासी चैन से, सुख से रहे,
है यही शुभकामना, यह प्रार्थना है मित्रवर.

राबतें हैं, ख़लवतें हैं, होश के बिन जोश है,
आस का पंछी जनम से अनमना है मित्रवर.

अब तो समझौते निभाने का किया है फैसला,
अब कहीं जाकर के घर में घर बना है मित्रवर.

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर.

सोचता हूं देख कर दुनिया की हालत 'मौदगिल'
अच्छा है हद्देनज़र कोहरा घना है मित्रवर.
--योगेन्द्र मौदगिल

24 comments:

गुरतुर गोठ said...

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर.

मौदगिल जी बहुत ही भावप्रधान, आभार आपका ।

ताऊ रामपुरिया said...

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर.

अति सुंदर ! बहुत शुभकामनाएं !

seema gupta said...

देश में हर देशवासी चैन से, सुख से रहे,
है यही शुभकामना, यह प्रार्थना है मित्रवर.
' what a great wish and desire'
regards

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

क्या बात है। आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं।

मानोशी

Anil Pusadkar said...

हर पन्क्ति,हर शब्द कुछ कहता है,आपकी पीडा को अभिव्यक्त करता है।बहुत सुन्दर रचना है,दिल से लिखी गई और दिल को छू गई।

BrijmohanShrivastava said...

प्रियवर ,अत्यधिक सुंदर /आँख से अब नेह की बदली बरसती है नहीं से भी ज़्यादा गहरी बात "गर्व के पीछे वेदना " यह मात्र कवि की कल्पना ही नहीं हकीकत है /अनुभव की बात है /घर में हम अपनी प्रतिष्ठा रखते हुए किसी को डाट दे -हम अपने पति अभिमान से ग्रस्त ,गलती न होने पर भी पत्नी से नाराज़ हो जायें और जब गर्व कम हो और हम शांत हों [शांत हों से मतलब चित्त शांत हो ]तो तो पीडा की अनुभूति होती है वही न सो पाना है -सोने का [स्वर्ण का नहीं] अर्थ ही है शांत चित्त हो जाना और अशांत चित्त होना एक घुटन एक बेदना की अनुभूति ही न सोना है /बहुत अच्छी रचना लगी

नीरज गोस्वामी said...

योगेन्द्र भाई
नमन है आपको....आप की प्रतिभा के सम्मुख नतमस्तक हूँ...एक एक शब्द ऐसा चुन चुन कर डाला है आपने ग़ज़ल में के आह और वाह दोनों साथ साथ निकलते हैं...किस शेर की तारीफ करूँ और किस को छोडूं असमंजस में हूँ...कमाल की रचना...बहुत बहुत बधाई बंधूवर.
नीरज

Unknown said...

बहुत खूब मित्रवर । आप की अभिव्यंजना बहुत ही खूबसूरत है ।

admin said...

आंख से अब नेह की बदली बरसती ही नहीं,
वासना की इस कदर प्रस्तावना है मित्रवर.

अब तो समझौते निभाने का किया है फैसला,
अब कहीं जाकर के घर में घर बना है मित्रवर.

अच्‍छे शेर हैं, बधाई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर. - wah srimaan

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर. - wah srimaan

रविकांत पाण्डेय said...

आंख से अब नेह की बदली बरसती ही नहीं,
वासना की इस कदर प्रस्तावना है मित्रवर.

बहुत प्यारी रचना। भाव और शब्द दोनों सुंदर।

भूतनाथ said...

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर.
बहुत सही कहा ! धन्यवाद !

दीपक "तिवारी साहब" said...

बंधू बहुत जोरदार ! तिवारी साहब का सलाम !

डॉ .अनुराग said...

दोस्ती की आंख में दुर्भावना है मित्रवर.
चूंकि बालि-वध कथा अभिव्यंजना है मित्रवर.

हिन्दी के शब्दों को लेकर ऐसी रचना आप ही कर सकते है....

कंचन सिंह चौहान said...

मृत्यु के संग सरहदों पर गूंजता जयघोष है,
साधकों की सच यही संसाधना है मित्रवर.

आंख से अब नेह की बदली बरसती ही नहीं,
वासना की इस कदर प्रस्तावना है मित्रवर.
satya evam tathaya ka sukhad sammishran....!

दीपक said...

कलेजा ही काट कर रख दिया ब्लाग पर
नगमा नही है,ये तो फ़साना है मित्रवर!!

राज भाटिय़ा said...

अब तो समझौते निभाने का किया है फैसला,
अब कहीं जाकर के घर में घर बना है मित्रवर.
भाई आप ने तो आज के सच को लफ़्ज दे दिये है, एक जुबान देदी है. ओर हमारी तारीफ़ तो कुछ भी नही आप के इन मोतियो के सामने.
धन्यवाद

गौतम राजऋषि said...

नीरज जी के शब्दों से वाकिफ़ होते हुये...सच में किसको छोड़ें किस पर वाह ना निकले.
हर बार चमत्कृत रह जाता हूँ आपकी गज़लें पढ़ कर

Udan Tashtari said...

सोचता हूं देख कर दुनिया की हालत 'मौदगिल'
अच्छा है हद्देनज़र कोहरा घना है मित्रवर.

-क्या बात कही!! वरना तो जीना मुश्किल हो जाये. बहत ही खूब!! वाह!!

Ashok Pandey said...

गालियां देकर मुझे वो सो ना पाया रात भर,
गर्व के पीछे जरूरी वेदना है मित्रवर.

सोचता हूं देख कर दुनिया की हालत 'मौदगिल'
अच्छा है हद्देनज़र कोहरा घना है मित्रवर.

बहुत खूब..बहुत सुंदर रचना। भाई योगेन्‍द्र मौदगिल जी आपकी लेखनी का जवाब नहीं।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

wah, wah, wah-

सोचता हूं देख कर दुनिया की हालत 'मौदगिल'
अच्छा है हद्देनज़र कोहरा घना है मित्रवर.

अभिषेक मिश्र said...

इक-दूजे के पूरक हैं भई,
छिछले नेता-छिछली जनता.


Bahut achi lagi ye panktiyan aur kavita aapki. Regards.

Ankit said...

आपने बहुत ही अच्छी बात कही है, सुबीर जी का मार्गदर्शन के साथ साथ आप लोगो के भी आशीर्वाद की भी ज़रूरत है.

अंकित सफर