यही है धुर से चलन........

ये कौन होड़ है, भई अब के नौजवानों में.
तोड़ के रिश्ते गये बैठ बियाबानों में..

बाप-दादा ने कमाये थे जो ज़मानों में.
लुटा रहें हैं वो सिक्के शराबखानों में..

देखें, किस की पुकार जाये आस्मानों में.
अजीब जंग है जयघोष में, अज़ानों में..

ना तो है राग, ना ही मौसिक़ी है गानों में.
लगा ले रूई का फाहा उठा के कानों में..

घर से मेहमान जाये तो रसोई महकेगी,
गजब की रीत सयानों के ख़ानदानों में..

कौर गिनती के फ़क़त मिलते कामग़ारों को,
यही है धुर से चलन सारे कारखानों में..

जुबांदराज़ी है गहना जुब़ान वालों का,
यही सक़ता है भाई सारे बेज़ुबानों में..

बात-बेबात में दीवारबाज़ी है गोया,
अजीब सिफ्त है रे आजकल मक़ानों में..

ना लगे दांव तो सुविधा का रोना रोते हैं,
क्योंकि है चूकने का दौर सब निशानों में..

अजब हैं रिश्ते, गजब की कब़ीलदारी है,
ना तो है सब्र, ना ही कै़फ़, कद्रदानों में..

ये दैर है, ये हरम, चर्च ये है गुरद्वारा,
अपनी-अपनी है मोहर 'मौदगिल' ठिकानों में..
--योगेन्द्र मौदगिल

21 comments:

seema gupta said...

बाप-दादा ने कमाये थे जो ज़मानों में.
लुटा रहें हैं वो सिक्के शराबखानों में..
" kya khub chun chun kr ek ek sher likha hai, sbhee sunder'

regards

Anil Pusadkar said...

क्या बात है।दिल जीत लिया आपने।

डॉ .अनुराग said...

ना लगे दांव तो सुविधा का रोना रोते हैं,
क्योंकि है चूकने का दौर सब निशानों में..

अजब हैं रिश्ते, गजब की कब़ीलदारी है,
ना तो है सब्र, ना ही कै़फ़, कद्रदानों में..

ये दैर है, ये हरम, चर्च ये है गुरद्वारा,
अपनी-अपनी है मोहर 'मौदगिल' ठिकानों में..



वाह!! हजूर छा गये आप तो

दीपक "तिवारी साहब" said...

अजब हैं रिश्ते, गजब की कब़ीलदारी है,
ना तो है सब्र, ना ही कै़फ़, कद्रदानों में..

बहुत खूब ! बधाई !

ताऊ रामपुरिया said...

बाप-दादा ने कमाये थे जो ज़मानों में.
लुटा रहें हैं वो सिक्के शराबखानों में..

छा गे भाई ! घणै दिनों म्ह दिखै ?

भूतनाथ said...

बात-बेबात में दीवारबाज़ी है गोया,
अजीब सिफ्त है रे आजकल मक़ानों में..

बहुत दम घुटता है जनाब ! बेहतरीन रचना !
बधाई !

दीपक said...

अजब हैं रिश्ते, गजब की कब़ीलदारी है,
ना तो है सब्र, ना ही कै़फ़, कद्रदानों में..


क्या बात कही है !! बहुत खुब

मोहन वशिष्‍ठ said...

घर से मेहमान जाये तो रसोई महकेगी,
गजब की रीत सयानों के ख़ानदानों में..

गजब का लिखा है वैसे तो आपकी लेखनी के कायल हम पहले से ही हैं धन्‍यवाद

Vinay said...

अजब हैं रिश्ते, गजब की कब़ीलदारी है,
ना तो है सब्र, ना ही कै़फ़, कद्रदानों में..

बहुत ज़ोरदार बात कह दी...

admin said...

ये कौन होड़ है, भई अब के नौजवानों में.
तोड़ के रिश्ते गये बैठ बियाबानों में..

देखें, किस की पुकार जाये आस्मानों में.
अजीब जंग है जयघोष में, अज़ानों में..

आज के हालात पर बिलकुल फिट बैठती पंक्तियाँ हैं, बधाई।

Manish Kumar said...

अच्छा लिखा है आपने

"अर्श" said...

ek bar fir aapne musalsal chot mara hai aaj k jamane me ..bahot hi umda rachana hai....
जुबांदराज़ी है गहना जुब़ान वालों का,
यही सक़ता है भाई सारे बेज़ुबानों में..
log samaj ke implement karlete to kya bat thi.....

badhai swikaren...
regards

योगेन्द्र मौदगिल said...

आभारी हूं आप सभी का

राज भाटिय़ा said...

बाप-दादा ने कमाये थे जो ज़मानों में.
लुटा रहें हैं वो सिक्के शराबखानों में..
भाई आप इन बच्चो को क्यो गुस्सा हो रहे हॊ गलती हम सबकी हे, मे अपने घर से ही बात चलाता हु, छोटे भाई का लडका जो करे कम, लेकिन उस के मां वाप को कुछ नही दिखता, यह हाल उस घर का नही सभी घरो का हे ओर ऎसे बच्चे क्या करेगे????
आप ने कविता बहुत ही सुन्दर लिखी हे ,थोडा ठर कर सब का आभार जताया करो मे समय के हिसाब से या तो पहला या फ़िर सब से बाद मे आता हु.
धन्यवाद

योगेन्द्र मौदगिल said...

भाटिया जी,
दरअसल आपका हमारा रिश्ता तो आभार, धन्यवाद, शुक्रिया आदि से हटकर है..
आप नाराज न हों..
हम तो आपको दिल में रखते हैं फिर ये पहले-बाद की औपचारिकता कैसी..?

Arvind Mishra said...

वाह मौदगिल जी बहुत खूब !

Anonymous said...

vah-vah-vah, dhnyabad

गौतम राजऋषि said...

...फिर से बेहतरिन रचना और हम हर बार की तरह चकित अवाक विस्मित आपके शब्द-संयोजन और विचारों की मनोरम प्रस्तुती पर.

Ashok Pandey said...

हमेशा की तरह बेहतरीन रचना..आभार।

Asha Joglekar said...

घर से मेहमान जाये तो रसोई महकेगी,
गजब की रीत सयानों के ख़ानदानों में..

Bahut badhiya.

Asha Joglekar said...

घर से मेहमान जाये तो रसोई महकेगी,
गजब की रीत सयानों के ख़ानदानों में..

Bahut badhiya.