है कहां रौनक, कहां मेले, कहां बाज़ार अब.
चार सू उठता धुआं, मंज़र हुए अंगार अब.
भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.
एक वह दिन था के उसके पांव ही थकते न थे,
एक यह दिन है पड़ा, हारा-थका, बीमार अब.
जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.
अब नहीं खुशबू गुलों में इत्र नकली बच गया,
नागफनियां बैठकों का बन गई श्रंगार अब.
लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.
सूचनाएं, लोकरंजन कर नहीं सकती कभी,
आइये मिल कर करें, कुछ काव्य का उद्धार अब.
मातमी, ग़मगीन शेरों से गज़ल मुर्झा रही,
व्यंग्य, करुणा, स्नेह की दरकार है बौछार अब.
--योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
पढ कर आनन्द आ गया . लिखते रहें .
जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.
योगेन्दर जी बहुत ही सच लिखा हे आप ने, एक नंगा सच
धन्यवाद
सत्य वचन
''सूचनाएं, लोकरंजन कर नहीं सकती कभी,
आइये मिल कर करें, कुछ काव्य का उद्धार अब.
मातमी, ग़मगीन शेरों से गज़ल मुर्झा रही,
व्यंग्य, करुणा, स्नेह की दरकार है बौछार अब.''
बहुत सुंदर भाई योगेन्द्र मौदगिल जी, बहुत बढि़या। आभार।
बहुत ही बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।
जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.
लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.
बहुत सुंदर ! बधाई !
यह भी तो बोझिल कर गयी .मौदगिल जी -कहाँ है वह नव प्रयाण !
BAHUT KHUB ...
है कहां रौनक, कहां मेले, कहां बाज़ार अब.
चार सू उठता धुआं, मंज़र हुए अंगार अब.
भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.
suder likha hai
बदलते वक़्त और रिश्तों का सुंदर चित्रण किया आपने. बहुत अच्छी रचना.
कवि वर भूतनाथ का प्रणाम स्वीकार कीजिये ! पिछले २ घंटे
से आपकी कवितायें पढ़ रहा हूँ ! बहुत मजा आ रहा है !
धन्यवाद !
भूतनाथ प्यारे,
कविताएं पढ़ कै पड़ियो मत..
अभिषेक जी, मनविन्दर जी, अनवर भाई शुक्रिया.
अरविंद जी, मेरा तो मानना है कि बोझिलता शरीर में रहती है कविता में नहीं..
आप तो वैसे भी शरीर-विशेषग्य हैं..!!
ताऊ जैरामजीकी..!!!
परमजीत जी, अशोक जी, अनिल जी, विवेक जी, आप का मेरी कविताऒं के प्रति प्रेम शाश्वत है.
भाटिया जी, आपसे तो गले मिलने को मन कर रहा है...आप सभी से बहुत प्रेरणा मिलती है मुझे
देते रहिये...
देते रहिये.....
इसी निवेदन के साथ...
वाह इस काव्यात्मक धन्यवाद के लिए !
है कहां रौनक,कहां मेले,कहां बाज़ार अब
चार सू उठता धुआं,मंजर हुए अंगार अब
....श्रधेय योगेन्द्र जी क्या बात है.पहली बार आपके ब्लोग पर आया.ये तो पूरा का पूरा खजाना है."मेरी मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम ह" सुभानल्लाह. आपकी गज़ल-संग्रह खरिदना चाहता हूँ.
मुझे आपकी दो लाइने इतनी पसंद आई की मैंने आपसे
बिना इजाजत मेरे ब्लॉग पर लगा ली हैं !
क्षमा याचना सहित !
जैरामजी की !
कहां रौनक, कहां मेले, कहां बाज़ार अब.
चार सू उठता धुआं, मंज़र हुए अंगार अब.
भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब
बहुत अच्छा लिखा है।
जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.
--क्या बात है!!! छाये हुए हैं आप..बेहतरीन!!
लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.
vah ....vah kya baat kahi......
बहुत खुब..
क्या बात है.. बहुत ही उम्दा..
भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.
जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.
लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.
बहुत प्यारे शेर हैं। बधाई।
हमेशा की तरह बहुत सुंदर-
भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.
आप सभी के प्यार से अभिभूत हूं..
आपका स्नेह अमूल्य है..
साधुवाद...
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