प्यार बनता जा रहा है....

है कहां रौनक, कहां मेले, कहां बाज़ार अब.
चार सू उठता धुआं, मंज़र हुए अंगार अब.

भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.

एक वह दिन था के उसके पांव ही थकते न थे,
एक यह दिन है पड़ा, हारा-थका, बीमार अब.

जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.

अब नहीं खुशबू गुलों में इत्र नकली बच गया,
नागफनियां बैठकों का बन गई श्रंगार अब.

लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.

सूचनाएं, लोकरंजन कर नहीं सकती कभी,
आइये मिल कर करें, कुछ काव्य का उद्धार अब.

मातमी, ग़मगीन शेरों से गज़ल मुर्झा रही,
व्यंग्य, करुणा, स्नेह की दरकार है बौछार अब.
--योगेन्द्र मौदगिल

23 comments:

विवेक सिंह said...

पढ कर आनन्द आ गया . लिखते रहें .

राज भाटिय़ा said...

जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.
योगेन्दर जी बहुत ही सच लिखा हे आप ने, एक नंगा सच
धन्यवाद

Anil Pusadkar said...

सत्य वचन

Ashok Pandey said...

''सूचनाएं, लोकरंजन कर नहीं सकती कभी,
आइये मिल कर करें, कुछ काव्य का उद्धार अब.

मातमी, ग़मगीन शेरों से गज़ल मुर्झा रही,
व्यंग्य, करुणा, स्नेह की दरकार है बौछार अब.''

बहुत सुंदर भाई योगेन्‍द्र मौदगिल जी, बहुत बढि़या। आभार।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।


जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.

ताऊ रामपुरिया said...

लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.

बहुत सुंदर ! बधाई !

Arvind Mishra said...

यह भी तो बोझिल कर गयी .मौदगिल जी -कहाँ है वह नव प्रयाण !

Anwar Qureshi said...

BAHUT KHUB ...

MANVINDER BHIMBER said...

है कहां रौनक, कहां मेले, कहां बाज़ार अब.
चार सू उठता धुआं, मंज़र हुए अंगार अब.

भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.
suder likha hai

Abhishek Ojha said...

बदलते वक़्त और रिश्तों का सुंदर चित्रण किया आपने. बहुत अच्छी रचना.

भूतनाथ said...

कवि वर भूतनाथ का प्रणाम स्वीकार कीजिये ! पिछले २ घंटे
से आपकी कवितायें पढ़ रहा हूँ ! बहुत मजा आ रहा है !
धन्यवाद !

योगेन्द्र मौदगिल said...

भूतनाथ प्यारे,
कविताएं पढ़ कै पड़ियो मत..
अभिषेक जी, मनविन्दर जी, अनवर भाई शुक्रिया.
अरविंद जी, मेरा तो मानना है कि बोझिलता शरीर में रहती है कविता में नहीं..
आप तो वैसे भी शरीर-विशेषग्य हैं..!!
ताऊ जैरामजीकी..!!!
परमजीत जी, अशोक जी, अनिल जी, विवेक जी, आप का मेरी कविताऒं के प्रति प्रेम शाश्वत है.
भाटिया जी, आपसे तो गले मिलने को मन कर रहा है...आप सभी से बहुत प्रेरणा मिलती है मुझे
देते रहिये...
देते रहिये.....
इसी निवेदन के साथ...

Arvind Mishra said...

वाह इस काव्यात्मक धन्यवाद के लिए !

गौतम राजऋषि said...

है कहां रौनक,कहां मेले,कहां बाज़ार अब
चार सू उठता धुआं,मंजर हुए अंगार अब

....श्रधेय योगेन्द्र जी क्या बात है.पहली बार आपके ब्लोग पर आया.ये तो पूरा का पूरा खजाना है."मेरी मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम ह" सुभानल्लाह. आपकी गज़ल-संग्रह खरिदना चाहता हूँ.

ताऊ रामपुरिया said...

मुझे आपकी दो लाइने इतनी पसंद आई की मैंने आपसे
बिना इजाजत मेरे ब्लॉग पर लगा ली हैं !
क्षमा याचना सहित !

जैरामजी की !

संगीता पुरी said...

कहां रौनक, कहां मेले, कहां बाज़ार अब.
चार सू उठता धुआं, मंज़र हुए अंगार अब.

भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब
बहुत अच्छा लिखा है।

Udan Tashtari said...

जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.


--क्या बात है!!! छाये हुए हैं आप..बेहतरीन!!

डॉ .अनुराग said...

लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.

vah ....vah kya baat kahi......

रंजन (Ranjan) said...

बहुत खुब..

कुश said...

क्या बात है.. बहुत ही उम्दा..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.


जांच लेते हैं गले मिलते समय ही जेब को,
हो चुके भाई-बहन, व्यवहार में हुशियार अब.


लो अकेला हो गया मैं हर तरफ से दोस्तों,
साफगोई हो गयी है चीन की दीवार अब.

बहुत प्यारे शेर हैं। बधाई।

जितेन्द़ भगत said...

हमेशा की तरह बहुत सुंदर-

भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब.

योगेन्द्र मौदगिल said...

आप सभी के प्यार से अभिभूत हूं..
आपका स्नेह अमूल्य है..
साधुवाद...