यहां जहन्नुम के माने भी बदल गये.
लोग कमीने काम साध कर निकल गये.
दहशतगर्दी अमन-चैन को लील गयी,
धर्म के अजगर मासूमों को निगल गये.
देखो सारी झील रेत से अटी, कहां..
पानी, मछली, काई, कश्ती, कमल गये
विस्फोटों से ज्यादा भूख से मरते हैं,
पढ़े आंकड़े भैय्या हम तो दहल गये.
सांझ बने थे रिश्ते जोरा-जोरी में,
आंख खुली तो सारे तेवर बदल गये.
मजदूरी के भाव गिरे उतनी दर से,
जितनी दर से शेयर सारे उछल गये.
कोसी-तांडव की इंतज़ार थी मुद्दत से,
इसी बहाने मंत्री नभ में टहल गये.
जेब कल्पना, भूख प्रेरणा 'मुदगिल जी',
जीने की शिद्दत में सारे महल गये.
--योगेन्द्र मौदगिल
16 comments:
जीने की शिद्दत में सारे महल गये.
सारे महल ढह गए कर दें तो ?कवि से आग्रह सहित !
त्रासदी का मर्मस्पर्शी चित्रण !
आने वाले युग की आहट का तीखा दंश है यहॉं-
देखो सारी झील रेत से अटी, कहां..
पानी, मछली, काई, कश्ती, कमल गये
और यहाँ मालिक-मजदूर के बीच गहराती खाई का ब्योरा उचित ढ़ग से प्रस्तुत किया गया है।
मजदूरी के भाव गिरे उतनी दर से,
जितनी दर से शेयर सारे उछल गये.
हर बार की तरह सुंदर और मर्मस्पर्शी ।
कोसी-तांडव की इंतज़ार थी मुद्दत से,
इसी बहाने मंत्री नभ में टहल गये.
बहुत मार्मिक रचना !
देखो सारी झील रेत से अटी, कहाँ
पानी, मछली, काई, कश्ती,कमल गए
बहुत खूब मुदगिल जी...मान गए क्या ग़ज़ल लिखी है आपने...कमाल...हर शेर लाजवाब...
नीरज
क्या खूब वर्णन किया है आपने। सचमुच दिल दहल जाता है ।
विस्फोटों से ज्यादा भूख से मरते हैं,
पढ़े आंकड़े भैय्या हम तो दहल गये.
सांझ बने थे रिश्ते जोरा-जोरी में,
आंख खुली तो सारे तेवर बदल गये.
" sach mey bhut hee bhayank or dardnak"
Regards
आप सचमुच ही बहुत ही अच्छा लिखते हैं। हमे जो बात कहने के लिए २०० शब्द लगते हैं वो आप २० शब्दों में बयान कर जाते हैं। मार्मिक पर सुंदर रचना।
कोशी पर आपकी रचना से बहुत ही प्रभावित। पूरा मर्म उकेर दिया आपने।
विस्फोटों से ज्यादा भूख से मरते हैं,
पढ़े आंकड़े भैय्या हम तो दहल गये.
bahot hi sundar tippani hai aaj ke pariwesh ke liye.......kya pata kab logon ki aankhen khulengi.....bahot hi sundar bhav hai...badhai...
regards
Arsh
तांडव का यथार्थ चित्रण किया है आपने.
यहां जहन्नुम के माने भी बदल गये.
लोग कमीने काम साध कर निकल गये.
योगेंद्र जी क्या करारी चोट की हे सब सच ही तो हे, धन्यवाद इस सच के लिये
आप सभी का आभार
हटो, दीवार के उस पार बैठें,
यहां तो मूंग दलती हैं निगाहें.
मोहल्ला ये शरीफों का है साहेब,
यहां गिर कर संभलती हैं निगाहें.
क्या कहने मौदगिल साहब ..बहुत इ उम्दा है !!!!!!!!
respected sir
well composed on koshi
बहुत प्यारा दिल है आपका !
बहुत प्यारा दिल है आपका !
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