अब जो होगा फैसला मंजूर है.
देखता हूं काल कितना क्रूर है.
जो भी अपराधी है वो मगरूर है.
आजकल दुनिया का ये दस्तूर है.
सुविधाभोगी हो गये सब आजकल,
आत्म-स्वाभिमान चकनाचूर है.
आदमी ढूंढे नहीं मिलता यहां,
देवताऒं का नगर मशहूर है.
वर का सौदा कर लिया घर बेच कर,
बाप बेटी का बहुत मजबूर है.
तन की मंजिल पा के इतराता है क्यों,
मन की मंजिल तो अभी भी दूर है.
है असर तेज़ाब जैसा 'मौदगिल',
फिक्र इन्सां के लिये नासूर है.
--योगेन्द्र मौदगिल
14 comments:
फिक्र इन्सां के लिये नासूर है.
क्या बात है!
आदमी ढूंढे नहीं मिलता यहां,
देवताऒं का नगर मशहूर है.
बहुत सुंदर ! शुभकामनाएं !
क्या बात है ? मजा आगया !
बधाई !
wah har ek sher seedhe dil par asar karta hai bahut khoob
सुविधाभोगी हो गये सब आजकल,
आत्म-स्वाभिमान चकनाचूर है.
आप की कविताओ मे हास्या के साथ साथ, आज की सच्ची भी झलकती हे, ओर तीखा व्याग भी बहुत ही सुन्दर,
धन्यवाद
तन की मंजिल पा के इतराता है क्यों,
मन की मंजिल तो अभी भी दूर है.
"wah, very righly said,"
beautiful
Regards
तन की मंजिल पा के इतराता है क्यों,
मन की मंजिल तो अभी भी दूर है.
जिंदाबाद मौदगिल भाई....जिंदाबाद...वाह वाह...ग़ज़ल क्या है पूरा फलसफा है...तबसरा है आज के हालत पर ...बहुत खूब भाई बहुत खूब...
नीरज
बेहतरीन लिखा है आपने
बहुत उम्दा...वाह!
आदमी ढूंढे नहीं मिलता यहां,
देवताऒं का नगर मशहूर है.
वर का सौदा कर लिया घर बेच कर,
बाप बेटी का बहुत मजबूर है.
बहुत ही सादगी से बड़ी बात कह दी आपने !!!!! बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है !!!!!!
वाह वाह! यह ग़ज़ल तो कलियुगका सारांश है। बहुत सुंदर..बहुत उम्दा।
khoobsurat likha hai...
bahut acha
badhai ho...
वर का सौदा कर लिया घर बेच कर,
बाप बेटी का बहुत मजबूर है.
WAH WAH! maza aa gaya...
dhanywad aapko mera himmat badhane ke liye
वर का सौदा कर लिया घर बेच कर,
बाप बेटी का बहुत मजबूर है.
पैना यथार्थ आपकी सोच बहुत गहरी है कृपया पधारें
http://manoria.blogspot.com and http://kanjiswami.blog.co.in
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