कुछ कपड़े तो, महंगाई ने नोच लिये,
शेष बचे हमने फैशन में झोंक दिये..
तुम्हीं कहो अब, किस बीमारी को पालूं..
मेरे घर में टीवी भी है केबल भी...
बच्चे रहते व्यस्त, वीडियो या फिल्मी गानों में,
मैं भी अर्थ खोजता उन गानों के दो मानों में,
सुविधा दुविधा बनी,
देखते ही बातों-बातों में.
स्क्रीन का नीला जादू,
छाया रहता यों रातों में.
तुम्हीं कहो अब किस बीमारी को पालूं..
मेरे घर में टीवी भी है केबल भी...
बच्चों की अब, जंक फूड से, एक काल की है दूरी,
पैदल चलना भूल गये सब, अब तो बाइक मजबूरी,
पैट्टी, पैप्सी, डीजे, म्यूज़िक,
बीयर, डिस्को, हा-हुल्लड़.
जबां हुई बेशर्म कि आंखों,
भरा कीच का कुल्हड़.
तुम्हीं कहो अब किस बीमारी को पालूं..
मेरे घर में टीवी भी है केबल भी.........
--योगेन्द्र मौदगिल
9 comments:
bilkul sahi baat ko rachana me ujagar kiya hai. badhai ho.
bahut sahi kahaa.aaj yahi sab dikhaaee de rahaa hai.
तुम्हीं कहो अब किस बीमारी को पालूं..
मेरे घर में टीवी भी है केबल भी.........
सही कह रहे हे योगेन्द्र जी,टीवी ओर कॆबल के होते घर मे ना दुशमन की ओर ना किसी बिमारी की जरुरत हे यही काफ़ी हे
बहुत धन्यवाद तीखी मिर्ची के लिये, सच मे स्वाद आ गया
wah wah!!lage rahiye hame to aisi hansbhariyon ka hi intizar rahata hai.
पहली बार पढ़ा है आप को आप तो कमाल के कवि हैं।
तुम्हीं कहो अब किस बीमारी को पालूं..
मेरे घर में टीवी भी है केबल भी.........
बिलकुल सही कह रहे हैं आप योगेन्द्र जी। टीवी और केबल की सडांध समाज दूषित कर रही है और दुर्भाग्य यह कि इसे नजरंदाज करना ही आधुनिकता है।
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
sahi chot hai aaj par
कुछ कपड़े तो, महंगाई ने नोच लिये,
शेष बचे हमने फैशन में झोंक दिये..
तुम्हीं कहो अब, किस बीमारी को पालूं..
मेरे घर में टीवी भी है केबल भी...
इस बात पर मेरी बधाई सप्रेम स्वीकारें!
पैट्टी, पैप्सी, डीजे, म्यूज़िक,
बीयर, डिस्को, हा-हुल्लड़.
जबां हुई बेशर्म कि आंखों,
भरा कीच का कुल्हड़.
क्या बात है योगेन्द्र भाई...बहुत खूब...जिंदाबाद...जिंदाबाद....
नीरज
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