बेच कर अपने इरादे, जिन्दगी की राह में.
हो गये मुफलिस पयादे, जिन्दगी की राह में.
दूध तो दूभर हुआ पानी तलक भी मोल का,
घूंट वादों के पिलादे, जिन्दगी की राह में.
दफ्तरों में चूल्हा-चौका, घर में रहती फाईलें,
मन ठिकाने से लगादे, जिन्दगी की राह में.
ना हो ग़र संवाद फिर संवेदना भी क्या करे,
सोच को अपनी हिला दे, जिन्दगी की राह में.
रोता है तो लोग हंसते हैं तुझी पर 'मौदगिल',
यार तू भी मुस्कुरा दे, जिन्दगी की राह में.
--योगेन्द्र मौदगिल
10 comments:
yaar tu bhi muskura de,zindagi ki raah me....... kya baat hai saab,bahut badhiya
दफ्तरों में चूल्हा-चौका, घर में रहती फाईलें,
मन ठिकाने से लगादे, जिन्दगी की राह में.
bahut baDhiya!
दफ्तरों में चूल्हा-चौका, घर में रहती फाईलें,
मन ठिकाने से लगादे, जिन्दगी की राह में.
ना हो ग़र संवाद फिर संवेदना भी क्या करे,
सोच को अपनी हिला दे, जिन्दगी की राह में.
bahut khoob....
बहुत खूब.
निराला अंदाज है आपका.
बधाई.
ना हो ग़र संवाद फिर संवेदना भी क्या करे,
सोच को अपनी हिला दे, जिन्दगी की राह में.
waah waah..behatarin
ना हो ग़र संवाद फिर संवेदना भी क्या करे,
सोच को अपनी हिला दे, जिन्दगी की राह में.....
bahut achcha
behtarin
मोदगिल जी
एक बार फ़िर जिंदगी की राह में परचम फेहराती हुई ग़ज़ल ले कर आए हैं आप....बहुत खूब सूरत और सच्चे शेरों से सजी कामयाब ग़ज़ल.
नीरज
दूध तो दूभर हुआ पानी तलक भी मोल का,
घूंट वादों के पिलादे, जिन्दगी की राह में.
दफ्तरों में चूल्हा-चौका, घर में रहती फाईलें,
मन ठिकाने से लगादे, जिन्दगी की राह में.
achche ashaar lage ye!bahut badhai
रोता है तो लोग हंसते हैं तुझी पर 'मौदगिल',
यार तू भी मुस्कुरा दे, जिन्दगी की राह में.
बहुत बहुत धन्यवाद योगेन्द्र मौदगिल जी क्या मोती पिरोये हे हे शेर मे जबाब नही आप का.
AAp sabhi ka DHANYAWAD
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