एक ग़ज़ल आप सब के लिए
बच्चों के बीच दादी के किस्से संभालिये
बाबा की आन-बान के खूंटे संभालिये
अम्माँ की याद, तुलसी के बिरवे संभालिये
फसलों के साथ आपसी रिश्ते संभालिये
बुआ के साथ रख लियो कुछ मौसियों की याद
और भाभियों से प्यार के हिस्से संभालिये
कुनबे को इस तरह से वो रखता था बाँध कर
उस मिटटी के चूल्हे के वो ज़ज्बे संभालिये
मंदिर की सीढ़ियों का उतरना वो ताल में,
उस पहले-पहले प्यार के चरचे संभालिये
फ्रिज ले तो आए घर में ये भी ठीक है मगर
वो नीम के नीचे धरे मटके संभालिये
रिश्ते तलक हो जाते थे बस खेल खेल में
चौपाल में हँसते हुए बुड्ढे संभालिये
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली,
लस्सी, खटोला, ताश के पत्ते संभालिये
शायद दीये की आस लिए सो रहे हैं वो
पीपल के नीचे 'मौदगिल' पुरखे संभालिये
-- योगेन्द्र मौदगिल
प्रस्तुत ग़ज़ल मेरे ग़ज़ल संग्रह 'आजकल के दौर में' से
बच्चों के बीच दादी के किस्से संभालिये
बाबा की आन-बान के खूंटे संभालिये
अम्माँ की याद, तुलसी के बिरवे संभालिये
फसलों के साथ आपसी रिश्ते संभालिये
बुआ के साथ रख लियो कुछ मौसियों की याद
और भाभियों से प्यार के हिस्से संभालिये
कुनबे को इस तरह से वो रखता था बाँध कर
उस मिटटी के चूल्हे के वो ज़ज्बे संभालिये
मंदिर की सीढ़ियों का उतरना वो ताल में,
उस पहले-पहले प्यार के चरचे संभालिये
फ्रिज ले तो आए घर में ये भी ठीक है मगर
वो नीम के नीचे धरे मटके संभालिये
रिश्ते तलक हो जाते थे बस खेल खेल में
चौपाल में हँसते हुए बुड्ढे संभालिये
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली,
लस्सी, खटोला, ताश के पत्ते संभालिये
शायद दीये की आस लिए सो रहे हैं वो
पीपल के नीचे 'मौदगिल' पुरखे संभालिये
-- योगेन्द्र मौदगिल
प्रस्तुत ग़ज़ल मेरे ग़ज़ल संग्रह 'आजकल के दौर में' से
35 comments:
फ्रिज ले तो आए घर में ये भी ठीक है मगर
वो नीम के नीचे धरे मटके संभालिये
मन को छू लेने वाली रचना....
बहुत बढ़िया ।
सादर अभिनन्दन ।।
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई मौदगिल जी
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (14-07-2012) के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।
कुनबे को इस तरह से वो रखता था बाँध कर
उस मिटटी के चूल्हे के वो ज़ज्बे संभालिये...badi hee najakat bhar ghazal ke madhyam se swarnim atteet kee yaad dila dee..har sher umda...jitni taarif kee jaaye kam hai..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
कुनबे को इस तरह से वो रखता था बाँध कर
उस मिटटी के चूल्हे के वो ज़ज्बे संभालिये...badi hee najakat bhar ghazal ke madhyam se swarnim atteet kee yaad dila dee..har sher umda...jitni taarif kee jaaye kam hai..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
सुन्दर गजल...
सादर बधाई.
नये की चमक में पुराने की घमक भूल न जायें हम..
यदि ये धरोहरें संभली रहतीं तो स्वर्ग हमारे घर-आंगन में होता.
ऐसा ना हो सका.
सच है....
हमारे संस्कार ..हमारे रीति रिवाज़ सम्हाल कर रखने है....
बहुत सुन्दर गज़ल....
सादर
अनु
बहुत जरुरी है, इन्हें सहेजना...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...शुभकामनायें
फ्रिज ले तो आए घर में ये भी ठीक है मगर
वो नीम के नीचे धरे मटके संभालिये
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली,
लस्सी, खटोला, ताश के पत्ते संभालिये
वाह वाह और मतला तो कमाल है। बहुत अच्छी गज़ल।
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली....
ओये होए ...
ये नाम तो अब लोग भूलते ही जा रहे हैं ....
कैसे हैं ...?
शायद दीये की आस लिए सो रहे हैं वो
पीपल के नीचे 'मौदगिल' पुरखे संभालिये ।
आपने पुरखों की याद दिलाई बडा अच्छा किया वरना आजकल तो माँ बाप के कमरे मे भी अंधेरा रहता है ।
बहुत सटीक प्रस्तुति ।
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वाह, बहुत सुन्दर!
घुघूतीबासूती
Dadee ke kisse to samhal ke rakhe hain.
Kuch naya likha hoga usako sunaeeye.
रिश्ते तलक हो जाते थे बस खेल खेल में
चौपाल में हँसते हुए बुड्ढे संभालिये...
बहुत सुन्दर
शुभकामनायें
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
---
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बहुत दिन हुए ।
आपकी इस रचना ने भावुक कर दिया भाई जी ..
बधाई एक प्यारे दिल के लिए !
Sir bahut ache... Haryana ki shaan bana di.. :)
बहुत सुन्दर
सादर अभिनन्दन ।।
जितनी प्रशंसा की जाए,कम है ।
साधुवाद !
बहुत सुन्दर गजल प्रस्तुति .
आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं |
रिश्ते तलक हो जाते थे बस खेल खेल में
चौपाल में हँसते हुए बुड्ढे संभालिये
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली,
लस्सी, खटोला, ताश के पत्ते संभालिये
शायद दीये की आस लिए सो रहे हैं वो
पीपल के नीचे 'मौदगिल' पुरखे संभालिये
सालं साल हो गये , कवि सम्मेलन के अलावा भी ब्लॉगर सम्हालिये।
bahut badhiya apni sabhyata aur sanskriti ko bachaane ka badhiya prayaas
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हिंदी ब्लॉग जगत को ,आपके ब्लॉग को और आपके पाठकों को आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है | आइये न लौट के फिर से कभी ,जब मन करे जब समय मिलते जितना मन करे जितना ही समय मिले | आपके पुराने साथी और नए नए दोस्त भी बड़े मन से बड़ी आस से इंतज़ार कर रहे हैं |
माना की फेसबुक ,व्हाट्सप की दुनिया बहुत तेज़ और बहुत बड़ी हो गयी है तो क्या घर के एक कमरे में जाना बंद तो नहीं कर देंगे न |
मुझे पता है आपने हमने बहुत बार ये कोशिस की है बार बार की है , तो जब बाक़ी सब कुछ नहीं छोड़ सकते तो फिर अपने इस अंतर्जालीय डायरी के पन्ने इतने सालों तक न पलटें ,ऐसा होता है क्या ,ऐसा होना चाहिए क्या |
पोस्ट लिख नहीं सकते तो पढ़िए न ,लम्बी न सही एक फोटो ही सही फोटो न सही एक टिप्पणी ही सही | अपने लिए ,अंतरजाल पर हिंदी के लिए ,हमारे लिए ब्लॉगिंग के लिए ,लौटिए लौटिए कृपया करके लौट आइये
यही आग्रह मैं सबसे कर रहा हूँ उनसे भी जो पांच छह साल और उससे भी अधिक से पोस्टें नहीं लिख रहे हैं कारण का पता नहीं मगर मैं आवाज़ देता रहूंगा और आपसे भी यही आग्रह करूंगा कि आप भी मेरे साथ उनके साथ हो लीजिये |
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