इस गलती के लिए सार्वजनिक रूप से हम दोनों क्षमाप्रार्थी हैं ............

हाँ तो प्रिय पाठकों

जय राम जी की

खरगोन का कवि-सम्मेलन लगभग प्रात: ४.३० तक चला.
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ वाले
कवियों को पूरी तरह निचोड़ते हैं आखरी बूँद तक... -.

कविवर संतोषानंद व् प्रीत गोविन्द (दिल्ली)
पंडित विश्वेश्वर शर्मा (मुंबई)
अलबेला खत्री (सूरत)
प्रेरणा ठाकरे (नीमच)
मैं याने योगेन्द्र मौदगिल (पानीपत)
राजेंद्र विश्वकर्मा (शुजालपुर)
और
संचालक-संयोजक कवि
डाक्टर शंभू सिंह मनहर
के साथ दो दौर में संपन्न यह कवि सम्मेलन
रात १० बजे से प्रात: ४.३० तक चला.

स्वामी अंतर सोहिल ने भयंकर धीरता के साथ
उन कवियों को भी बड़े ध्यान से सुना
जो जम नहीं रहे थे....
ये अलग बात है कि उस समय उन की
वोदका
के संग बढ़िया छन रही थी.

वोदका को पूरी तरह नष्ट करने के लिए
दो बार मेरी भी मदद ली गई..

खैर....

मैं और स्वामी अंतर सोहिल कवि सम्मेलन समाप्त होते ही
अपना लिफाफा संभाल इंदौर रवाना हो गए.
झपकियाँ लेते हुए कब इंदौर आ गया.
पता ही नहीं चला..

ताऊ दी ग्रेट के बताए अनुसार
हमने नवलखा चोक पर लैंड किया ही था कि
तुरत ताऊ ने घंटी बजा दी...
हम समझ गए की ताऊ के जासूस
अपना काम इमानदारी से कर रहे है..

करते भी क्यों नहीं...

भाटिया जी के भिजवाए हुए
ताऊ के परम प्रिय लट्ठ हमारे पास थे.
जिनकी ताऊ को
अपना जन्म दिवस मानाने के लिए
भयंकर जरूरत थी..

दरअसल
भाटिया जी ने लट्ठ दे दे कर
ताऊ की आदत ऐसी ख़राब कर दी है कि अब
ताऊ का कोई भी अनुष्ठान लट्ठ बगैर पूरा ही नहीं होता.


तो प्रिय पाठकों
हमने ताऊ का फोन माथे से लगा
नुच्कार कर बताया कि ताऊ
हम दोनों सशरीर नवलखा चोक पर उपस्थित हो चुके हैं
और वाया महेश्वरी स्वीट्स
आपके पास ३ मिनट में पहुँच रहे है..

पर हाय रे ताऊ का लट्ठ प्रेम.......

ताऊ ने हमारा रस्ते में ही अपहरण कर लिया
और सीधे ले गया घर...

हमें नीचे आफिस में बिठा कर ताऊ खुश हो कर
ताई के पास लट्ठ ले कर गया.
लट्ठ देखते ही ताई इतनी प्रसन्न हुई कि
फटाफट मारे लिए
स्वादिष्ट दाल-बाफला, कढ़ी , तुरई , आलू ,
चटनी पापड़ और अचार

साथ में लड्डू चार ...

हम तो हैरान

कमाल है भाई लट्ठ की इतनी खातिर ...


हमने तो अब पक्का निर्णय ले लिया कि
जिस ब्लागर कै जावेंगे

जर्मन के लट्ठ लेकर जावेंगे ....


भाटिया जी लट्ठ और भेज दो


उसके बाद चाय-नाश्ते के साथ ब्लागर चर्चा प्रारंभ हुई .
चर्चा के चलते ताऊ ने गोपनीय रखने की शर्त पर बताया
की समीरलाल भी बहुत बड़ा लट्ठ प्रेमी है.
उसने कहा है की मेरे दोनों संकलन अडवांस में दे कर
मेरे लिए भी जर्मन लट्ठ की बुकिंग करवा देना .

जिसे हम दोनों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
समीर भाई का आडर भी

बस तय ये होना है की
वे लट्ठ जबलपुर में लेंगे या कनाडा में.

तभी अंतर सोहिल ने अंतरदृष्टि से नोट किया कि ताऊ
बात तो हमरे साथ कर रहा है पर उसका ध्यान
लट्ठ की तरफ है..
तो हमने ताऊ की मजबूरी समझते हुए ऐलान कर दिया कि
अब हम दोनों तुरंत ट्रेन के माध्यम से
निजामुद्दीन की और कूच करेंगे ...

ताऊ ने कृतज्ञतापूर्वक मन ही मन हमारा धन्यवाद किया
और तुरंत गाड़ी निकाल कर हमें स्टेशन पहुंचा दिया
इन्दौरी नमकीन के साथ

हाय..... रे................ ये लट्ठ प्रेम......

गाड़ी में थोडा समय था तो
हमने स्वामी अंतर सोहिल से चर्चा की
और बीयर संहार करने के लिए बार का रुख किया.
बीयर पीते ही हमारे ज्ञान चक्षु खुल गए
और हम दोनों को अहसास हुआ कि
हमने बड़ी भारी गलती की
कि अपने
परम प्रिय हरयाणवी मित्र
मूंछाधिराज ललित भाई को साथ में नहीं लिया..

इसलिए हे ब्लागर-बंधुओं
इस गलती के लिए
सार्वजनिक रूप से हम दोनों क्षमाप्रार्थी हैं
और वादा करते हैं
कि अगली बार लट्ठ लेकर
ललित शर्मा दी ग्रेट

ताऊ के पास
इंदौर जाएँगे

और संभव हुआ तो
समीर भाई के पास भी लट्ठ लेकर
कनाडा जाएँगे ...

आमीन

--योगेन्द्र मौदगिल

10 comments:

Smart Indian said...

जय हो!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बीयर और वोदका का संहार पूरी तरह हो पाया या नहीं???

प्रवीण पाण्डेय said...

भगवान करे निचोड़ने की आदत बनी रहे रसिकों में, कवि का मूल्य तो वही आँकते हैं।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आगली बर साथ ही मिलेगें।
जब हम दुश्मनों को नहीं छोड़ते तो दोस्तों को कैसे छोड़ देगें।

हमने दु्श्मनी करी तो वा भी पक्की और दोस्ती भी पक्की। मतबल लौह की लाट :)

राम राम

Satish Saxena said...

ताऊ का पता और लिख देते तो जो लोग ताऊ को बरसों से ढूंढ रहे हैं उनका भला हो जाता ! ! इनकम टैक्स बाले नाकामयाब इसी लिए हैं की घर ही नहीं मालुम !
शुभकामनायें !

naresh singh said...

कविराज ,इन्दौरी नमकीन बची भी है या रास्ते में ही निपटा दी |

Deepak Saini said...

जी लगे हाथ ताऊ जी का फोन नं0 भी दे दिजिए
धन्यवाद

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

jay ho ! jay ho ! jay ho prabho !

डॉ टी एस दराल said...

भाई यूँ कहो ना कि ताऊ से मिल आए ।
अब तो पहचान लेंगे आप भी ।

राज भाटिय़ा said...

योगेंदर जी जब भी आप समीर जी की तरफ़ जाये कनाडा तो मेरे से भी सलाह कर ले, क्योकि रास्ते को कई हे, लेकिन जब आप वाया जर्मन ( मुनिख) हो कर जाओगे तो समय ओर पेसे तो उतने ही लगेगे, लेकिन हम आप के दर्शन कर लेगे, ओर एल ब्लाग मिलन जर्मन मे भी रख लेगे, बदले मे आप को वाईन,बीयर, वोदका, जिन जो चाहे उस से नहला देगे.ओर समीर जी के लिये भी जर्मन लठ्ट दे देगे