ब्लाग जगत में जब से आया.........................

ब्लाग जगत में जब से आया हूँ 
कुछ मस्तमौला साथी मिले 
जिनमे ताऊ रामपुरिया, सतीश सक्सेना, राज भाटिया, 
अलबेला खत्री, राजीव तनेजा, 
पवन चन्दन, ललित शर्मा, अंतर सोहिल, अकबर खान 
की जीवटता और जीवन्तता ने मुझे बहुत बल दिया.
इन सबसे अन्तरंग मुलाकातें भी रही.......

नीरज गोस्वामी जी से प्रत्यक्ष भेंट तो नहीं हो पाई 
लेकिन मोबाइल पर उनके गूजते ठहाके मेरे प्रेरणास्रोत रहे है.....
उन्ही को समर्पित कर रहा हूँ ये हास्य रचना.... 
इसका आनंद ले 

तब तक मैं २५ जून को कोलडैम (बिलासपुर), 
२७ जून को जालंधर(पंजाब), 
2 जुलाई को रोहतक (हरयाणा), 
१० जुलाई को सूरत (गुजरात) और 
११ जुलाई को विशाखापत्तनम के 
कविसम्मेलनो से निबट कर आता हूँ.... 

और नीरज गोस्वामी जी हो सकता है १२ जुलाई को 
आपसे भेंट हो जाए....
हालाँकि १२ को विशाखापत्तनम से पानीपत के लिए रिजर्वेशन है 
लेकिन मैं अलबेला खत्री के डिस्पोजल पर हूँ 
और अगर अलबेला अपने अलबेले मूड में हो तो क्या नहीं हो सकता......




बनारस की सुबह हो लूं , अवध की शाम हो जाऊं.
नाम से भर गया है मन के मैं बदनाम हो जाऊं.

उम्र से क्या गिला करना तजुरबा मेरी पूँजी है,
अगरचे तू हो केटरीना मैं झंडू बाम हो जाऊं.

ये मौसम चूसने का है, तेरे मामा की बगिया में,
मेरा मन चाहता है  मैं दशहरी आम हो जाऊं.

गज़ब की शोखियाँ और मस्तियाँ तेरी निगाहों में,
देख कर झूम लूं इतना के बस गुलफाम हो जाऊं.

नजूमी ने बताया है हथेली देख कर मेरी,
राम हो ही नहीं सकता भले मैं श्याम हो जाऊं.

मैं बचपन से ही टेढ़ा हूँ मैं सीधा हो नहीं सकता,
अगर मिल जाय पगडण्डी तो मैं भी गाम हो जाऊं.

'मौदगिल', कार है व्हिस्की-बरफ, सोडा है, तू भी है,
ये रस्ते जाम हो जाएँ तो मैं भी जाम हो जाऊं. 
--योगेन्द्र मौदगिल


29 comments:

Urmi said...

ये मौसम चूसने का है, तेरे मामा की बगिया में,
मेरा मन चाहता है मैं दशहरी आम हो जाऊं.
गज़ब हैं शोखियाँ, हैं मस्तियाँ तेरी निगाहों में,
देख कर झूमूँ-इतराऊँ के बस गुलफाम हो जाऊं...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! शानदार और लाजवाब पोस्ट!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:):) बहुत बढ़िया

Satish Saxena said...

मान गए मियां गुलफाम !
जिन्दगी कैसे जी जाती है, लगता है,अभी बरसों तक दोस्तों को सिखाते रहोगे ! आपकी यह रचना पढ़कर गहन उदासी के क्षणों में भी, मैं हंस पड़ा योगेन्द्र भाई !
इस क्षण भंगुर जीवन में अपने कष्ट भूलकर, हँसते हुए लोगों को हँसाना, बेहद मुश्किल काम है !
बधाई आपको !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बनारस की सुबह हो लूं अवध की शाम हो जाऊं.
नाम से भर गया है मन के अब बदनाम हो जाऊं.


बहुत सुंदर ....

अन्तर सोहिल said...

पूरी रचना ही बेहतरीन है, लेकिन आखिरी पंक्ति मुझे भा गई
कहवैं सैं ना बिल्ली नै ख्वाब म्है भी छिछडे नजर आया करैं :)

प्रणाम

Pawan Kumar said...

मौदगिल जी
यकीं मानिये बेहद शानदार ग़ज़ल कही है आपने हर शेर मुकम्मल......
फिलहाल कवी सम्मेलनों में जाने की शुभकामनाएं.... मंचों पर डंका बजा आइये
इस ग़ज़ल के ये शेर बहुत पसंद आये
बनारस की सुबह हो लूं अवध की शाम हो जाऊं.
नाम से भर गया है मन के अब बदनाम हो जाऊं.


और


मैं बचपन से ही टेढ़ा हूँ मैं सीधा हो नहीं सकता,
के अब मिल जाय पगडण्डी तो मैं भी गाम हो जाऊं.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अगर तू हापुस है तो मैं भी दशहरी आम हो जाऊं।
अगर तू वोदका है तो मैं भी रम का जाम हो जाऊं॥

हम कुण से कम सां

राम राम भाई जी,जिन्दगी जिंदादिली का नाम है
जिसके पास दिल नही उसका जहां में के काम है।

हा हा हा हा
मौजां ही मौंजा

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

@मैं अलबेला खत्री के डिस्पोजल पर हूँ.

डिस्पोजल क्युं भाई, भाटिया जी ने जो जग दिया था उसे कड़े भूल आए :)

वीना श्रीवास्तव said...

मैं बचपन से ही टेढ़ा हूँ मैं सीधा हो नहीं सकता,
के अब मिल जाय पगडण्डी तो मैं भी गाम हो जाऊं.

पहली बार आपके ब्लॉग पर हूं....
बहुत अच्छी लगी रचना...

vandana gupta said...

बहुत ही गज़ब की गज़ल लिखी है हर शेर लाजवाब्।

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र said...

आइये कोलडैम में आपका स्वागत है।
रचना मजेदार है पढ़कर मजा आ गया।

मनोज कुमार said...

मज़ेदार! :)

Unknown said...

lalit sharmaaji sahi kah rahe hain........voh mug kahan hai ? jo raaj bhatiya ji ne diya tha


bahut hi shaandaar gazal...maza aaya

aao aao surat me aapka swagat hai aur........intezaam bhi

ha ha ha

डॉ टी एस दराल said...

बड़ा बिज़ी स्ड्युल है भाई । मस्त रचना ।

प्रवीण पाण्डेय said...

झंडू बाम सबको प्यारा हो गया है, दर्द मिटाता है।

विनोद कुमार पांडेय said...

wakai taau ji, ek behtareen gazal bahut din ke baad ek suddh hasya ki rachana padhane ko mili..

majedaar...badhai..

केवल राम said...

नजूमी ने बताया है लकीरें देख कर मेरी,
राम हो ही नहीं सकता भले ही श्याम हो जाऊं.

ग़ज़ल में भाव सम्प्रेषण बहुत गंभीरता से हुआ है .....!

नीरज मुसाफ़िर said...

एक जाम गोस्वामी के नाम।

ana said...

lajwab kalpna ....umda post

Manish Khedawat said...

bahut hi majedar kavita ! badhai!
________________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||

Unknown said...

गज़ब की शोखियाँ और मस्तियाँ तेरी निगाहों में,
देख कर झूम लूं इतना के बस गुलफाम हो जाऊं.
bahut badhiya.. kripya mere bhi blog me aaye..
www.pradip13m.blogspot.com

virendra sharma said...

योगेन्द्र जी ,रस्ता जाम हो जाए ,तो मैं भी जाम हो जाऊ और बेटियाँ बदिन हो गईं -आज मंचीय रचनाओं की ज्यादा ज़रुरत है जो जनता से सीधे जुड़ तीं हैं ,तनाव कम करतीं हैं .बधाई .

SANDEEP PANWAR said...

काफ़ी लम्बा सफ़र होने वाला है, बताते रहना जी।

रविकर said...

(आनंदमयी हंसी -------)

बारास्ता

नीरज जाट और जाट देवता पर की टिप्पणी

आया |

पर इधर तो जाट ही जाट पाया ||

जाटों से दोस्ती के कुछ छुपे खतरे तो नहीं न |

लगे हाथ यह भी बता दीजिये ||

एहसान कीजिये ||

SANDEEP PANWAR said...

जाटों से डरना मना है, दोस्तों के लिये।

Parul kanani said...

alhadpan hai :)

अजय कुमार झा said...

इब जाटण की दोस्ती कुछ ता रंग दिखावेगी ही भाया ..हा हा हा । बहुत बिजी चल रिए हैं भायो

दिगम्बर नासवा said...

ये मौसम चूसने का है, तेरे मामा की बगिया में,
मेरा मन चाहता है मैं दशहरी आम हो जाऊं...

वाह गुरुदेव ... मन गए ... कौन नहीं चाहेगा आम होना ...

नीरज गोस्वामी said...

भाई जी आपकी ग़ज़ल पर देरी से नज़र गयी ये मेरी नज़र का दोष है मैं मान लेता हूँ...बढ़िया रचना है जिसमें मैं बचपन से ही टेढ़ा हूँ कह कर आपने अपनी सच्चाई जग जाहिर कर दी है..बारह जुलाई को मैं जयपुर जा रहा हूँ अगर एक दिवस पहले आ सको तो आनंद आ जाये...

नीरज