सम्पूर्ण प्रकरण को समर्पित दो छंद
सत्ताधारी, भ्रष्टाचारी, खादीधारी राजनेता,
इन को तजुर्बा है सैंकड़ो बरस का.
रिश्वत, पाखण्ड, झूठ, चोरी-सीनाजोरी और,
हत्या व् बलात्कार का इन्हें है चस्का.
इसीलिए बाबाजी सुझाव है हमारा बस,
योग करो, योग ही है आपके तो बस का.
राजनीति वाला खेल उन को ही खेलने दो,
गालियाँ उलीचता है भाषण का ठसका..
और
दुनिया को मैंने सिखला दिया कपालभाती,
आओ बच्चों, अब राजनीति सिखलाऊंगा.
यहाँ का तो धन योगपीठ पे लगा दिया है,
कालाधन मंगाके तुम्हे हिस्सा दिलवाऊंगा.
गांधी ने भी किया नहीं होगा ऐसा सत्याग्रह,
जैसा सत्याग्रह तुम्हे कर के दिखाऊंगा.
मरना पड़ा तो बूढों-बच्चों तैयार रहना,
मैं तो सलवार भी पहन भाग जाऊंगा..
-- योगेन्द्र मौदगिल
13 comments:
मौदगिल साहब, उस दिन बाबा का भागना कायरता नहीं चतुराई थी. यदि भगत सिंह बम फेंकने के बाद भाग गये होते तो शायद देश का नजारा ही कुछ और होता. और सच कहूं अगर हम उस समय होते तो शायद भगत सिंह जी के समर्पण करने पर भी सवालिया निशान लगा चुके होते.
मैं इस मसअले पर बजाय किसी तर्क के इतना निवेदन करना चाहता हूँ कि देश भर से बुलाये बच्चों, बूढों, महिलाओं, लड़कियों को 'उस' पुलिस के रहमोकरम पर छोड़ कर अपनी तथाकथित सत्याग्रही जान को ले कर पलायन करना योग का आत्मबल था ?
मेरी बात से भारतीय नागरिक जी आपकी आस्था को ठेस लगी हो तो मैं क्षमा चाहता हूँ क्योंकि सौभाग्य से मैं भी इसी देश का नागरिक हूँ. यहाँ रावण भी पूजे जाते हैं....
आपके विचारों से आंशिक तौर पर सहमत हूँ ! बाबा को राजनीति में आनंद नहीं ढूंढना चाहिए....
इससे उनका कद बहुत घटा है !
शुभकामनायें !!
बाबा का कद घटा कर जनता खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है ... सरकार को लगता है उसने जंग जीत ली है , लोकपाल बिल पर अन्ना हजारे की कोई बात सुनी नहीं जा रही .. सरकार अपने वायदे से मुकर रही है ... कौन कसेगा सरकार की नाक में नकेल ..बहुत से सवाल उठते हैं ..
सतीश भाई, आपकी आंशिक सहमती ने बल दिया... सत्याग्रह के लिए १८ करोड़ की टेंट-व्यवस्था... ? इस वीआइपी सत्याग्रह को नमन करूं...? ये पंक्तियाँ खिन्नता और क्रोध से उपजी हैं.....मैं संत नहीं हूँ और अच्छा ही है कि नहीं हूँ......
संगीता जी, बाबा का कद जनता ने नहीं घटाया...बाबा ने स्वयं घटाया है.....शत-प्रतिशत बाबा जिम्मेवार हैं......अपने कार्यक्रम को क्रियाकर्म में उन्होंने ही बदला.....
सरकार ने भी अपने कदम गड्ढे की तरफ ही बढ़ाये हैं.....
अन्ना हजारे ने बिलकुल ठीक कहा है, आज के अखबार के अनुसार कि अब घर में बैठी जनता को सड़कों पर निकलना होगा.....सरकार की नाक में नकेल जनता ही कसेगी......और इस भ्रष्ट सरकार को लाने के जिम्मेवार लोग वो हैं जो वोट डालने नहीं निकलते.......क्योंकि वोट डालने वालों में अधिकतर तो शराब और पैसे लेकर वोट डालते हैं.
सारे घटनाक्रम का असर तो हुआ है...छल और बल दोनों सामने आ गए.
वर्तमान परिदृश्य पर लिखी इस बेबाक टिपण्णी का आभार.
आज तैं बाबा बी पकड़्या गया.
Jai ho Gurudev ... dhamaal macha diya ...
मुझे लगता था आप राजनीती की गहरी समझ रखते हैं....निराशा हुई...
रंजना जी
आपने बिल्कुल सही पहचाना....मुझे राजनीति की बिल्कुल भी समझ नहीं है......और मैं समझना भी नहीं चाहता......
"मुझे राजनीति की बिल्कुल भी समझ नहीं
है......और मैं समझना भी नहीं चाहता......"
अपने देश में इस प्रकार का निर्लिप्त भाव रखने वाले केवल आप ही थोड़े न है...अधिकांशतः हैं...असंख्य हैं...
और होना भी चाहिए...नहीं तो बेचारे भ्रष्ट, अनहक धन बटोरू लोग जायेंगे कहाँ ...उन्हें भी तो अपनी जिन्दगी ऐसे ही निर्लिप्तों के जान चूस चलानी है...
बुरा न मानियेगा...
जितने व्यथित और क्षुब्ध आप हैं(जैसा कि आजतक आपकी रचनाओं को पढ़ मुझे लगता रहा है) देश की अवस्था देख,उतना ही मैं भी हूँ...बस अंतर यह है कि आप इसे अपने नजरिये से देखते हैं और मैं अपने...
सादर,
रंजना.
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