16 मार्च २०११

16 मार्च २०११ को महम में कविसम्मेलन था. 
इस हरियाणवी कविसम्मेलन में भाई जोगेंद्र मोर ने 
सञ्चालन किया. और मेरे अलावा वीरेन्द्र मधुर, रामधारी खटकड़, 
वी. ऍम. बेचैन, मेघराज सचदेव, सुरेश साहिल ने 
कविता पाठ किया.
भारत विकास परिषद् की स्थानीय शाखा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में श्रोता अंत तक भाव विभोर हो डटे रहे. 
कार्यक्रम के पश्चात भोजन कर लिफाफा संभाल 
मैं और मेरे चारों साथी मेरी गाड़ी में बैठ गए.

पिछले लगभग चार वर्षों से हरियाणा और दिल्ली में 
मैं अपनी ही कार में चला जाता हूँ. ताकि लौटते समय दिक्कत न हो. 
स्वयं ही कार चला लेता हूँ.

खैर हम लोग चल पड़े. कार्यक्रम बहुत ही सफल रहा था. 
उसी की चर्चा करते-करते ठहाके लगाते लगभग ५०-६० की स्पीड पर बड़े आराम से चल रहे थे. कोई १८ किलोमीटर के बाद मदीना गाँव के पास उस सिंगल रोड पर सामने से आते ट्रक के पीछे से एक केंटर उसे ओवेरटेक करता निकला और इस से पहले कि मैं कुछ समझता साईड से रगड़ता हुआ भाग गया. 

कुछ भी समझ में नहीं आया. गाड़ी रुक गयी. कांच कि किरचें मेरे पूरे मूंह को छील गई. खून आने लगा. मैं हतप्रभ था 
 पीछे से कवि रामधारी खटकड़ की बुरी तरह चीखने आवाज आई. 
हम सब नीचे उतरे. उन्हें संभाला. गाड़ी देखी तो होश उड़ गए. 
मेरी साईड के दोनों दरवाजे चीथड़े होकर लटक गए थे. 
अगला टायर तो फटा सो फटा रिम तक ४ इंच बैंड हो गया. 
तब समझ में आया कि केंटर यदि सिर्फ ४ या ५ इंच और अपनी तरफ होकर भिड़ता तो स्टेयरिंग मेरे पेट में होता और अंतड़ियाँ बाहर.... और अपन अगला कविसम्मेलन ऊपरवाले की अध्यक्षता में करते. 
रामधारी बुरी तरह विलाप रहे थे.
शेष तीनो बिलकुल ठीक-ठाक थे.
जोगेंद्र मोर ने तुरंत आयोजकों और रोहतक के एक अपने मित्र को 
सूचना दी. मैंने अपने छोटे भाई मोंटू को. 

सब के सब सूचना पाते ही निकल पड़े. रोहतक नजदीक था इसलिए सबसे पहले मोर के मित्र पहुंचे. रामधारी की हालत खराब थी उन्हें सबसे पहले गाड़ी में डाल कर रोहतक पी जी आई भेजा. 


महम से भी आयोजक घटना-स्थल पर पहुंचे.

मोबाईल की रौशनी में मेरी जांच हुई. मैं ठीक-ठाक था. 
यद्यपि कंधे और पसलियों में दर्द था फिर भी उनके साथ 
कर चला कर हम सभी रोहतक पहुंचे. वहां जाकर पता लगा 
की खटकड़ जी की चार पसलियाँ और हंसली की हड्डी टूट गयी है.

उधर पानीपत से मेरे दो छोटे भाई हेमंत और संजय भी पहुँच गए..
गाड़ी का तो कुछ नहीं मुझे ठीक देख सभी आश्वस्त थे 
और परमात्मा के शुक्रगुजार भी. 
क्योंकि मधुर जी और मेघराज जी ने 
अपनी चश्मदीदी विस्तार में बताई...

मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. बस दर्द बढता जा रहा था. 
कोम्बिफ्लेम खा कर मैं घर पहुचने को आतुर था.

आयोजकों और मधुर जी को वहीँ छोड़ हम पानीपत रवाना हो गए. 
सुबह चार बजे पानीपत पहुँच गए. 
घर वाले छोटे भाई की आवाज सुनते ही आशंकित हो गए 
और तेजी से बाहर आये. 
बस फिर वही बातें, वही ब्यौरा.. 
इन सब बातों का मुझ पर असर ये हुआ की उन सब के साथ साथ मैं भी सोचने लगा कि आज कौन से अच्छे कर्मों ने बचा लिया...?

खैर चाय आदि के उपरान्त वो दोनों घर चले गए. 
बेटा दिवाकर, बेटी यामिनी और रजनी मुझे घेर कर बैठ गए..
मैंने उन्हें दर्द बढने का वास्ता देकर उन्हें अपने कामो पर लगाया 
और मैं सो गया.


दस बजे पिता जी और अन्य भाई तथा पडौसी आदि 
जिसे भी पता लगा सब आने लगे. 
मुझे उस समय दर्द-वर्द कुछ ख़ास नहीं था. 
मैं उकताने लगा. 
तभी याद आया कि गाड़ी को वर्कशाप छोड़ा जाए तो मैं और बेटा 
गाड़ी देने चले. 
वर्कशाप वाले ने गाड़ी देखते ही पहला प्रश्न किया 
कि गाड़ी चला कौन रहा था और कहाँ ....है कैसा है... 
मेरी हंसी छूट गयी.. मैं बोल्या...रै देख ले यू खड़ा तेरा फूफा...

उसे यकीन नहीं हुआ.. अपन गाड़ी देकर चलते बने...
घर आकर मैं पुन: सो गया..
शाम को लगभग पांच बजे दर्द के मारे आँख खुली 
तो मैं स्वयं हतप्रभ था
 कि मेरी पसलियों और कंधे में भयंकर दर्द हो रहा था... (क्रमश:)

21 comments:

समयचक्र said...

बहुत दिनों बाद हास्य से लबरेज रचना पढ़ने मिली ..बहुत बढ़िया आभार

योगेन्द्र मौदगिल said...

shukriya mahendra ji.....

अन्तर सोहिल said...

महेन्द्र जी को इस पोस्ट में भी हास्य दिखा और हम खामख्वाह चिंतित हो रहे हैं, पोस्ट पढते हुये।


प्रणाम

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत बढिया।

---------
भगवान के अवतारों से बचिए...
जीवन के निचोड़ से बनते हैं फ़लसफे़।

Sunil Kumar said...

मौदगिल जी अगर यह हास्य है तो ठीक है मगर यह यदि सत्य घटना है तो तुरंत ओने कन्धों का इलाज करवाएं क्योंकि अभी आपको साहित्य का बहुत बोझ उठाना है | शुभकामनायें शीघ्र स्वस्थ होने की ....,

योगेन्द्र मौदगिल said...

प्रिय अंतर सोहिल, मैंने तो स्वयं इस घटना को हँसते-हँसते ही लिया. अब तक हँसता हूँ याद कर के

जाकिर भाई...शुक्रिया

और सुनील जी, घटना एकदम सत्य है....पूरी तरह फिट हूँ..ठीक-ठाक हूँ...आभार.

डॉ टी एस दराल said...

योगेन्द्र जी , ऊपर वाले का शुक्रिया कि आप सब सकुशल हैं । वर्ना सच फासला बहुत कम था ।
यह तो कवियों की आदत होती है कि बड़े से बड़े हादसे में भी मुस्कराते रहते हैं । यही सन्देश तो देते हैं जनता को ।

लेकिन भाई यह देर रात का सफ़र सही नहीं है । कोई विकल्प होना चाहिए ।

naresh singh said...

कवी राज आपको कुछ नहीं हो सकता है क्यों की आपके साथ आपके चाहने वाले लोगो का प्यार और शुभकामनाये रहती है|और चाहने वालो की कतार भी बहुत लंबी है |

योगेन्द्र मौदगिल said...

डाक्टर दराल जी, आपकी बात सही है. देर रात या तुरंत लौटना सही नहीं लेकिन कई बरसों से सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. कभी ऐसी नौबत नहीं आई. हास्य मंचो के वरेण्य कवि स्वर्गीय निर्भय हाथरसी कहा करते थे कि मंचीय कवि को तो कार्यक्रम निबटते ही तुरंत चल देना चाहिए. खैर उसके बाद किये सभी कार्यक्रमों में सुबह ही चला..

नरेश राठोड जी, सही है, आप सब मित्रों, हितैषियों, शुभचिंतकों की दुआओं ने ही तो बचा लिया...हा..हा..हा..

वरिष्ठ ब्लागर भाई पंकज सुबीर जी का इस पोस्ट को पढते ही फोन आ गया था. वो बहुत चिंतित थे. मैं सभी को बताना चाहता हूँ कि मैं अब बिलकुल ठीक हूँ.....

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

16 मार्च के बाद तो अपनी बात भी हुयी थी लेकिन यह बात तो बीच मे आयी नही . .............. वैसे भगवान को अपने यहा कवि सम्मेलन के लिये अभी सौ दो सौ साल का इन्त्ज़ार करना पडेगा

योगेन्द्र मौदगिल said...

धीरू भाई, आपकी बात ठीक है...उस दिन जब आपकी मेरी फोन पर बात हुई तो इस की चर्चा नहीं हुई....

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, रोचक वृत्तान्त।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पहले भगवान का धन्यवाद... मुझे बहुत कष्ट हो रहा है.. फिर ये कि अभी कुछ दिन पहले ही मैंने पायलटों के फर्जीवाडे पर लिखा था जिसमें इस प्रकार के ड्राइवरों के बारे में लिखा था, जब लाइसेंस यूं ही बांटे जायेंगे तो यही होगा. मौदगिल साहब प्रसाद चढ़ाइये कहीं...

दयानिधि बत्स said...

हे ईश्वर, और मैं समझ रहा था कि आप व्यस्त होंगे इसलिये आजकल ब्लाग पर नहीं लिख रहे. चलिये ईश्वर ने बाल-बाल बचाया..

राज भाटिय़ा said...

हे राम, तेरा बहुत बहुत शुक्र, भाई आप से मिले तो एक बार ही हे, लेकिन आप दिल मे बस गये हो, ओर आज यह हादसा पढ कर कुछ पल के लिये तो हमारी सोच ही ठहर गई, चलिये अब आराम फ़रमाईये ओर आंईदा रात का सफ़र ना करे, ओर आग्ली पोस्ट जल्द डाले, फ़िर से उस भगवान का धन्यवाद जिस ने आप जैसे अच्छे मित्र को बचा लिया,

Sushil Bakliwal said...

ईश्वर का शुक्र है...
फिलहाल तो यही कहा जा सकता है । शुभकामनाएँ...

निर्मला कपिला said...

इश्वर का बहुत बहुत धन्यवाद मगर ये क्रमश: खल रहा है।

योगेन्द्र मौदगिल said...

प्रवीण जी, शुक्रिया...

भारतीय नागरिक जी, गाड़ी मैं ही चला रहा था. बहुत चलाता हूँ और मित्रों का कहना है कि बढ़िया चलाता हूँ. शायद वो मुहूर्त ही खराब रहा होगा.

वत्स जी, भाटिया जी, सुशील जी आप सभी के प्यार ने ही तो बचा लिया.. वरना अपन भला किस काम के ? फिर भ आप सभी का आभार प्रगट कर इस स्नेह को हल्काउंगा नहीं...

निर्मला दी, क्रमश: से आगे कि कहानी लिख रहा हूँ........तो मिलते हैं आज रात या कल प्रात: तक

Dr (Miss) Sharad Singh said...

हादसा पढ़ कर शॉक लगा...फिर यह जानकर तसल्ली हुई कि आप ठीक-ठाक हैं...
ईश्वर का बहुत-बहुत आभार!

Satish Saxena said...

भगवान् का शुक्र है ......शुभकामनायें भाई जी !

Vivek Jain said...

शानदार वृत्तान्त!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com